लालकृष्ण आडवाणी किसी परिचय के मोहताज नहीं है। उनकी प्रसिद्धि और ख्याति इतनी है कि आज वह राजनीति में पितामह के नाम से भी जाने जाते हैं। वह भारतीय जनता पार्टी के सर्वोच्च व्यक्तियों में गिने जाते हैं। राजनीति में उनका नाम कोई भी पार्टी बड़े आदर के साथ लेती है।लालकृष्ण आडवाणी ने राजनीति को एक नया आयाम दिया। एक समय था जब प्रधानमंत्री क्या प्रबल उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी को माना जा रहा था।
इस लेख में लालकृष्ण आडवाणी के संपूर्ण जीवन पर प्रकाश डालने का प्रयास कर रहे हैं।
यह लेख आडवाणी जी के जीवन आरंभिक शिक्षा , राजनीति , सामाजिक दृष्टिकोण , तथा जीवन के अन्य आयामों पर विस्तार से लिखने का प्रयत्न स्वरूप है।
यह सभी तथ्य निजी जानकारी तथा समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर प्रस्तुत है।
कितनी ही बार भारतीय समाचार में अडवाणी जी प्रमुख खबर के रूप में देखने तथा सुनने को मिले , उन सभी को स्रोत बनाकर यह लेख लिखा जा रहा है।
लालकृष्ण आडवाणी जी का संपूर्ण जीवन परिचय
जन्म – 8 नवम्बर 1927
स्थान – सिंध प्रान्त के कराची शहर (पकिस्तान)
पिता – के.डी. अडवाणी
माता – ज्ञानी अडवाणी
विवाह – 25 फरवरी 1965
पत्नी – कमला अडवाणी
पुत्र – जयंत आडवाणी , प्रतिभा आडवाणी
आरंभिक शिक्षा – लाहौर
उच्च शिक्षा – मुंबई गवर्नमेंट ऑफ़ लॉ कॉलेज से स्नातक
छवि – आक्रामक , हिन्दू पक्षधर , अन्य धर्मो के प्रति उदारता का भाव।
आरंभिक जीवन
आडवाणी जी का आरंभिक जीवन उन राहों के किनारे गुजरा जिस रास्ते विदेशी लुटेरे तथा आक्रमणकारी आए। निश्चित रूप से आडवाणी जी का आरंभिक जीवन शांतिपूर्ण नहीं बिता होगा।
इस रास्ते पर पडने वाले गांव , कस्बे , शहर सभी भय के माहौल में ही रहा करते होंगे।
किंतु जिस समय आडवाणी जी का जन्म हुआ उस समय तक विदेशी आक्रमणकारी तथा लुटेरों का आना जाना इस रास्ते बंद हो चुका था। फिर भी कराची तथा सिंध प्रांत में चुनौतियां कम नहीं थी – कभी बाढ़ तो कभी अंग्रेजो का भय सदैव बना रहा करता था।
आडवाणी जी का आरंभिक जीवन सिंध प्रांत के कराची शहर में ही हुआ।
किंतु यहां आधुनिक शिक्षा का अभाव था , ग्रामीण परिवेश में शिक्षा नाम मात्र की थी।
यही कारण है कि उच्च शिक्षा के लिए इन्हें मुंबई की ओर रुख करना पड़ा।
आडवाणी जी ने वह समय देखा है जब भारत का विभाजन किया गया था। निश्चित रूप से अडवाणी जी सिंध प्रांत के कराची को छोड़कर भारत के सरहद में शरण प्राप्त हुए। क्योंकि कराची वर्तमान के पाकिस्तान का अभिन्न अंग बन चुका था। इन्होंने इस विभाजन के जिजीविषा को बेहद ही बारीकी से देखा था। किस प्रकार लोग आपस में भय के माहौल में जीवन यापन कर रहे थे अनेकों दंगे को महसूस किया और उसको जिया भी था।
आज भी उन दंगों को याद करते हुए आडवाणी जी की आंखें नम हो जाती है।
सामाजिक दृष्टिकोण
आडवाणी जी राजनीति क्षेत्र में चाहे जो भी हो , इनका सामाजिक क्षेत्र सौहार्दपूर्ण रहा। व्यक्तिगत रूप से यह सर्व धर्म के प्रेमी थे। सभी धर्म सौहार्द से रहे इसकी वकालत किया करते थे।
सभी धर्मों के प्रति सम्मान की भावना इनके निजी व्यक्तित्व में कूट-कूट कर भरी हुई है।
हिंदू-मुस्लिम करने वाले राजनेताओं को यह आईना दिखाने का कार्य करते हैं।
अडवाणी जी व्यक्तिगत रूप से हिंदू धर्म के हैं किंतु इन्होंने मुसलमान , पारसी , ईसाई , बौद्ध आदि धर्मों को भी समान मानते हुए व्यवहार किया। यही कारण है कि आडवाणी जी कभी मुसलमानों के मजार , मस्जिद पहुंच जाते हैं तो कभी इसाई के गिरिजाघर।
उनका मानना था धर्म का विषय राजनीति से दूर रहना चाहिए।
जो लोग धर्म को राजनीति के लिए प्रयोग करते हैं उनके यह कठोर आलोचक थे।
लालकृष्ण आडवाणी जी का राजनीति में आगमन
आडवाणी जी जिस युग और समय के थे वह समय राजनीति का समय था। उस समय अंग्रेजी हुकूमत भारत में काबिज थी , निरंतर अंग्रेजों के अत्याचार , अनाचार बढ़ते जा रहे थे। भारतीय जनता अंग्रेजों के शासन व्यवस्था से त्रस्त थी।
किसी भी मूल्य को चुका कर वह इस व्यवस्था से मुक्त होना चाहती थी।
राजनीति के क्षेत्र में महात्मा गांधी का आगमन हो चुका था।
महात्मा गांधी ने स्वाधीनता के लिए अनेकों अनेक मुहिम चलाए। कोई ऐसा भारतीय नहीं होगा जो , महात्मा गांधी के आंदोलनों से अछूता रहा होगा।
लालकृष्ण आडवाणी का जन्म 1927 में हुआ यह समय कितने ही पूर्व विद्रोह को देख चुका था।
1857 की क्रांति के उपरांत निरंतर भारतीय जनता , स्वाधीनता के लिए संघर्ष कर रही थी।
महात्मा गांधी के आंदोलन इस समय चरम सीमा पर था।
लालकृष्ण आडवाणी ने आरंभिक जीवन सिंध प्रांत के कराची शहर में बिताया।
यह वह मार्ग था जिस मार्ग से मुगल और अरब देश के लुटेरे आए थे। अर्थात इनके पूर्वजों ने मुगल तथा अन्य आक्रमणकारियों के अत्याचार को काफी बारीकी से महसूस किया होगा।
अडवाणी जी ने आपने आरंभिक शिक्षा जन्मभूमि कराची शहर में ही प्राप्त की।
तदुपरांत उच्च शिक्षा के लिए वह मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज में आए , यहां से उन्होंने स्नातक की डिग्री हासिल की। कॉलेज में पढ़ाई करते हुए इन्होंने राजनीति में भी भाग लिया , छात्र राजनीति में इन्होंने बढ़-चढ़कर अपना योगदान दिया।
महात्मा गांधी के आंदोलनों को भारतीय छात्र संघ तथा छात्र नेता प्रोत्साहित कर रहे थे।
जनसंघ की स्थापना 1951
आडवाणी जी ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ राजनीति क्षेत्र में अपने विचारों तथा प्रतिनिधित्व को बढ़ाने के लिए जनसंघ की स्थापना की। यह राजनीतिक पार्टी थी , इसका उद्देश्य था राजनीति में हो रही हिंदू धर्म की अवहेलना की ओर सरकार का ध्यान आकृष्ट करना।
1951 – 1957
जनसंघ की स्थापना के बाद से अडवाणी जी जनसंघ के सचिव के रूप में कार्यरत रहे।
1973-1977
जनसंघ में अहम योगदान निभाते हुए अडवाणी जी ने इस दौरान अध्यक्ष का पद भी संभाला।
1977-1979
आडवाणी जी ने इस समय पहली बार केंद्रीय सरकार में सूचना प्रसारण का दायित्व संभाला।
1980
इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान 1975 में आपातकाल लगाया गया। आपातकाल की समाप्ति के बाद जनता पार्टी का विलय अन्य पार्टियों के साथ हो गया। तदुपरांत 1980 में बी.जे.पी (भारतीय जनता पार्टी) की स्थापना की गई जिसमें लालकृष्ण आडवाणी की भी अहम भूमिका थी।
1980-1986
बी.जे.पी के स्थापना के बाद छः साल तक निरंतर अडवाणी जी बी.जे.पी के महासचिव के रूप में कार्य करते रहे।
1986-1991
आडवाणी जी का कद निरंतर बीजेपी में बढ़ता जा रहा था।
उनके कार्य के प्रति समर्पण तथा लगन को सभी कार्यकर्ता सम्मान कर रहे थे। यही कारण था कि छः साल महासचिव के पद पर कार्य करने के बाद उन्हें , बीजेपी का अध्यक्ष सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया।
1992
राम मंदिर निर्माण के लिए आडवाणी जी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा की घोषणा की थी। इनके इस घोषणा को जनमत मिल रहा था। बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने इनके रथयात्रा को रोकते हुए 23 अक्टूबर 1990 को समस्तीपुर से गिरफ्तार कर लिया था।
6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का विध्वंस कर दिया गया था।
इस आंदोलन में मुख्य साजिशकर्ता के रूप में आडवाणी जी को अभियुक्त बनाया गया।
1999 –
1999 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार केंद्र में स्थापित हुई , जिसमें आडवाणी जी को केंद्रीय गृह मंत्री का दायित्व सौंपा गया।
29 जून 2002
आडवाणी जी का राजनीतिक कद इस समय तक इतना बढ़ चुका था , आप उनके पद से अंदाजा लगा सकते हैं।
वह 2002 में एन.डी.ए (नेशनल डेमोक्रेटिक एलाइंस) के उप प्रधानमंत्री भी चुने गए।
आडवाणी जी चार बार राज्यसभा तथा पांच बार लोकसभा के सदस्य के रूप में अपनी भूमिका का निर्वाह कर चुके हैं।
लालकृष्ण आडवाणी जी की रथ यात्रा
लालकृष्ण आडवाणी ने अनेकों रथ यात्रा निकाले किंतु प्रसिद्ध सोमनाथ से अयोध्या की यात्रा 1990 की रही। राम मंदिर निर्माण के लिए संतों ने जनमत आंदोलन छेड़ दिया था। आडवाणी जी इसमें अहम भूमिका निभा रहे थे। उन्होंने श्री राम का रथ राम मंदिर निर्माण के लिए सोमनाथ से अयोध्या तक ले जाने का प्रण लिया।
रथ बिहार के समस्तीपुर रास्ते उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक जाना था।
बिहार में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव जो राष्ट्रीय जनता दल के मुखिया थे , यह बीजेपी विरोधी सरकार थी। यही कारण था , अपनी राजनीतिक प्रसिद्धि दिखाने के लिए लालू प्रसाद यादव ने , समस्तीपुर में लालकृष्ण आडवाणी के रथ को 23 अक्टूबर 1990 को रोकते हुए गिरफ्तार करवा लिया।
लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी ने उनका राजनैतिक कद और बढ़ा दिया था। अब वह पूरे देश में हिंदू धर्म के मुख्य नायक के रूप में प्रसिद्ध हो गए थे। वह बीजेपी के संस्थापकों में से एक थे , B.J.P. (भारतीय जनता पार्टी) ने केंद्र में कार्यरत सरकार वी.पी सिंह से समर्थन वापस ले लिया।
जिसके कारण सरकार गिर गई और बी.जे.पी को बहुमत हासिल हुआ।
आडवाणी जी की अनेकों यात्राओं में से छः प्रसिद्ध यात्रा रही जिनका प्रमुख रूप से अध्ययन किया जाता है।
1. राम रथ यात्रा
जैसा कि उपर्युक्त बताया गया है राम मंदिर निर्माण के लिए अडवाणी जी ने सोमनाथ से अयोध्या की यात्रा आरंभ किया था। इस यात्रा को बिहार से होकर उत्तर प्रदेश की ओर जाना था। तत्कालीन बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने बिहार के समस्तीपुर में 23 अक्टूबर 1990 को रथ रोक दिया और लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया।
2. जनादेश यात्रा
आडवाणी जी ने इस यात्रा की शुरुआत 1993 में मैसूर से किया था। यह यात्रा लगभग 15 राज्यों से होते हुए गुजरा था। इस यात्रा का उद्देश्य धर्म से संबंधित सशक्त बिल बनाने की मांग करना था। इस बिल के अंतर्गत यह विश्वास दिलाना था कि कोई भी व्यक्ति अपने धर्म के प्रति अपनी आस्था प्रकट कर सकता है।
व्यक्ति पर किसी दूसरे धर्म का आक्रमण या अतिक्रमण नहीं होगा।
3. स्वर्ण जयंती रथयात्रा
आडवाणी जी ने 1997 में देश के पांचवी सालगिरह के अवसर पर स्वर्ण जयंती रथ यात्रा का आयोजन किया। इस रथ यात्रा का नाम राष्ट्रभक्ति तीर्थ यात्रा दिया।
यात्रा के माध्यम से शहीदों को श्रद्धांजलि तथा जनमानस में देश भावना को जगाना था।
समाज में घटते देशभक्ति की भावना को , मजबूत तथा सुदृढ़ बनाने के लिए यात्रा का आयोजन किया गया था।
4. भारत उदय यात्रा
भारत की आजादी से 2004 तक ऐसी कोई मजबूत प्रगति तथा आर्थिक लाभ भारत को प्राप्त नहीं हुई थी। ग्रामीण क्षेत्र अभी भी अभावग्रस्त जीवन यापन करने को मजबूर थे। 2004 की अटल बिहारी सरकार ने आर्थिक क्षेत्र में अभूतपूर्व उपलब्धि हासिल की थी। देश निरंतर प्रगति के मार्ग पर चल रहा था। लोगों की आर्थिक मजबूती बढ़ रही थी , इस मजबूती के आभार के लिए लोगों को बधाई स्वरूप भारत उदय यात्रा का आयोजन किया गया।
अडवाणी जी ने इस यात्रा को पूरे देश में भारत उदय यात्रा के नाम से आयोजन किया।
5. भारत सुरक्षा यात्रा
भारत की आजादी के बाद निरंतर बम धमाके तथा हमले हो रहे थे। एक से बढ़कर एक हमले भारत में आतंकवाद की मौजूदगी का एहसास करा रहे थे। इसी कड़ी में 2006 का वाराणसी बम धमाका था।
सरकार के सुस्त रवैया और वही लीपा-पोती वाली कार्यवाही के कारण जनमानस में काफी आक्रोश था।
लोग जन आंदोलन करने को मजबूर थे।
इसी समय लालकृष्ण आडवाणी ने भारत में भारत सुरक्षा यात्रा नाम से पूरे देश में यात्रा का आयोजन किया। इसके माध्यम से सरकार पर दबाव डालना और सुरक्षा को सुनिश्चित करते हुए कड़े कानून बनाने के लिए प्रावधान करने का आग्रह किया गया था।
6. जन चेतना यात्रा
लालकृष्ण आडवाणी के जीवन काल में यह सबसे सफल और सशक्त यात्रा रहा। स्वयं उन्होंने स्वीकार किया है कि इससे पूर्व उन्होंने इस प्रकार सफल यात्रा नहीं किया था। अक्टूबर 2011 में जयप्रकाश नारायण की जन्मस्थली से लेकर रामलीला मैदान के लिए आडवाणी जी ने यात्रा आरंभ किया था। यह यात्रा देश भर में फैल रहे बड़े – बड़े भ्रष्टाचार और नौकरशाहों के सुस्त रवैया जो भारत की अर्थव्यवस्था को खोखला कर रहे थे।
उन सभी के प्रति यह कड़ा प्रहार के रूप में था।
इस यात्रा का समापन दिल्ली के रामलीला मैदान में हुआ , जिसमें बड़े-बड़े दिग्गज नेता शामिल हुए।
लोगों का अभूतपूर्व समर्थन प्राप्त हुआ , सभी लोग भ्रष्टाचार से त्रस्त थे
अतः लालकृष्ण आडवाणी को लोगों ने पुरजोर समर्थन किया।
लालकृष्ण आडवाणी के जीवन काल में यह छः यात्रा विशेष योगदान रखती है।
इन यात्राओं ने आडवाणी जी के व्यक्तित्व उनके राजनीतिक अस्तित्व आदि का संपूर्ण व्याख्या कर दिया था।
यूं ही नहीं यह भारतीय जनता पार्टी के पितामह के रूप में भी जाने जाते हैं।
RSS से लालकृष्ण आडवाणी जी का नाता
आर एस एस की स्थापना 1925 में डॉ हेडगेवार के द्वारा हो चुकी थी। यह हिंदू धर्म का रक्षक के रूप में कार्य कर रहा था। सर्व धर्म सम्मान का भाव रखते हुए सामाजिक सौहार्द को मजबूत करने का भी प्रयत्न कर रहा था।
आज आर एस एस की भूमिका देश ही नहीं अपितु विदेश में भी देखने को मिलती है।
बीजेपी के शीर्ष नेता आर एस एस से ही प्रेरणा प्राप्त किए हुए हैं।
नरेंद्र मोदी , अमित शाह, नितिन गडकरी , प्रकाश जावड़ेकर , स्मृति ईरानी , अरुण जेटली आदि जितने भी शीर्ष नेता है , यह सब आर एस एस से जुड़े हुए थे। आर एस एस के विचारों और उसके शुद्ध निष्काम भावों का ही प्रभाव है कि इन्होंने अपनी छवि और चरित्र का लोहा देश ही नहीं अपितु विदेश में भी बनवाया।
नरेंद्र मोदी जैसा कोई सशक्त नेतृत्वकर्ता आज तक नहीं हो सका है।
सुषमा स्वराज जैसा विदेश मंत्री मिलना आज भी दुर्लभ है , जिन्होंने अपने शांत स्वभाव और सेवा करने की भावना से , विदेशों को भी भारत के महान चरित्र को दिखाने का काम किया है। लालकृष्ण आडवाणी जी 1942 से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मजबूत कार्यकर्ता के रूप में कार्य कर रहे हैं। इन्होंने कराची शहर में ही प्रचारक के रूप में कार्य आरंभ किया था , वही कार्य करते हुए उन्होंने अनेकों – अनेक शाखाओं की स्थापना की।
आज भी लालकृष्ण आडवाणी जी का लगाओ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रति है।
प्रधाननत्री के प्रबल दावेदार
आडवाणी जी 2007 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री के प्रबल उम्मीदवार के रूप में चर्चा के विषय बने हुए थे। 2004 से 2009 तक विपक्ष में आडवाणी जी अध्यक्ष की भूमिका का निर्वाह कर रहे थे।
नेशनल डेमोक्रेटिक दल ने अपने प्रधानमंत्री के रूप में आडवाणी जी की घोषणा कर दी थी।
कितने ही चैनलों पर आडवाणी जी ने स्वयं को प्रधानमंत्री का प्रबल दावेदार घोषित कर दिया था।
उनके समर्थन में बीजेपी तथा नेशनल डेमोक्रेटिक दल के शीर्ष नेता थे।
- 2007 लोकसभा चुनाव में जहां एक और आडवाणी जी को प्रधानमंत्री बनाने की चर्चा जोर से थी , वही नरेंद्र मोदी को भी प्रधानमंत्री का प्रबल उम्मीदवार माना जा रहा था।
- 2007 के लोकसभा का चुनाव कांग्रेस के पक्ष में रहा। जिससे बीजेपी तथा नेशनल डेमोक्रेटिक दल का सपना धरा रह गया। बीजेपी बहुमत हासिल नहीं कर सकी और कांग्रेस के मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण किया।
- चुनावों में नेतृत्व करते हुए बीजेपी वह सम्मान नहीं प्राप्त कर पाई जिसकी आशा थी। यही कारण है कि बीजेपी में नए चेहरों की तलाश आरंभ हो गई थी। 2013 में एक समय ऐसा आया जब अडवाणी जी ने बीजेपी के समस्त पदों से इस्तीफा दे दिया था।
लालकृष्ण आडवाणी जी से जुड़े प्रमुख विवाद
व्यक्ति जितना प्रसिद्ध होता है उसकी आलोचना भी उतनी ज्यादा होती है। यही कारण है कि आडवाणी जितने प्रसिद्ध व्यक्ति हैं , उनकी आलोचना भी समाज में होनी निश्चित है। कितने ही ऐसे मौके देखने को मिले हैं , जब आडवाणी जी का ब्लॉग या उनकी बयानबाजी के कारण वह आलोचकों के निशाने पर रहे।
लालकृष्ण आडवाणी जी पर शेयर ब्रोकर से हवाला के माध्यम से रिश्वत लेने का बढ़ा आरोप लगा यह आरोप सुप्रीम कोर्ट तक गया किंतु सबूतों के अभाव में आडवाणी जी को बरी कर दिया गया किंतु यह उनकी प्रतिष्ठा पर दाग लगाने वाला साबित हुआ।
2004 से 2009 तक आडवाणी जी भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष के रूप में पद संभाल रहे थे।
2009 में मिली करारी हार के बाद अपनी ही पार्टी के लोगों ने उन पर विश्वास जताना आरंभ कर दिया दिग्गज नेता आडवाणी के आलोचक बन गए वह किसी नए चेहरे की तलाश कर रहे थे
आडवाणी जी जहां हिंदू धर्म के अग्रणी नेताओं में से एक माने जाते हैं।
उन्होंने 2005 कराची दौरे के दौरान मोहम्मद अली जिन्ना जिन्होंने मुसलमानों की राजनीति की और उन्हीं के आधार पर अपने लिए अलग देश की मांग की। भारत को दो खंडों में विभाजित कर दिया। ऐसे व्यक्ति को धर्मनिरपेक्ष पता कर उसका महिमामंडित करना लालकृष्ण आडवाणी को काफी भारी पड़ा। हिंदू धर्म के जुड़े लोगों ने उनकी आलोचना की आर एस एस , बी जे पी , विश्व हिंदू परिषद आदि के लोगों ने उनकी कड़े शब्दों में निंदा की।
नरेंद्र मोदी से लालकृष्ण आडवाणी के संबंध
लालकृष्ण आडवाणी तथा नरेंद्र मोदी के संबंध सौहार्दपूर्ण है , दोनों एक दूसरे के प्रशंसक हैं। एक – दूसरे को कई मौकों पर सलाह देते हुए भी देखा गया है।
नरेंद्र मोदी , लालकृष्ण आडवाणी के प्रबल प्रशंसक है।
वह उनके मार्गदर्शन के नेतृत्व में ही निरंतर आगे बढ़ते रहे।
लालकृष्ण आडवाणी आर एस एस के प्रचारक रहे हैं , और नरेंद्र मोदी ने भी प्रचारक की भूमिका में आर एस एस की काफी सेवा की है। ‘
ऐसे में दोनों संघी भाई हैं।
कुछ लोग नरेंद्र मोदी और आडवाणी जी के रिश्तो के मध्य प्रश्नचिन्ह उठाते हैं।
उनका मानना है कि 2014 लोकसभा चुनाव के बाद नरेंद्र मोदी ने लालकृष्ण आडवाणी को हाशिए पर डाल दिया है , किंतु ऐसा नहीं है। उसके बाद भी ऐसे मौके आए हैं जब नरेंद्र मोदी ने उन्हें झुक कर प्रणाम किया है या उनके पैर को छूकर आशीर्वाद लिया है।
अगर किसी प्रकार का मन में कड़वाहट होता , तो नरेंद्र मोदी कदाचित ऐसा कार्य नहीं करते।
दोनों एक दूसरे के जन्मदिन तथा शुभ अवसरों पर शुभकामनाएं देते नजर आते हैं।
बीजेपी ने आडवाणी जी के योगदान को कभी कम नहीं आंका है।
किंतु अब उनकी आयु राजनीति में सेवा करने की नहीं रही है।
इसलिए उन्होंने स्वेच्छा से स्वयं को राजनीति में सक्रिय भूमिका से अलग रखा है।
उनका स्वास्थ्य पहले जैसा नहीं है , इसलिए वह अग्रणी भूमिका में राजनीति नहीं करते।
जिसका विपक्षी दुष्प्रचार कर बीजेपी में दरार डालने का कार्य करते हैं।
कांग्रेस के दिग्गज नेता इस मौके का फायदा उठाकर आडवाणी और नरेंद्र मोदी के बीच दरार डालकर बीजेपी को दो गुटों में बांटने का सदैव प्रयत्न करते रहते हैं।
यही कारण है कि समाचार पत्रों की , हेडिंग तथा टीवी चैनलों का ब्रेकिंग न्यूज़ यही मुद्दे बनते हैं।
लोगों की अपनी विचारधारा है , वह क्या समझते हैं।
किंतु वास्तविकता यह है कि नरेंद्र मोदी और लालकृष्ण आडवाणी के बीच कोई विवाद नहीं है इनके संबंध सुखद पूर्ण है।
लालकृष्ण आडवाणी जी को मिले पुरस्कार
आडवाणी जी को अपने जीवन काल में अनेकों पुरस्कार मिले जिनमें –
- भारतीय संसद द्वारा अच्छे सांसद का पुरस्कार।
- 2015 पद्म विभूषण
लालकृष्ण आडवाणी जी की रुचि का क्षेत्र
- धार्मिक किताबों का अध्ययन
- वैश्विक समाचार को जानने की इच्छा
- संगीत प्रिय
- लोकप्रिय लेखकों के किताब पढ़ना
- पुराने सिनेमा के कद्रदान।
लालकृष्ण आडवाणी जी ने एक पुस्तक की रचना 2008 में की जिसका नाम ” माय लाइफ माय कंट्री “ है।
इस पुस्तक का विमोचन तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने किया था।
यह लगभग 1080 पृष्ठों का है यह 2008 में बिकने वाली किताबों में सर्वोपरि रही।
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सर आप बहुत अच्छा लिखते है मै आपकी Daily Reader हूँ आप हमेशा बहुत ही ज्ञान वर्धक जानकारिय शेयर करते है …सर आपका बहुत बहुत धन्यवाद !