यह लेख स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के संपूर्ण जीवन पर प्रकाश डालने का एक छोटा सा प्रयास स्वरूप है। इस लेख के माध्यम से आप लता मंगेशकर जी के व्यक्तित्व , फिल्मी जगत तथा निजी पारिवारिक कुछ अहम जानकारियां हासिल कर पाएंगे।उनके बचपन से लेकर जीवन के प्रत्येक क्षण में व्याप्त सादगी और उनके यादगार स्मृतियों से ओतप्रोत यह लेख उनकी दिव्य छवि को प्रस्तुत करने में सक्षम है। किस प्रकार एक छोटी सी लता ने स्वर साम्राज्ञी बनने तक का सफर तय किया। क्यों आज भी उनके अनेकों चाहने वाले हैं , आज भी वह लोगों के दिलों में किसी देवी से कम स्थान नहीं रखती।आज इसी पर आधारित कुछ स्मृतियां प्रस्तुत कर रहे हैं –
लता मंगेशकर जी की संपूर्ण जीवनी – Lata Mangeshkar biography in Hindi
जन्म – 28 सितंबर 1929
स्थान – इंदौर मध्य प्रदेश भारत
राष्ट्रीयता – भारतीय
नाम – लता मंगेशकर
उपनाम – स्वर साम्राज्ञी , राष्ट्र की आवाज , सहराबदी की आवाज , भारत कोकिला आदि।
पिता – दीनानाथ मंगेशकर
माता – शेवतंति मंगेशकर
भाई – हृदयनाथ मंगेशकर
बहन – मीना खाड़ीकर , आशा भोसले , उषा मंगेशकर।
मृत्यु – 6 फरवरी 2022
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महत्वपूर्ण पुरस्कार –
भारत रत्न , राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार , फिल्म फेयर पुरस्कार , फिल्मफेयर आजीवन पुरस्कार।
- फिल्म फेयर पुरस्कार – 1958 ,1962 , 1965 , 1969 ,1993 , 1994
- राष्ट्रीय पुरस्कार – 1972 ,1975 ,1990
- महाराष्ट्र सरकार पुरस्कार – 1966 ,1967
- पद्मभूषण – 1969
- परी फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ महिला पार्श्व गायिका राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 1972
- दुनिया में सबसे अधिक गीत गाने का गिनीज विश्व रिकॉर्ड – 1974
- फिल्म कोरा कागज के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार – 1974
- दादा साहब फाल्के पुरस्कार – 1989
- फिल्म लेकिन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार – 1990
- फिल्म फेयर पुरस्कार लाइफ टाइम अचीवमेंट – 1993
- स्क्रीन का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार – 1996
- राजीव गांधी पुरस्कार – 1997
- N.T.R. पुरस्कार – 1999
- पद्म विभूषण – 1999
- जी सिने लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार – 1999
- आई.आई.ए.एफ लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार – 2000
- स्टारडस्ट का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार – 2001
- भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न – 2001
- नूरजहां पुरस्कार – 2001
- महाराष्ट्र भूषण – 2001
( 1970 के उन्होंने गायकी के क्षेत्र में फिल्मफेयर पुरस्कार स्वीकार नहीं किया। उन्होंने यह पुरस्कार उभरते हुए दूसरे गायकों को देने के लिए कहा। )
लता मंगेशकर आज वह हस्ती है , जिनको देश ही नहीं अपितु विदेश भी जानता है , और सराहना करता है। यही कारण है कि इतनी उम्र होने के बावजूद भी वह सबके लिए बड़ी दीदी बनी हुई है। यह उनके चाहने वालों का प्रेम ही है , जो उनसे सदैव जोड़े रहता है। लता जी की आरंभिक दुनिया ऐसी नहीं थी , उन्होंने अपने स्वयं के संघर्ष के बलबूते आज यह मुकाम हासिल किया है।
आज जहां देखने को मिलता है कोई बड़े सितारे का बेटा , अपने बाप की काबिलियत के माध्यम से अपने जीवन में आगे बढ़ता है। लता जी के साथ ऐसा कदाचित नहीं था।
उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर , इस प्रकार की प्रसिद्धि के सख्त खिलाफ थे।
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एक समय की घटना है –
लता जी पास की दुकान से कुछ सामान ले आती है। दुकानदार को जब यह पता चलता है कि , यह लड़की पंडित दीनानाथ मंगेशकर की बेटी है , तो वह उनसे पैसे नहीं लेता। घर आकर लता जी ने जब पैसे न लेने की बात बताई , पिता ने काफी डांट लगाया। उन्हें वापस पैसे देकर आने को कहा और आगे भविष्य में इस प्रकार का कार्य न करने को भी सख्त हिदायत दी। पंडित दीनानाथ मंगेशकर जी का मानना था कि प्रसिद्धि किसी दूसरे के माध्यम से नहीं , अपितु स्वयं के संघर्ष और मेहनत से बनाया जाना चाहिए।
यह सीख लता जी के जीवन पर काफी गहरा प्रभाव डालने में सक्षम रहा। इसी सीख को उन्होंने सदैव अपने मन – मस्तिष्क में रखा। आज लगभग 6-7 दशक हो गए होंगे , उन्होंने निरंतर अपने जीवन में कामयाबी हासिल की। यही कारण है कि आज पूरे विश्व में उनकी प्रसिद्धि है। आज पूरा विश्व उन्हें आदर के साथ सम्मान देता है।
कोई ऐसा पुरस्कार नहीं है जिसे लता जी ने प्राप्त नहीं किया हो।
भारतीय सिनेमा में लता जी का आगमन संयोग नहीं था बल्कि प्रयोग था। लता जी का सपना था कि वह भारतीय सिनेमा में अपने स्वर के माध्यम से योगदान देंगी । यही कारण था कि उन्होंने आजीविका के लिए गायन का क्षेत्र चुना।
लता जी की बहन तथा भाई ने भी भारतीय सिनेमा में गायन का क्षेत्र चयन किया।
लता जी भारतीय सिनेमा में पार्श्य गायन के माध्यम से भारतीय सिनेमा को उच्च शिखर पर ले जाने का भरसक प्रयत्न किया। यही नहीं लता जी ने तीस से अधिक भाषाओं में गीत , भजन आदि गायन किया। अनगिनत अभिनेत्री और अभिनेता को अपने स्वर से पहचान दिलाई। विदेशी पत्रिका टाइम्स ने भी उनके योगदान और प्रसिद्धि को स्वीकार करते हुए , उन्हें एकछत्र स्वर साम्राज्ञी के रूप में स्वीकार किया।
यह उनके जीवन में सिनेमा क्षेत्र के योगदान के लिए बेहद ही सराहनीय पुरस्कार है।
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आरम्भिक जीवन के संघर्ष
लता जी का जन्म मराठी , ब्राह्मण , मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ। पिता दीनानाथ मंगेशकर का लगाओ भारत के उभरते रंगमंच के प्रति था। उन्होंने रंगमंच के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था। वह रंगमंच पर गायन तथा अभिनय का कार्य किया करते थे। लता जी को यहीं से भारतीय सिनेमा क्षेत्र में आने की प्रेरणा संभवत मिली होगी।
आरंभ में उनके पिता नहीं चाहते थे कि , उनके परिवार से और कोई भारतीय सिनेमा के लिए कार्य करें। यही कारण था कि लता जी ने जब पहली बार फिल्म कीर्ति हसाल के लिए एक गाना गाया। तब उनके पिता ने इस गाने को फिल्म में शामिल करने से इंकार कर दिया। किंतु लता जी के प्रतिभा को उन्होंने यहां नहीं पहचाना। लता जी के स्वर से काफी निर्देशक और फिल्म जगत के बड़े-बड़े लोग काफी प्रभावित थे। उन्होंने लता जी को प्रेरित किया।
पिता की मृत्यु के बाद जब आर्थिक संकट ने उनको घेरना आरंभ किया।
घर में बड़ी होने के कारण जिम्मेदारी लता जी के कंधों पर आ टिकी , बहने और भाई उनसे छोटे थे। लता जी अभी महज तरह वर्ष की ही थी , अब उनके सामने अपनी आजीविका को चलाने की कड़ी चुनौती आ खड़ी हुई थी।
तब फिल्मी जगत के बड़े-बड़े लोगों ने उन्हें फिल्म के लिए अपने स्वर देने की मांग रखी। लता जी को पहले से ही गाने का बहुत शौक था , उन्होंने अभिनेत्री के रूप में कार्य करने से इंकार कर दिया , किंतु उन्होंने पार्श्व गायन को स्वीकार किया। वह पर्दे के पीछे से अभिनय करने वालों को अपना स्वर देने लगी। इन के स्वरों में वह जादुई तेज था , जिसे लोगों ने बेहद सराहना करते हुए ग्रहण किया। उनके स्वर की प्रसिद्धि दिन – प्रतिदिन बढ़ती गई। विश्व की ऐसी कोई सीमा नहीं है जो इनके स्वर को रोक सकी हो। इनके चाहने वाले किसी एक सीमा में बंधे नहीं है , देश-विदेश हर जगह इनके स्वर के कद्रदान हैं।
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फिल्म जगत में आगमन
जैसा कि उपरोक्त बता चुके हैं , पिता दीनानाथ मंगेशकर अपनी बेटियों को फिल्म जगत में आने देना नहीं चाहते थे। जब लता जी ने पहली फिल्म के लिए गाना रिकॉर्ड किया तो , उसे फिल्म में शामिल करने से दीनानाथ मंगेशकर जी ने मना कर दिया। किंतु पिता के असमय निधन ( 1942 ) से पूरा परिवार आर्थिक संकट में घिर गया।
सिनेमा तथा रंगमंच जगत के लोगों ने जब अभिभावक बनकर लता मंगेशकर के सामने रंगमंच तथा सिनेमा के लिए कार्य करने का अनुरोध किया तो , अपने बड़ों की बात वह टाल ना सकी। उन्होंने हिंदी और मराठी फिल्मों के लिए गायन तथा अभिनेत्री के रूप में कार्य करना स्वीकार किया।
बतौर अभिनेत्री उनकी पहली फिल्म 1942 में बनी पाहिली मनलागौर थी।
उसके बाद उन्होंने कुछ प्रमुख फिल्मों में काम किया जैसे –
- माझे बाल 1943
- चिमुकला संसार 1943
- गजभाऊ 1944
- बड़ी माँ 1945
- जीवन यात्रा 1946
- माँद 1948
- छत्रपति शिवजी 1952
कुछ फिल्मों में लता जी ने अभिनेत्री का रोल अदा किया , साथ ही खुद के लिए पार्श्व गायन भी किया। लता जी के लिए संगीत का क्षेत्र भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं था।
उस समय की प्रसिद्ध अभिनेत्री तथा गायिका के रूप में –
- नूरजहां ,
- अमीरबाई कर्नाटकी ,
- शमशाद बेगम ,
- राजकुमारी पहले से ही मौजूद थे , जिन्हें चुनौती देना असंभव था।
इनकी लोकप्रियता इतनी थी कि किसी नए कलाकार के लिए अपनी जगह बनाना जंग जीतने के समान था।
फिर भी उन्होंने उन चुनौतियों को स्वीकार करते हुए , अपने आजीविका का क्षेत्र फिल्म जगत को ही बनाया । लता जी ने जिस पहले फिल्म के लिए गाना रिकॉर्ड किया था , पिता के आग्रह पर वह गाना पहले तो फिल्म में शामिल नहीं किया गया। वह फिल्म भी पर्दे पर कभी नहीं आ सकी।
यहां से उनकी कैरियर की शुरुआत मानी जाती है।
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लता जी को गायन के क्षेत्र में 1947 में वसंत जोगलेकर जी के नेतृत्व में सफलता हाथ लगी , उन्होंने उनके लिए –” अंग्रेजी छोरा चला गया। ” , ” दिल मेरा तोड़ा हाय कहीं का ना छोड़ा तेरे प्यार ने। “ गायन किया । इसके बाद कई बड़े हस्तियों ने लता जी को सराहते हुए फिल्म जगत में स्वागत किया जिसमें प्रमुख थे वसंत देसाई , गुलाम हैदर। इन्होंने कितने ही फिल्मों के लिए सिफारिशें की और अपने फिल्मों में कार्य दिया। वह लता जी के प्रतिभा को भलीभांति पहचान चुके थे , वह जानते थे भविष्य के उभरते जगमगाते स्वर्णिम सितारों में से एक है।
1949 में बनी फिल्म महल के लिए उन्होंने पार्श्व गायन का कार्य किया , यह फिल्म पर्दे पर बेहद सफल रही। इसके सभी गाने लोकप्रिय हुए , यहां से लता जी के लिए सफलता के मार्ग खुल चुके थे। फिर उन्होंने एक के बाद एक सभी फिल्मों में सुपरहिट गानों की माला तैयार कर दी। आज तक इन्होंने कहीं विराम नहीं लिया और अभी भी फिल्मों में पार्श्व गायन को अपना सौभाग्य मानती हैं। इनकी प्रसिद्धि आज इससे लगा सकते हैं , इन्होंने 36 से अधिक भाषाओं में गायन किया जिसमें 30000 से अधिक गाने अभी तक वह गा चुकी हैं। कितनी ही देश तथा विदेश की प्रसिद्ध ख्यातिया इन्हें प्राप्त है। पुरस्कार शायद इनके लिए ही बने हो ऐसा लगता है।
लता मंगेशकर जी की साधना
लता जी का परिवार पहले से ही रंगमंच के लिए अभिनय और गायन का कार्य किया करता था , यही उनकी कर्मभूमि थी। लता मंगेशकर को गायन और शास्त्रीय संगीत का ज्ञान विरासत में प्राप्त हुआ था। पिता उन्हें शास्त्रीय संगीत की शिक्षा देना चाहते थे , उन्होंने स्कूली ज्ञान के लिए भी लता जी को विद्यालय में नाम लिखवाया। किंतु वहां शिक्षिका के साथ ठीक प्रकार से नहीं जमा। उन्होंने विद्यालय जाने का विचार बदल लिया और स्वतंत्र रूप से घर पर ही शास्त्रीय संगीत का ज्ञान अर्जन किया।
माना जाता है लता जी नित्य – प्रतिदिन शास्त्रीय संगीत का अधिक समय अभ्यास किया करती हैं। उनके जानने वाले बताते हैं वह जब भी गायन के क्षेत्र में आती हैं तो वह नंगे पांव ही गायन का कार्य करती है। यहां तक कि वह स्टूडियो में भी जब अपने गाने को रिकॉर्ड करती हैं , तब वह नंगे पांव ही होती हैं।
यही साधना उन्हें महान बनाने में योगदान देती है। मां सरस्वती स्वयं उनके जिह्वा पर विराजमान है। उनके वाणी से निकले गए शब्द स्वर लहरियों में इस प्रकार बैठते हैं की दर्शक और श्रोता मंत्रमुग्ध रह जाते हैं। मां सरस्वती की ऐसी अनुकंपा अन्यत्र दुर्लभ है।
लता जी का मानना है उन्होंने जो भी ग्रहण किया है वह समाज की देन है। उन्होंने समाज से ही अपनी सारी शिक्षा ग्रहण की है , उनकी सारी शिक्षा पर अधिकार भी समाज का है। इसलिए वह समाज में अपने ज्ञान को श्रद्धांजलि स्वरूप ऐसे शिष्य तैयार कर रही हैं , जो उनकी विरासत को भविष्य में संभाल सकें। इसलिए उन्होंने विद्यालय के माध्यम से नित्य – प्रतिदिन अपने शिष्यों को शास्त्रीय गायन की कला सिखाती है।
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संगीत के क्षेत्र में अनूठा प्रयोग
जिस समय फिल्म जगत में लता मंगेशकर जी का आगमन उस समय हुआ जब कितनी ही दिग्गज कलाकार पहले से मौजूद थी। जिन्हें ख्याति प्राप्त थी , उनकी प्रसिद्धि जगजाहिर थी। ऐसे समय में अपनी जगह बनाना लता जी के लिए संभव नहीं था।
उन्होंने समय को पहचाना और उर्दू जुबान को सरल शब्दों में प्रयोग किया।
- उन्होंने उर्दू – हिंदी मिश्रित शब्दों को अपने गायन में प्रयोग किया।
- यह प्रयोग लोगों को और अधिक भाने लगा।
- यही कारण है कि लता जी की शैली की प्रसिद्धि दिन – प्रतिदिन बढ़ती गई।
- उनके श्रोताओं की संख्या गुणात्मक रूप से बढ़ती गई।
- उन्होंने पूर्व से चली आ रही परिपाटी को बदल दिया था।
- शास्त्रीय संगीत में भी उन्होंने अधिक राग – अलाप आदि का प्रावधान नहीं किया।
- उन्होंने श्रोता को सर्वोपरि मानते हुए उनके लिए अपने गायन शैली को ढाला।
- इस प्रयोग ने लता जी के प्रसिद्धि का मार्ग खोल दिया था।
फिल्म महल 1949 का एक गाना जिसे नूरजहां के लिए पार्श्वगायन के रूप में गाया गया – “आएगा आने वाला” इस गाने ने फिल्म जगत में उनकी उपस्थिति को दर्ज कराया।
यहां से उन्होंने जो सफलता प्राप्त की , वह सफलता नित्य – निरंतर गुणात्मक रूप से उन्हें प्राप्त होती गई।
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पुरस्कार और सम्मान
लता मंगेशकर किसी सम्मान की मोहताज नहीं है , उनके हजारों – लाखों चाहने वाले उन्हें अपने दिलों में बसाकर रखते हैं। यह किसी भी कलाकार के लिए सबसे बड़ा पुरस्कार और सम्मान होता है। इससे बढ़कर कोई और पुरस्कार तथा सम्मान नहीं हो सकता।
कितने ही पुरस्कार आज लता मंगेशकर जी के पास आकर अपना भाग्य समझ रहे हैं।
कितने ही पुरस्कारों को लता जी ने यह कह कर लेने से मना कर दिया कि , वह किसी नए उभरते कलाकार को पुरस्कार और सम्मान दें। ताकि उनको भविष्य के लिए हौसला मिल सके।
ऐसे महान हस्ती और आत्मा को किसी और पुरस्कार तथा सम्मान की क्या आवश्यकता ?
फिर भी उनके नाम कुछ पुरस्कार और सम्मान लिखे जा चुके हैं जो कुछ इस प्रकार हैं –
भारत सरकार पुरस्कार
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार
फिल्मफेयर अवार्ड्स
महाराष्ट्र राज्य फिल्म पुरस्कार
बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन अवार्ड्स
प्रमुख कलाकारों के साथ काम किया
आज भी लता मंगेशकर जी के साथ कार्य करने के लिए बहुत सारे कलाकार लालायित रहते हैं। किंतु उम्र और समय अब इसकी इजाजत नहीं देता। फिर भी कुछ पाबंदियों के साथ लता जी आज भी सिनेमा जगत में अपना योगदान दे रही हैं। नए सितारे उनके साथ छोटा सा भी कार्य कर कर स्वयं को सौभाग्यशाली मानते हैं। लता दीदी इतनी शांत और शील स्वभाव की हैं कि उनकी छत्रछाया में रहना प्रत्येक कलाकार के लिए गौरव की बात है।
उन्होंने अपने दौर में कुछ प्रमुख हस्तियों के साथ कार्य किया जिनमें –
- अनिल बिस्वास
- शंकर जयकिशन
- सचिन देव बर्मन
- नौशाद
- हुस्न लाल भगत राम
- श्री रामचंद्र
- सलिल चौधरी
- सज्जाद हुसैन
- वसंत देसाई
- मदन मोहन
- खय्याम
- कल्याणजी आनंदजी
- लक्ष्मीकांत प्यारेलाल
- राहुल देव बर्मन
यह कुछ प्रमुख कलाकार थे , जिनके साथ लता दीदी ने बेहद लोकप्रिय सुपरहिट गानों की प्रस्तुति दी।
आज इनके द्वारा बनाए गए संगीत घर – घर में बजते हुए सुन सकते हैं। आज भी कोरा कागज और सिलसिला जैसे फिल्मों के गाने जब कहीं बजते हुए कानों में धुन सुनाई पड़ते हैं , तो व्यक्ति ठहर कर उस गाने को पूरा सुनने को विवश हो जाता है।
कई पीढ़ियों के लिए योगदान
लता जी का संगीत और फिल्म जगत में आगमन लगभग आजादी के आसपास का समय माना जाता है। उस समय की पीढ़ी के साथ लता जी ने कार्य करना आरंभ किया था और यह निरंतर जारी है। आज भी कितनी ऐसी अभिनेत्री है जिनके लिए लता जी अपने स्वर के माध्यम से पार्श्व गायन करती हैं। जिसमें रानी मुखर्जी , करिश्मा कपूर , ऐश्वर्या राय , करीना कपूर आदि ऐसे नए युग की अभिनेत्रियां है , जिनके लिए लता मंगेशकर ने आग्रह पर गाना स्वीकार किया।
लता मंगेशकर ने भारत के प्रथम प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के सामने जब स्टेज पर ऐ मेरे वतन के लोगों का गायन किया वहां श्रोता स्तब्ध रह गए। उनकी आंखों से निरंतर अश्रु की धारा बह रही थी। गाने की प्रत्येक पंक्ति , शब्द लोगों के दिलों में उतर रहे थे। इसके लिए लता जी को सभी लोगों ने हृदय से आभार व्यक्त किया और यह गाना उनके मुख से निकल कर अमर हो गया।
आज भी भक्ति गीत की बात आती है तो , “ऐ मेरे वतन के लोगों” गीत का सर्वप्रथम चयन किया जाता है।
भारतीय सिनेमा में लता जी का योगदान 7 – 8 दशक का माना गया है।
उन्होंने इन दशकों में अनेकों – अनेक कलाकारों के साथ कार्य किया। क्या छोटे और क्या बड़े , सभी उनसे प्रेम करते और वह स्वयं उनसे प्रेम करती। और लोकप्रिय कलाकारों की भांति इनमें लेसमात्र का भी अहंकार और क्रोध नहीं है।
यही कारण है कि आज की पीढ़ियां भी इनका नाम आदर के साथ लेती है।
लता मंगेशकर जी से जुड़े विवाद
लता जी इतने शांत और सौम्य स्वभाव की है , कि उनके साथ किसी विवाद का होना विवादास्पद लगता है। फिर भी लता जी एक सामान्य व्यक्ति है , सामान्य व्यक्ति के साथ कुछ विवादों का होना तो स्वाभाविक है। उन्होंने जिस समय सिनेमा के लिए कार्य करना आरंभ किया , तब से लेकर आज तक उनके साथ कुछ छोटे-मोटे विवाद उनके साथ जुड़े रहे। जिसमें कभी उनके डायरेक्टर और संगीतकार के साथ रहे हो मनमुटाव , कभी वित्तीय लेनदेन के लिए उस समय के वरिष्ठ कलाकारों के साथ खींचतान ।
एक विवाद उनके साथ और जुड़ गया जब उन्हें सफेद साड़ी पहनने के लिए निशाना बनाया गया। लोगों को समझना चाहिए जो संगीत की पूजारन है , स्वयं वह सरस्वती देवी की भक्त अवश्य होगी।
सरस्वती देवी सफेद वस्त्र धारण करती है , तो भक्त भी श्रद्धा स्वरूप सफेद वस्त्र धारण करते हैं।
किंतु लोगों को बात बनाने के लिए छोटा सा माध्यम चाहिए होता है। तिल को भी पहाड़ बना देने वाले लोग समाज में मौजूद हैं। उन्होंने इसको लेकर काफी विवाद उत्पन्न किया किंतु लता जी ने इन विवादों को सदैव नजर अंदाज किया।
मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर के गाने आज भी लोकप्रिय हैं। इन दोनों के बीच गाए जाने वाले गानों को लेकर रॉयल्टी के संदर्भ में कुछ मनमुटाव उस समय देखने को मिलता था।
लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी का यह विवाद लगभग साढ़े तीन साल तक चला था।
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बात यह थी , उस समय गायकों ने एक मंडली बनाई और अपने मेहनत के लिए रॉयल्टी की मांग बड़ी कंपनियों से रखी , जिनके लिए वह गाना रिकॉर्ड किया करते थे। अग्रणी भूमिका में मोहम्मद रफी थे।
मोहम्मद रफी बड़े भोले थे ,वह कंपनियों के बाद में आ गए और उन्होंने उनकी बातों को मान लिया। जिसमें लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी जी के बीच मनमुटाव हो गया। दोनों ने एक दूसरे के साथ गाने के लिए मना कर दिया। यह विवाद तीन – साढे तीन साल तक चला , फिर लता दीदी ने खुद माफी मांग ली।
वह मोहम्मद रफी को बड़े भाई मानती थी , और बड़े भाई से ज्यादा दिन नाराज नहीं रहा जा सकता था।
एक विवाद उनके साथ और यह जुड़ गया 1962 में जब लता मंगेशकर जी के पेट में अचानक दर्द हुआ। डॉक्टर के संपूर्ण इलाज के बाद यह बात निकलकर सामने आई कि उन्हें जहर दिया गया था। इसको लेकर काफी बड़ी चर्चा हुई , किंतु यह बात निकलकर सामने नहीं आई। आखिर किसका लता जी के साथ वैर है ? और किसने उन्हें इस प्रकार का जहर दिया है ?
आज तक यह चर्चा का विषय बना हुआ है।
शादी को लेकर भी लता जी के साथ विवाद जुड़े रहे कभी कोई आरोप लगा था कि वह शादीशुदा है तो कभी उसका खंडन होता।
अनेकों छोटे-मोटे विवादों से लता जी व्यक्तिगत रूप से जुड़ी रहे , किंतु उन्होंने कभी भी स्वयं उन मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया। यही कारण है कि यह मुद्दे उन पर कभी हावी नहीं हो पाए। कुछ समय बाद अपने आप वह मुद्दे शांत हो जाते और इस प्रकार के विवाद उनको छू भी नहीं पाए।
शादी के विषय पर लता मंगेशकर जी की राय
लता जी ने एक इंटरव्यू में बताया था कि , उन्होंने शादी इसलिए नहीं कि क्योंकि पिता की असमय मृत्यु के कारण भाई-बहन की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई थी। सभी को पालन – पोषण करना और व्यवस्थित करना यह उनका दायित्व बन गया था।
अपने भाई – बहन के पालन – पोषण के अतिरिक्त उनके पास और अधिक समय नहीं बचता था , जिसके कारण वह शादी जैसे विषयों से सदैव दूर रही।
किशोर दा से मुलाकात
किशोर दा जी से उनकी पहली मुलाकात बेहद रोचक थी। जब लता मंगेशकर जी ने चालीस के दशक में गाना आरंभ किया था , तब वह मालवाड़ लोकल ट्रेन से जाया करती थी। उसके बाद वहां से मुंबई स्टूडियो पैदल ही निकल जाया करती थी। रास्ते में उन्हें एक व्यक्ति मिलता जो उन्हें देखकर हंसता और कभी अपनी छड़ी घुमाता और अजीब हरकतें करता है जैसे कोई मदारी या निर्देशक करता है।
इस व्यक्ति की हरकतें लता जी को पसंद नहीं आई।
यह व्यक्ति एक दिन स्टूडियो में भी पहुंच गया। यह देखकर लता जी आश्चर्यचकित रह गई , कि यह मेरा पीछा करते हुए यहां तक आ गया। उन्होंने खेमचंद प्रकाश जिसे कहा – चाचा यह लड़का मेरा रोज पीछा करता है , मुझे देख कर हंसता है। खेमचंद जोर से हंसे और कहा अरे यह अशोक कुमार का छोटा भाई किशोर दा है।
यह भी इसी फिल्म के गाने को रिकॉर्ड करने आए हैं।
वाकई यह दृश्य काफी हास्यास्पद था , उनके विषय में लता जी से बातें करते हैं , तो वह हमेशा या कहती हैं किशोर दा की बात अगर मैं करने लगु तो हंसते-हंसते समय निकल जाएगा , मगर उनकी बातें कभी खत्म नहीं होगी।
स्वामी विवेकानंद जी की कहानियां
लता मंगेशकर जी की पसंदीदा अभिनेत्रीयां
लता मंगेशकर जी के प्रिय तो फिल्म जगत में काम करने वाले सभी हैं। उनका यही सौम्य स्वभाव सबके लिए प्रिय बनाता है। किंतु व्यक्तिगत वह जिन अभिनेत्रियों को पसंद करती हैं उनमें से –
- नरगिस दत्त
- मीना कुमारी
- वहीदा रहमान
- साधना
- सायरा बानो और
- दिलीप कुमार है जो उन्हें छोटी बहन भी मानते हैं।
नए युग की अभिनेत्रियां जिसमें –
- काजोल
- रानी मुखर्जी
- ऐश्वर्या राय
उन्हें अधिक प्रिय हैं , जिनके लिए गाना , गाना उन्हें बेहद ही पसंद आता है।
मुकेश भैया और दिलीप भैया के लिए वह आज भी बातें करते हुए उसी युग में पहुंच जाती है। जब वह युवा हुआ करती थी उनकी बातें उनकी शैली आज भी याद करके उनके होठों पर मुस्कान आ जाती हैं। उस जमाने को लता जी आज भी याद कर सुकून महसूस करती हैं।
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लता मंगेशकर जी के गाने सुनना मुझे बहुत अच्छा लगता है. आपने उनकी जीवनी बहुत अच्छे तरीके से लिखी है.
मुझे उनके बारे में बहुत सारी नई बातें भी पता चली जो मुझे अभी तक कहीं सुनने को या पढ़ने को नहीं मिला था.
हमें आपका कॉमेंट पढ़ कर बहुत अच्छा लगा. आप लोगों के ऐसे फीडबैक पढ़कर हमें काफी प्रेरणा मिलती है.