स्वामी दयानंद सरस्वती जिन्हें समाज सुधारक, आर्य समाज के संस्थापक तथा विभिन्न प्रकार के नामों से जाना जाता है। उन्होंने अपना जीवन समाज कल्याण और अपने धर्म की रक्षा तथा हास्य स्थिति पर जा रहे वेद-वेदांत की शिक्षा के महत्व को समाज के बीच रखा। समाज को एक सूत्र में जोड़ने का प्रयास किया, उनके जीवन तथा उद्देश्य, लक्ष्य और स्वभाव को हम विभिन्न कहानी के माध्यम से जानने का प्रयत्न करेंगे। इस लेख में आप स्वामी दयानंद सरस्वती जी से परिचित हो सकेंगे।
ब्रह्मचर्य जीवन की शक्ति (स्वामी दयानंद सरस्वती जी की कहानी)
एक समय की बात है, शहर में स्वामी दयानंद सरस्वती जो स्वाधीनता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभा रहे थे। अपने शिक्षा और ज्ञान के माध्यम से समाज का उत्थान कर रहे थे। उन्होंने आर्य समाज की नींव रखकर भारतीय जनमानस को एक नई ऊर्जा प्रदान की। ऐसे महापुरुष का मार्गदर्शन जनता प्राप्त कर रहे थे, इन्हें सुनने और इनका अनुकरण करने के लिए दूर-सुदूर देश से लोग बड़ी संख्या में आया करते थे।
स्वामी जी का मार्गदर्शन चल रहा था, श्रोता उनकी एक-एक बातों को अनुकरण करने के लिए अपनी अंतरात्मा में उनके विचारों को उतार रहे थे। स्वामी जी ने लोगों को बताया कि ब्रह्मचर्य में कितनी शक्ति है। वह अगर ब्रह्मचर्य का ठीक तरीके से पालन करें तो वह मानवों में श्रेष्ठ बन सकते हैं। इसके माध्यम से उनका-शरीर, मस्तिष्क और बल की वृद्धि होती है। इसके माध्यम से वह दिव्य शक्तियों को भी अपने शरीर में धारण कर सकता है।
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स्वामी जी का प्रवचन जैसे ही खत्म हुआ स्वामी जी अपने मंच से उतरे और अपने गंतव्य की ओर जाने के लिए आगे बढ़े, वैसे ही एक बैलगाड़ी वाला जो महात्मा जी की बातों को सुन रहा था। उसने महात्मा जी से कहा महात्मा जी आपकी बातों को मैं ध्यान पूर्वक सुन रहा था। किंतु आपमें और मुझमें कोई फर्क, मुझे नहीं दिखता। स्वामी जी मुस्कुराए और बिना जवाब दिए हुए बाहर चले गए।
बैलगाड़ी वाला व्यक्ति आश्चर्यचकित रह गया, उसे महात्मा के द्वारा उत्तर नहीं मिल पाया था। वह बाहर निकला और अपनी बैलगाड़ी पर बैठकर जैसे ही अपनी बैलगाड़ी आगे बढ़ाना चाहा, किंतु दोनों बैल बल लगाकर थक गए किंतु बैलगाड़ी एक इंच भी आगे नहीं बढ़ी। बैलगाड़ी वाला व्यक्ति काफी समय परेशान होता रहा। फिर वह बैलगाड़ी से नीचे उतरा अकस्मात उसे स्वामी जी दिखाई दिए जो बेल गाड़ी का पहिया अपने हाथों से रुके हुए थे। बैलगाड़ी वाले व्यक्ति को अब ब्रह्मचर्य की शक्ति का अंदाजा लग गया था, उसके सभी संशय समाप्त हो गए थे, उसके सभी प्रश्नों के उत्तर मिल गए थे। वह तुरंत ही महात्मा जी के चरणों में गिर पड़ा और उससे अपनी अज्ञानता के लिए माफी मांगा।माना जाता है कि ब्रह्मचर्य में जो शक्ति होती है, वह ब्रह्मांड में अन्यत्र कहीं और नहीं मिल सकती।
एक सिद्ध पुरुष अपने ब्रह्मचर्य की शक्ति से कुछ भी करने की शक्ति रखता है। आचार्य चाणक्य जीवन भर ब्रह्मचर्य का पालन करते रहे, इतिहास गवाह है कि उनके जैसा आज भी कोई जोड़ में नहीं मिल पाया है।
नैतिक शिक्षा
१. ब्रम्हचर्य जीवन ही श्रेष्ठ जीवन है क्योंकि व्यक्ति अपने बल का संरक्षण करके समाज एवं देश की उन्नति में सहयोग कर पाता है। जो लोग ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करते वह स्वयं को जीवन में कोई मार्ग नहीं दिखा पाते।
२. जो व्यक्ति ब्रम्हचर्य का पूरी तरीके से पालन करता है वह अजय हो जाता है, उसमें शारीरिक एवं मानसिक बल की शक्ति का वह संयोजन बनता है जिसका तोड़ किसी के पास नहीं होता।
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निष्कर्ष
स्वामी जी का जीवन सदेव समाज कल्याण और समाज के हर वर्ग को एक साथ जोड़ने का रहा। उन्होंने जाती-पाती से ऊपर उठकर समाज को एक साथ लाया उनके द्वारा स्थापित किए गए आर्य समाज में उन सभी आडंबर ओ को स्थान नहीं मिला, जो धर्म की हानि के लिए जिम्मेदार थे। उन्होंने धार्मिक पद्धति को सरल बनाया तथा समाज के हर वर्ग को एक समान एक दृष्टि प्रदान की।
आर्य समाज में शामिल होकर हर व्यक्ति केवल हिंदू होता था, यहां किसी जाति पाती या धर्म का कोई स्थान नहीं था। उन्होंने इस प्रकार की दृष्टि को अपनाकर अपने धर्म की रक्षा की उन्होंने समाज को जोड़ने का प्रयास किया। उनका यह उद्देश्य इस वाक्य से स्पष्ट होता है वेदों की ओर लौटो।
तत्कालीन समाज अपने धर्म तथा धार्मिक परिस्थिति से दूर होता जा रहा था, उन्हें अपने धर्म में खामियां नजर आ रही थी जिसके कारण अन्य दुराचारी या विधर्मी व्यक्ति उन्हें सरलता से मूर्ख बना रहे थे और अपना धर्म परिवर्तन करवा रहे थे ऐसे में स्वामी जी ने समाज को टूटने से बचाया। उन्होंने अपना जीवन इन्हीं कार्यों में समर्पित किया, उपरोक्त कहानियों से आपने स्वामी जी के जीवन तथा व्यक्तित्व से परिचित हुए होंगे अपने सुझाव या विचार हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर बताएं।