आज के लेख में हम भगवान कृष्ण की कहानियां लिख रहे हैं। यह संकलन सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए है।विशेषकर बालक इन कहानियों के माध्यम से प्रेरणा ले सकते हैं। अपने जीवन को एक नया लक्ष्य दे सकते हैं।
इन कहानियों को दादी नानी की कहानियां के जैसा भी सुनाया जा सकता है।जिससे उनके नैतिक और चारित्रिक विकास के लिए यह कहानियां कार्य कर सकती है।
पांच भगवान श्री कृष्ण की कहानियां
रास्ते का मित्र कौन था
सुदामा श्री कृष्ण के बाल सखा थे दोनों ने गुरुकुल में एक साथ शिक्षा ली थी। सुदामा बेहद ही गरीब ब्राह्मण थे उन्हें खाने के लिए भिक्षा का सहारा लेना पड़ता था। क्योंकि वह सच्चे ब्राह्मण थे इसलिए वह केवल पांच घरों से ही दिन भर में भिक्षा मांगा करते थे। जितना मिलता उसी में अपना और परिवार का भरण-पोषण किया करते थे। यह भिक्षा उनके लिए पर्याप्त नहीं था अर्थात उनका और परिवार का पेट ठीक प्रकार से नहीं भर पाता था। इसी भिक्षा से अतिथि सत्कार भी हुआ करता था। सुदामा की पत्नी को यह ज्ञात था कि श्री कृष्ण द्वारिका के महाराजा हैं। वह सुदामा के बाल सखा हैं।
उनके ऐश्वर्य और वैभव की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी।
अगर सुदामा अपने सखा से सहायता मांगेंगे तो वह ना नहीं कहेंगे।
ऐसा विचार करते हुए उन्होंने काफी प्रयत्न के बाद सुदामा को द्वारिका जाने के लिए मना लिया। रास्ता बहुत लंबा था और जाने का एकमात्र साधन स्वयं अपने दो पैर थे।सुदामा अपने मित्र से मिलने संकोच और लज्जा के साथ द्वारिका की ओर निकल गए। काफी दूर चलने के बाद उन्हें रास्ते में मुरारी से भेंट हुई उसके पास एक बैलगाड़ी थी जिस पर व्यापार के लिए खूब सारा माल लगा हुआ था। मुरारी ने सुदामा को अपने साथ द्वारिका चलने के लिए मना लिया दोनों बैलगाड़ी पर सवार होकर द्वारिका की ओर चलने लगे।
रास्ते भर मित्र की भांति मुरारी,सुदामा के साथ हंसी-ठिठोली करता रहा।
द्वारिकाधीश उसके मित्र हैं इस पर भी उसका उपहास करता रहा किंतु सुदामा उसकी बातों पर जरा भी क्रोध नहीं करता।
द्वारिका के निकट पहुंच कर मुरारी ने अपनी बैलगाड़ी प्राचीन मंदिर के पीछे रोक लिया और सुदामा को कहा –
‘विप्रवर अब आपकी और मेरी राह अलग है, अब आप द्वारिका प्रस्थान कीजिए और मैं अपने व्यापार के लिए आगे बढूं’
ऐसा कहते हुए दोनों अपनी राह अलग-अलग चुन ली।
सुदामा कुछ दूर गया ही होगा कि वह धन्यवाद और उससे कहां रहता है जानने के लिए मंदिर के पीछे आया,
किंतु वहां कोई नहीं था और ना ही बैलगाड़ी या उसका कोई नामोनिशान।
सुदामा आश्चर्यचकित और स्तब्ध रहा उसके समझ में कुछ नहीं आ रहा था अभी वह एक क्षण पहले मुरारी के साथ बातचीत कर रहा था दूसरे क्षण वहां कोई नहीं है।
वह समझ गया यह अवश्य ही उसके मित्र छलिया श्री कृष्ण की कोई लीला होगी।
वास्तव में ऐसा ही था जब दोनों की मुलाकात हुई तो मुरारी की घटना पर दोनों मुस्कुरा रहे थे।
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2. भक्त की रक्षा
( कृष्ण की कहानियां )
सूरज लगभग आठ वर्ष का बेहद ही दुर्बल बालक था। उसका पारिवारिक व्यवसाय लकड़ी काटना और उन्हें बाजार में बेचना था। एक दिन सूरज यमुना के किनारे लकड़ियां काट रहा था। एक पेड़ की सूखी टहनियां यमुना नदी की ओर झुकी हुई थी।
सूरज की एक एक विशेषता थी वह हरे-भरे टहनियों को नहीं काटता था।
सुखी टहनी देखकर उसने सोचा क्यों ना आज इसे काटा जाए ! तुरंत ही अपनी कुल्हाड़ी लेकर उस टहनी को काटने लगा। क्योंकि वह टहनी यमुना नदी में झुकी हुई थी,अंतिम प्रहार से वह टहनी टूट कर नदी में गिर गई। उस टहनी को बचाने के प्रयास में सूरज यमुना नदी में गिर गया।यमुना नदी की धारा तीव्र थी क्योंकि उस समय बरसात का मौसम था।
वह अनेकों प्रयास के बावजूद भी उस धारा में बहने से ना बच सका।
काफी देर मशक्कत के बावजूद भी सफल नहीं हो सका और धारा में बहता चला गया।
उसने अपने इस कठिन क्षणों में अपने आराध्य श्री कृष्ण को मदद के लिए पुकारा।
इससे पहले उसने कृष्ण को कभी अपने निजी हितों के लिए नहीं पुकारा था। श्री कृष्ण अपने भक्त की पुकार सुनते ही वहां उपस्थित हुए। कृष्ण जी ने देखा सूरज बेहोश और अचेत अवस्था में है। उन्होंने सूरज को किनारे सकुशल लाकर लिटाया। सूरज को यह अहसास था कि उसे किसी ने बीच नदी से उठाकर किनारे पर लाया और उसकी देखरेख की।
नींद खुला तो वहां कोई मौजूद नहीं था।
उसने अपने पास मोरपंख देखा तो जान गया उसके प्रभु उसकी रक्षा के लिए आए थे।
वह सकुशल बच गया था।
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3. कृष्ण बन गए रखवाले
( कृष्ण की कहानियां )
वृंदावन के एक छोटे से गांव में पारो और रामदरस नाम के पति-पत्नी रहा करते थे। वह आंखों से देख नहीं सकते थे। मंदिर के बाहर भिक्षा मांग कर अपना जीवन निर्वाह कर रहे थे। दोनों दिन-रात कृष्ण की भक्ति किया करते थे।
भोजन से पूर्व वह अपने कृष्ण के लिए उस भोजन का प्रसाद लगा दिया करते थे।
उस प्रसाद को अपने भोजन के पात्र में थोड़ा सा मिलाकर बाकी किसी दूसरे गरीब को खाने को दिया करते थे। श्री कृष्ण उनकी भक्ति से बेहद प्रसन्न रहते,इसके कारण कभी भी पारो और रामदरस भूखे पेट नहीं सोए।
चारों और कृष्ण जन्माष्टमी की धूम मची थी।
गोकुल,वृंदावन,बरसाना इन क्षेत्रों में श्री कृष्ण के जन्मोत्सव की विशेष मनोहारी छटा देखने को मिलती है। पारो एक पुत्र को जन्म देने वाली थी किसी को क्या पता था कि वह पुत्र स्वयं जन्माष्टमी के दिन जन्म लेगा। ऐसा ही हुआ चारों और कृष्ण की धूम मची थी किंतु पारो और रामदरस के घर साक्षात पुत्र के रूप में कृष्ण ने जन्म ले लिया था।
पति-पत्नी ने अपने बालक का खूब लाड-प्यार से पालन-पोषण किया। उसका नाम चंदन रखा
नाम के अनुसार चंदन बेहद शांत और शीतल स्वभाव का था।
वह भी अपने माता-पिता की भांति कृष्ण का भक्त बन गया। दिन-रात श्री कृष्ण की पूजा आराधना करता। चंदन जब भी बीमार होता या भटकते हुए कहीं दूर चला जाता तो एक गाय चराने वाला व्यक्ति उसकी मदद करता।
उस गाय वाले का नाम मदन था उसने बताया था वह पड़ोस के गांव में रहता है।
इस परिवार की विपत्ति में वह सदैव रखवाला बनकर खड़ा रहता था,वहीं इस परिवार की आंख बना रहता।
चंदन जब बड़ा हुआ तो वह मदन के गांव जाकर मदन को खोजने लगा।
काफी खोजबीन के बाद उसे मालूम हुआ मदन नाम का कोई व्यक्ति गांव में नहीं रहता।
इस रहस्य का पता लगाने के लिए चंदन में मन बना लिया।
एक दिन जब पारो को अधिक बुखार चढ़ा था,वह लगभग मरने की अवस्था में थी मदन उसकी सहायता के लिए घर आ चुका था। सांझ होते वह अपने गांव की ओर लौट जाया करता था। चंदन में जब उसका पीछा किया तो मदन एक मंदिर की ओर जाता दिखा। उस मंदिर के भीतर जाकर वह कहीं अदृश्य हो गया।
चंदन ने जब जाकर देखा तो वहां कोई नहीं था केवल कृष्ण जी की मूर्ति थी।
वह समझ गया वह मदन कोई और नहीं स्वयं कृष्ण भगवान थे,जो उनकी हर विपत्ति में रखवाली करते थे।
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श्री कृष्ण की नैतिक शिक्षा वाली कहानी ( कृष्ण की कहानियां )
वृंदावन की एक गाय का पीछा करते हुए शेर घेर लेता है। गाय किसी प्रकार बचते बचाते एक मंदिर के पीछे छुप जाती है। शेर ढूंढता हुआ वहां पहुंच जाता है और जैसे ही खाने के लिए आगे बढ़ता है।
गाय रोते हुए कहती है –
मुझे कुछ समय दो! मैं अपने बच्चों से मिल कर आती हूं ,फिर मुझे तुम खा लेना। मैं अवश्य लौट कर आऊंगी ,यह वचन देती हूं।
गाय ने ऐसा ही किया वह अपने बच्चों और परिवार से मिलकर मंदिर के पीछे पहुंच गई।
शेर ने देखा की गाय अपने वचन के अनुसार आ गई है।
वह खाने के लिए आगे बढ़ा वैसे ही एक वृद्ध वहां आ गया और गाय के बदले स्वयं को खाने के लिए कहता है। शेर कुछ विचार करता उससे पहले गाय की नन्हीं बेटी वहां आती है और अपनी मां को छोड़ कर उसे खाने के लिए कहती है।
शेर के सामने अब तीन चारा था ,वह किसे खाये इसका विचार कर रहा था।
तभी दौड़ते हुए कृष्ण वहां आए और उन्होंने गाय के वचन निभाने पर उसे पुरस्कार स्वरूप जीवनदान देने के लिए कहा। नन्हीं गाय जो अपनी मां को बचाने के लिए स्वयं काल के मुंह में जाने को तैयार थी उसे नहीं खाने के लिए कहा। साथ में वृद्ध आदमी जिसमें शेर से लड़ने और मुकाबला करने की भी साहस नहीं है ऐसे मनुष्य को खा कर क्या फायदा।
श्री कृष्ण के वचन सुनकर शेर वहां से चला जाता है।
भगवान कृष्ण की बचपन की कहानी
( कृष्ण की कहानियां )
कृष्ण जी रोज अपनी गइया को चराने के लिए जाया करते थे।
एक समय जब भीषण गर्मी पढ़ रही थी उस समय घास भी हरे-भरे नहीं थे सभी सुख चुके थे।
गाय उदास बैठी हुई प्रार्थना कर रही थी – काश! हरी-भरी घास खाने को मिलती तो पेट भर जाता।
कृष्ण अपने भक्तों की प्रार्थना अवश्य सुनते हैं।
वह मन ही मन अपने गाय की प्रार्थना को सुन रहे थे। उन्होंने बांसुरी की एक ऐसी धुन छेड़ी की आसपास सभी खेत पेड़ पौधे हरे भरे हो गए।
खेतों में हरी घास की चादर बिछ गई,पेड़ों पर नए-नए फल उग गए।
गाय आनंदित हो उठी और खूब भरपेट घास खाया।
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समापन
श्री कृष्ण जो विष्णु के अवतार माने गए हैं ,वह पृथ्वी पर एक सामान्य मनुष्य की भांति अपने क्रियाकलापों से मनुष्य का मान बढ़ाने के लिए आए थे। उन्होंने इसी रूप में बड़ी से बड़ी आसुरी शक्ति का नाश किया और साधारण मनुष्यों को अभय दान दिया। साथ ही उन्होंने बाल लीलाओं के माध्यम से नैतिक शिक्षा भी प्रदान की। सभी को एकजुट रहकर किसी भी कठिन परिस्थिति का सामना करने का साहस भी दिया।
यह कहानियां मुख्य रूप से बालकों के लिए लिखी गई है,जो उनके नैतिक और चारित्रिक विकास को ध्यान में रखते हुए लिखा गया है।
आशा है यह कहानियां आपको पसंद आई हो,अपने विचार देखने के लिए कमेंट बॉक्स में जाएं।
sir bahut hi achhi stories hai aap aise h likhte rahiye