भारतीय संस्कृति में दीपावली त्यौहार का बड़ा महत्व है। इस दिन प्रभु श्री राम चौदह वर्ष का वनवास काटकर सकुशल अयोध्या लौट कर आए थे। अयोध्यावासी अपने आराध्य प्रभु श्री राम के स्वागत के लिए तन-मन-धन से तैयार थी। उनके उत्साह को पूरा ब्रह्मांड देख रहा था। उन्होंने अयोध्या की नगरी का कोना-कोना घी के दीपक से रोशन कर दिया। प्रभु श्री राम के आगमन मार्ग को रंगोली फूल तथा दीपमाला से सुसज्जित कर अयोध्या वासियों ने उत्सव मनाया था। इस उत्सव से जुड़े कुछ कहानियां है जो आज के लेख में प्रस्तुत है।
दिवाली से जुड़ी लोक कथा – Hindi story on Diwali
एक साहूकार की बेटी थी। वह रोज पीपल के वृक्ष में जल अर्पण किया करती थी। एक दिन प्रसन्न होकर लक्ष्मी माता ने साक्षात प्रकट होकर दर्शन दिया और साहूकार की बेटी से मित्रता करने की बात कही। साहूकार की बेटी ने मित्रता से पूर्व अपने पिता से अनुमति लेने की बात कही। साहूकार की बेटी घर आती है और सारी घटना का वृतांत कह सुनाती है।
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दिवाली पर्व से जुडी सम्पूर्ण जानकारी
साहूकार अपनी बेटी से कहते हैं-
यदि तुम्हारी मित्र स्वयं लक्ष्मी माता बने तो इससे उत्तम और कुछ नहीं।अगले दिन साहूकार की बेटी पीपल को जल अर्पण कर लक्ष्मी माता के साथ मित्र बन जाती हैं।लक्ष्मी माता एक दिन साहूकार की बेटी को अपने घर भोजन पर आमंत्रण करती है। साहूकार की बेटी लक्ष्मी माता के घर जाती हैं वहां साहूकार की बेटी को स्वर्ण का आसन बैठने को प्राप्त होता है।लक्ष्मी माता साहूकार की बेटी का आतिथ्य करती है और सोने के थाली में भोजन कराती हैं।
इस प्रकार के अभूतपूर्व आतिथ्य-सत्कार से साहूकार की बेटी प्रसन्न होती हैं, और साहूकार की बेटी यह कहकर विदा लेती है कि अब आपको मेरे घर आतिथ्य ग्रहण करना होगा। यह कहते हुए साहूकार की बेटी विदा लेती है, और अपने घर आकर उदास मन से बैठ जाती हैं।
पिता ने कारण जानना चाहा तो साहूकार की बेटी अतिथि-सत्कार के पूरे दृश्य को पिता के सामने रख देती हैं, और यह कहती है कि मैं माता लक्ष्मी को कैसे निमंत्रण करें, उनका कैसे आवभगत करें? साहूकार अपनी बेटी को दिलासा देता है, जितना हममें सामर्थ होगा हम अपने सामर्थ्य के अनुसार माता का आतिथ्य सत्कार करेंगे।
अगले दिन एक चील नौलखा हार लेकर उड़ा जा रहा था
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अचानक उसकी चौंच से वह नौलखा हार छूट जाता है, और साहूकार की बेटी के पास आ गिरता है। वह हार साहूकार की बेटी को मिलता है उसके प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहता। साहूकार की बेटी उस नौ लक्खा हार को बेचकर माता लक्ष्मी के आतिथ्य सत्कार की तैयारी करती है,माता लक्ष्मी तथा गणेश को अपने घर निमंत्रण देती हैं। निमंत्रण पाकर माता गणेश जी के साथ साहूकार के यहाँ जाने को निकलती है।आगे आगे गणेश जी, पीछे से मां लक्ष्मी, साहूकार के घर प्रवेश करती हैं।
साहूकार व उसकी पुत्री दोनों अतिथि का हृदय से स्वागत करते हैं, उन्हें बैठने के लिए आसन दिया जाता है। वह दोनों आसन पर विराजमान होते हैं और साहूकार की बेटी द्वारा बनाए गए व्यंजन का भोग गणेश जी अथवा लक्ष्मी जी को लगाते हैं। जब लक्ष्मी और गणेश जी अतिथि-सत्कार ग्रहण कर विदा मांगते हैं तो साहूकार की बेटी यह कहते हुए उन्हें रोकती है कि, मैं अभी बाहर जा रही हूं वहां से आऊंगी तब आप हमारे घर से विदा लेना।
इतना कहकर साहूकार की बेटी बाहर चली जाती है, फिर वह लौटकर घर नहीं आती। लक्ष्मी अथवा गणेश जी साहूकार के घर सदैव के लिए निवास करते हैं।
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श्री राम के अयोध्या लौटने की कहानी
श्री राम अपने पिताश्री की आज्ञा और माता के वचनों का पालन करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार करते हैं। इस वनवास के दौरान उन्हें अनेकों प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उनका जन्म शायद इन्हीं समस्याओं से लड़ते हुए ऋषि-मुनियों को अभय दान देना असुरों का नाश करना के निमित्त हुआ था। राम ने अपने जन्म के उद्देश्यों को भली-भांति पूर्ण किया। वनवास के दौरान उन्होंने असुरों का नाश किया ऋषि-मुनियों को अभय दान दिया धर्म की रक्षा करते हुए उन्होंने असूरी शक्तियों को समाप्त किया।
इसी क्रम में उनकी भार्या सीता का हरण राक्षसों के राजा रावण द्वारा किया जाता है। श्रीराम साधारण मनुष्य की भांति वानर, भालू आदि की सेना लेकर उन महान आसुरी शक्तियों से युद्ध करते हुए विजय प्राप्त करते हैं।
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श्री राम ने अपने भाइयों तथा माता को चौदह वर्ष का वनवास पूरा कर लौटने का वचन दिया था। इस वचन पर भरत ने एक दिन की देरी होने पर अपने प्राण त्यागने का व्रत लिया था। अयोध्यावासी चौदह वर्ष का वनवास पूरा कर अपने राजाराम के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। इस हर्ष और उत्साह में उन्होंने पूरी अयोध्या नगरी तथा अयोध्या की ओर आने वाले समस्त राहों पर घी के दीए जलाकर अयोध्या नगरी को सजा दिया था।
सभी अपने प्रिय राजाराम के आने की प्रतीक्षा में नाचते-गाते उत्सव मना रहे थे। हर्षोल्लास के रूप में यही उत्सव अब दीपावली के रूप में प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है।
आज के दिन माता लक्ष्मी के आगमन का भी समय होता है, जो भक्त सच्ची निष्ठा और श्रद्धा के साथ माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना करता है उसका घर सदैव सुख-समृद्धि, धन-वैभव से भरा रहता है। उसके घर के सभी सदस्य निरोगी रहते हैं, दीर्घायु रहते हैं। अतः आप सभी को भी माता लक्ष्मी के आगमन हेतु सच्ची श्रद्धा और आस्था रखनी चाहिए।
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समापन
उपरोक्त लेख में आपने दीपावली से संबंधित कहानियां पढ़ी। यह कहानियां सत्य घटना पर आधारित तथा जनमानस की कहानियां है।
प्रभु श्री राम की कहानी पौराणिक से जिसमें वह अपनी माता और पिता की आज्ञा से 14 वर्ष के वनवास में चले गए थे। जहां निवास करते हुए उन्होंने ऋषि-मुनियों को अभय दान दिया आसुरी शक्ति का नाश किया तथा अपनी पत्नी और भाई के साथ सकुशल अयोध्या लौट कर आए और अपना राज सिंहासन संभाला आशा है। उपरोक्त लेख आपको पसंद आया हो अपने सुझाव तथा विचार कमेंट बॉक्स में लिखें ताकि हम लेख में और अधिक सुधार कर सकें।