प्रस्तुत लेख में विश्व पर्यावरण दिवस से संबंधित समस्त बिंदुओं को संकलित कर रहे हैं। साथ ही विद्यार्थियों के लिए इस विषय पर निबंध भी उपलब्ध करा रहे हैं।
विश्व पर्यावरण दिवस की उपयोगिता आज पूरे विश्व में है। निरंतर प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से आज ऐसी भयावह स्थिति उत्पन्न हो रही है जिसके कारण प्राकृतिक संतुलन निरंतर बिगड़ती जा रही है।
वैश्विक ताप वृद्धि ने आज मानव जीवन के अस्तित्व पर संकट ला खड़ा किया है। अगर समय रहते व्यक्ति सतर्क नहीं होता तो जल्द ही वह अपने प्राकृतिक संसाधनों के साथ-साथ स्वयं के अस्तित्व को भी नहीं बचा पाएगा।
विश्व पर्यावरण दिवस क्या है
विश्व पर्यावरण दिवस से हमारा संबंध उस दिन को उत्सव तथा जागरूकता के रूप में मनाना है जो पर्यावरण से संबंधित है। इस दिन प्राकृतिक संसाधनों के प्रति मानव को जागरूक किया जाता है। किस प्रकार व्यक्ति अपने निजी हितों के लिए निरंतर प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहा है ,उस की ओर ध्यान आकर्षित करना होता है।
- अधिक मात्रा में वन की कटाई,
- जल स्रोतों को दूषित करना,
- वायु प्रदूषण करना
- यह सभी विषय पर्यावरण के दोहन से जुड़े हुए हैं।
जिसके अधिक दोहन के कारण आज वैश्विक ताप वृद्धि का संकट उत्पन्न हुआ है।
विकसित देश इसके प्रति थोड़ी बहुत जिम्मेदारी दिखाते तो है किंतु उस पर अमल नहीं करते। वह विकासशील देशों पर सारा दायित्व थोप कर कर स्वयं को दोषमुक्त बता देते हैं ,जबकि वैश्विक ताप वृद्धि में विकसित देशों का अधिक हस्तक्षेप है।
जिसके कारण निरंतर प्रकृति अपना संतुलन होती जा रही है।
दक्षिणी गोलार्ध पर जमी बर्फ दिन प्रतिदिन बड़ी मात्रा में पिघल रही है ,जिसके कारण जल का स्तर बढ़ता जा रहा है।
इसके प्रभाव में विभिन्न द्वीप तथा टापू जलमग्न हो चुके हैं।
अगर ऐसे ही जारी रहा तो एक दिन धरती का बहुत बड़ा हिस्सा जल में समा जाएगा।
वन की कटाई से वर्षा चक्र भी प्रभावित हो रहा है कहीं सूखा तो कहीं अधिक वर्षा बाढ़ जैसी भयावह स्थिति उत्पन्न कर रहा है।
यह सभी प्रकृति संतुलन बिगड़ने के कारण हो रहा है।
इन सभी भयावह स्थिति से मानव को अवगत कराना विश्व पर्यावरण दिवस का उद्देश्य है।
विश्व पर्यावरण दिवस कब मनाया जाता है और क्यों
प्रकृति तथा उसके संसाधनों की रक्षा के लिए विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है ,जिसका अनुमोदन संयुक्त राष्ट्र महासभा ने किया। इस उद्देश्य से की प्राकृतिक संसाधनों की उपयोगिता लंबे समय तक तथा आने वाली पीढ़ियों के लिए भी हो सके।
इसके नियमित 5 जून 1974 को पहला पर्यावरण दिवस मनाया गया था।
इसकी स्वीकृति संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1972 में की थी।
विश्व पर्यावरण दिवस पर निबंध
पर्यावरण दो शब्दों के योग से बना है ‘परि‘ और ‘आवरण’। परी का अर्थ है चारों ओर तथा आवरण का अर्थ है ढकने वाला। प्रकृति मनुष्य के विकास के लिए उसका आवरण का कार्य करती है। इस कारण हम साधारण शब्दों में पर्यावरण कहते हैं।
आज निरंतर भौतिकवादी मानसिकता के कारण मनुष्य निरंतर प्रकृति का दोनों हाथों से दोहन कर रहा है। वह अपने सुख-सुविधा तथा भोग-विलासिता में भविष्य की नहीं सोचता। वह यह नहीं सोचता कि वह प्रकृति के संसाधनों को अपने आने वाले पीढ़ियों को किस रूप में सौंपेगा।
आज यही कारण है कि अधिक मात्रा में
- वन की कटाई,
- जल के स्रोतों को दूषित करना,
- ध्वनि प्रदूषण करना,
- वायु प्रदूषण करना
मनुष्य के स्वभाव में शामिल हो गया है।
यह सभी कारन स्वयं मनुष्य के अस्तित्व के लिए खतरा उत्पन्न कर रहा है। इतना ही नहीं पर्यावरण का संतुलन अधिक जनसंख्या के कारण भी बिगड़ रहा है। अधिक जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बड़ी मात्रा में प्राकृतिक संसाधनों का शोधन किया जा रहा है।
आज हम प्रदूषण के कुछ प्रमुख बिंदुओं पर विचार कर रहे हैं जिसके कारण मानव जीवन व्यापक रूप से प्रभावित हो रहा है –
जल प्रदूषण
जल मनुष्य के लिए सबसे अहम है। जल के बिना जीवन संभव नहीं है।
यही कारण है कि दूसरे ग्रहों पर जीवन की उपलब्धता नहीं है।जीवन का सीधा संबंध जल से है। व्यक्ति श्वास लेता है उस में ऑक्सीजन की उपलब्धता होती है ,जल पीता है उसमें भी ऑक्सीजन की उपलब्धता होती है।किंतु आज हमें वरदान के रूप में प्राप्त जल के स्रोत अभिशाप के रूप में परिवर्तित होते जा रहे हैं।
कल-कारखाने से निकलने वाले हानिकारक रसायन नदियों में प्रवाहित किया जा रहा है।
घरों से निकलने वाले मीट्रिक टन कचरा सीवर सभी को नदियों में ही प्रवाहित किया जा रहा है।
यह नदियां समुद्र में मिलकर पूरे जल तंत्र को दूषित कर रही है , जिसके कारण आज नदियां लगभग प्रदूषित हो चुकी है। उसके पानी पीने लायक नहीं रहे हैं। इन रासायनिक तत्वों के कारण जलीय जीव अपने अस्तित्व को निरंतर खोते जा रहे हैं, जिससे प्रकृति का पूरा तंत्र बिगड़ता जा रहा है।
यह सभी मनुष्य की विलासिता और प्रकृति के प्रति जागरूकता के कमी के कारण है।
वायु प्रदूषण
निरंतर बढ़ते यातायात संसाधनों, बड़ी मात्रा में लग रहे कल-कारखाने, खुले में कचरा जलाना ,यह सभी निरंतर वायु प्रदूषण को बढ़ावा दे रहे हैं। व्यक्ति अपने आवास के लिए तथा भोग विलासिता की जिंदगी जीने के लिए निरंतर वृक्ष काट रहे हैं। दिन प्रतिदिन वन की संख्या घटती जा रही है जिसके कारण वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा घटती जा रही है।
अभी हमने हाल ही में कोरोना के समय ऑक्सीजन के महत्व को बारीकी से देखा।
किस प्रकार ऑक्सीजन की कमी से लोग तड़प-तड़प कर सड़कों पर अपने प्राण खो रहे थे।
व्यक्ति अपने साथ बड़े-बड़े ऑक्सीजन के सिलेंडर लेकर चल रहा था।
यह सभी वृक्ष की कटाई और वायु प्रदूषण के प्रभाव से ही उत्पन्न जिजीविषा थी।
ध्वनि प्रदूषण
ध्वनि प्रदूषण सरासर मानव की गलतियों का नतीजा है। आज सभी के पास आधुनिक संसाधन है,यातायात के लिए निजी वाहन है। थोड़ी सी भीड़-भाड़ में भी लोग अनर्गल हौरान बजाते हैं। यहां तक कि हॉस्पिटल के बाहर प्रतिबंधित होता है किंतु व्यक्ति वहां भी हौरान बजाने से बाज नहीं आते। ध्वनि विस्तारक यंत्र तथा डी.जे आदि का लोगों ने गलत प्रयोग करना चालू कर दिया है।
बड़ी मात्रा में ध्वनि को विस्तारित कर ध्वनि प्रदूषण को बढ़ावा दिया है।
इस कारण व्यक्ति में
- बहरेपन,
- सिरदर्द,
- उच्च रक्तचाप,
- अनिद्रा आदि
बीमारी तीव्र गति से हो रही है।
भूमि प्रदूषण
निरंतर वन की कटाई,हरे-भरे घास के मैदान को बंजर बना रही है।
- खेती योग्य जमीन पर आग लगाना,
- कचरा फेंकना,
- अजैविक क्रियाकलापों से भूमि अपनी उर्वरता निरंतर खोती जा रही है।
इसके कारण पशुओं को चारा नहीं मिल पा रहा है।
ऑक्सीजन में योगदान देने वाली भूमि अपना अस्तित्व खोती जा रही है।
अगर इस प्रकार के क्रियाकलाप निरंतर जारी रहे तो एक दिन अन्न उत्पादन के योग्य भी जमीन नहीं बचेगी। इस को काबू में करने के लिए व्यक्ति को अधिक मात्रा में वृक्ष लगाने चाहिए और जैविक कचरे को भूमि पर फेंकने के बजाय उसे उचित व्यवस्था के तहत निस्तारण किया जाना चाहिए।
समाधान
इन सभी से निपटने के लिए व्यक्ति को सतर्क होना पड़ेगा और अपने कर्तव्यों के तहत प्रदूषण को फैलाने वाले कारकों की पहचान करके उसको दूर करना ही एकमात्र पर्यावरण संरक्षण के लिए कारगर है।
यही मनुष्य को दीर्घ जीवन प्रदान कर सकता है।
प्रकृति के संतुलन को बनाए रख सकता है,वरना जिस प्रकार दिन-प्रतिदिन जीव विलुप्त होते जा रहे हैं। मानव भी अपना अस्तित्व खो बैठेगा अपने आने वाली पीढ़ियों को प्रकृति का संसाधन नहीं दे पाएगा। मनुष्य आज स्वयं प्रकृति का दोहन कर उनके संसाधनों का उपयोग कर रहा है,इसकारण अगली पीढ़ी के लिए कुछ नहीं बचेगा ।
ग्लोबल वार्मिंग क्या है?
ग्लोबल वार्मिंग का विषय आज ज्वलंत मुद्दा बना हुआ है।
आज पूरा विश्व इस विषय के लिए चिंतित है क्योंकि जिस प्रकार ग्लोबल वार्मिंग निरंतर वृद्धि हो रही है वह भविष्य के लिए काफी खतरनाक है।
ग्लोबल वार्मिंग से हमारा आशय ताप वृद्धि से है।
दिन प्रतिदिन जिस प्रकार पृथ्वी पर ताप वृद्धि हो रही है।
यह प्राकृतिक संतुलन को निरंतर बिगाड़ रही है। जिसके कारण वर्षा चक्र प्रभावित हो रहा है ,आपदा जैसी स्थिति पूरे विश्व में उत्पन्न होती रहती है। जलीय जीव विशेष रूप से प्रभावित हो रहे हैं। निरंतर दक्षिणी ध्रुव पर जमी हुई बर्फ पिघल रही है। यह सभी मानव की लापरवाही के कारण हो रही है जिसमें मानव अपने सुख-सुविधाओं के लिए निरंतर प्रकृति का दोनों हाथों से दोहन कर रहा है।
- वन की कटाई बड़े मात्रा में,
- कल-कारखाने लगना,
- जलसंपदा को दूषित करना,
- अधिक मात्रा में खनिज का दोहन करना,
- गाड़ियों से उत्पन्न होने वाली हानिकारक केमिकल
यह सभी कारण बनकर ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा दे रहे हैं।
आपने स्वयं भी महसूस किया होगा आज से 20 वर्ष पूर्व प्रकृति अपने समय अनुसार सभी क्रियाकलाप किया करती थी। व्यक्ति के द्वारा किया गया दोहन है जिसके कारण पृथ्वी के ताप की वृद्धि हो रही है।
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निष्कर्ष
आशा है विश्व पर्यावरण दिवस पर उपरोक्त लेख आपको आपके ज्ञान की वृद्धि तथा सोचने विचारने की शक्ति को तीव्र कर सकी होगी। पर्यावरण की चुनौती आज किसी एक देश की नहीं है बल्कि पूरे विश्व की है।
जिस पर विश्व काफी गंभीरता से विचार कर रहा है।
यह तभी सकारात्मक रूप में सफल हो सकता है जब प्रत्येक व्यक्ति प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाए। इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जागरूकता स्वरूप 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है।
इस दिन जगह-जगह विश्व भर में रैलियां की जाती है।
टी.वी. अखबार, पत्र-पत्रिकाओं आदि के माध्यम से व्यक्ति को प्रकृति से जोड़ने का प्रयास किया जाता है।
कई सारे संगठन बड़ी मात्रा में पेड़-पौधों को लगाते हैं तथा शपथ के माध्यम से लोगों को उनकी रक्षा करने का वचन भी दिलाते हैं। आज की आवश्यकता है किसी उपहार के बदले एक वृक्ष भेंट किया जाए। प्रत्येक ऐसी तिथि जो यादगार हो उस दिन प्रत्येक व्यक्ति एक वृक्ष लगाए तो पर्यावरण को काफी बड़ी मात्रा में संतुलित किया जा सकता है।
आज हम अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला नहीं झाड़ सकते हैं क्योंकि आज हमारी भोग-विलासिता की जिंदगी आने वाली पीढ़ियों पर काफी भारी पड़ने वाली है। इसलिए हमें सतर्कता के साथ प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करना पड़ेगा। उपरोक्त लेख आपको कैसा लगा,पर्यावरण के संबंध में आपके क्या विचार हैं आप क्या सुझाव देना चाहते हैं जिस पर सरकार पहल करें नीचे कमेंट बॉक्स में लिखें।
आजकल के युग में पर्यावरण का बहुत ज्यादा दोहन किआ जा रहा है। इससे मैं बहुत दुखी हु सरकार और आम जनता को इसके बारे में कुछ करना चाहिए।
आप बिलकुल सही कह रहे हैं, जनता को ही कुछ करना पड़ेगा तभी पर्यावरण स्वच्छ होगा।