बसंत पंचमी विद्या की देवी मां सरस्वती पूजा तथा प्रकृति से जुड़ा यह त्यौहार है। आज हम इस लेख के माध्यम से आपको माता की स्तुति , वंदना , आरती , सहस्त्रनाम आदि विस्तार से लिखकर प्रस्तुत कर रहे हैं आशा है आपको पसंद आए और माता का आशीर्वाद और शरण आपको मिल पाए।
बसंत पंचमी माघ मे मनाया जाने वाला प्रमुख त्यौहार है। यह प्रकृति का त्यौहार होने के साथ-साथ विद्या की देवी माता सरस्वती का भी त्यौहार है। प्रकृति पुराने जीर्ण – शीर्ण पत्तों तथा शाखाओं को त्याग कर नए-नए पत्ते तथा कोपलो को जन्म देती है और पूरे वातावरण में एक सुखद अनुभूति का संचार करती है। बसंत पंचमी शिशिर ऋतु का प्रमुख त्यौहार है माना जाता है। यह ऋतू निर्जीव में भी अपने प्राण फूंकने की क्षमता रखती है। अतः चारों ओर खुशहाली ही खुशहाली नजर आती है , खेतों में लहलहाते सरसों की बालियां खुले हाथों से , निश्चल भाव से प्रकृति का स्वागत करती है। चारों ओर एक दिव्य सुगंध की झड़ी सी लग जाती है और प्रकृति वातावरण में जीवन का संचार करती है।
मौसम के अनुसार यह बेहद ही सुखकारी और गुणकारी है यह मौसम ना ही अधिक ठंडी और ना ही अधिक गर्म। अपितु सामान्य मौसम रहता है और प्राणियों में ऊर्जा का संचार करता है।
सरस्वती पूजा क्यों मनाते हैं
वसंत पंचमी का त्यौहार है मुख्य रूप से मां सरस्वती को समर्पित है। जो ज्ञान और विद्या की देवी है , यही देवी बुद्धि बल प्रदायनी है , अन्यथा यह जीवन व्यर्थ होता। इसी ज्ञान की प्राप्ति और सद्बुद्धि के लिए लोग अथवा प्रकृति मां सरस्वती की निष्ठापूर्वक पूजा – अर्चना और आराधना करते हैं। साधक शुद्ध भाव से विद्या की देवी को प्रसन्न करते हैं , और समाज के कल्याण के लिए प्रार्थना करते हैं। संसार में सद्भाव का प्रचार-प्रसार हो यही कामना करते हुए माता सरस्वती की पूजा की जाती है।
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सरस्वती माता का श्रृंगार क्या है
मां सरस्वती हंस पर विराजमान होती हैं , और हाथों में कमल धारण किए रहती हैं। दूसरे हाथ में वीणा और अपने भक्तों को अभय दान देना , ज्ञान बुद्धि और प्रकाश देना माता का परम आशीर्वाद है। जो वह अपने भक्तों को सदैव न्योछावर करती रहती हैं। इस मुद्रा में मां सदैव अपने भक्तों का कल्याण करती हैं , उन्हें बुद्धि तथा धन-धान्य का लाभ होता है। भक्त माता की पूजा – अर्चना पूरे विधि विधान से करते हैं और पूजा अर्चना कर उन्हें विद्या के वह सभी उपकरण चढ़ाते हैं जो बाद में प्रसाद के रूप में सभी भक्तों को दिया जाता है। माना जाता है कि उनके उपकार से कभी भी प्राणी विचलित नहीं होता। जिसे ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है वह जीते जी मोक्ष की प्राप्ति कर लेता है।
सरस्वती पूजा कहाँ मनाया जाता है
यह त्यौहार विशेष रूप से बिहार और उत्तर भारत के क्षेत्रों में मनाया जाता है। इस दिन विद्यालय में अथवा संगीत की पाठशाला में मां सरस्वती की पूरे विधि – विधान के साथ पूजा-अर्चना की जाती है। उनकी मूर्तियां मिठाई जाती है और एक दिन जगराता कर उनका कीर्तन भजन किया जाता है। तदुपरांत अगले दिन माता की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है , लोग होली खेलते हैं और प्रकृति में फैले ऊर्जा को ग्रहण करते हैं और खुशी-खुशी माता की विदाई करते हैं।
इस दिन किया जाने वाला कार्य कभी भी किसी भी मुहूर्त से सर्वोपरि माना जाता है। इसलिए भक्त गृह प्रवेश, नया कारोबार आरंभ अथवा शादी लगन आदि अनेक शुभ कार्य आदि करते हैं। माना जाता है कि इस मुहूर्त में किया गया सभी कार्य मां की कृपा से पूर्ण होते हैं। वह कभी भी कष्ट नहीं पाते और सभी मनोरथ को पूर्ण करते हैं।
सरस्वती माता का श्लोक – Saraswati shloka
ॐ असतो मा सद्गमय ।
तमसो मा ज्योतिर्गमय ।
मृत्योर्मा अमृतं गमय ।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
अर्थ –
हे देवी ! मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो, मुझे अंधकार से निकालकर प्रकाश की ओर ले चलो, मुझे मृत्यु से निकालकर अमरता की ओर ले चलो
अर्थ –
हे परमात्मा ! हे परमेश्वर ! असत्य पर सत्य का विजय हो अंधकार पर प्रकाश का प्रभाव हो और मृत्यु अमृत्व से पराजित हो ऐसी मेरी गति हो।
सरस्वती वंदना – Saraswati Vandana
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता,
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता,
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥१॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं,
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्,
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥२॥
हिन्दी भावार्थ:
यह जो विद्या की देवी माता सरस्वती है यह सफेद हंस पर बैठी हुई , कमल को धारण किए हुए। गले में सफेद पुष्पों की माला और चंद्रमा का धारण करती हैं , और सफेद शुभ वस्त्र पहनती हैं और जिनके हाथों में वीणा और पवित्र कमंडल तथा सफेद कमल सदैव विराजमान रहते हैं। ब्रह्मा – शंकर – विष्णु सदैव इनकी पूजा वंदना स्तुति करते हैं। वह भगवती मेरे जड़ता को दूर करें और सभी पापों से मेरी रक्षा करें।
जो मां सदैव जगत में ज्ञान का संचार करती हैं , अंधकार को दूर करने का मार्ग बताती हैं , जिनके वीणा और पुस्तक धर्म को धारण करती है। अंधकार से भक्तों को बचाती है हाथ में जिनके माला और ज्ञान – विज्ञान की जननी है और जो कमल पर आसन जमाती हैं। वह जगत – जननी परमेश्वरी भगवती मेरी बुद्धि को भी तेज प्रदान करें और मुझे बुद्धि तथा ज्ञान प्रदान करें। मेरी ज्ञान को शुद्ध कर मेरा उद्धार करें मैं ऐसी भगवती का सदैव वंदन करता हूं।
माँ सरस्वती की आरती – Saraswati aarti
जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता।
सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥
॥ जय सरस्वती माता…॥
चन्द्रवदनि पद्मासिनि, द्युति मंगलकारी।
सोहे शुभ हंस सवारी, अतुल तेजधारी॥
॥ जय सरस्वती माता…॥
बाएं कर में वीणा, दाएं कर माला।
शीश मुकुट मणि सोहे, गल मोतियन माला॥
॥ जय सरस्वती माता…॥
देवी शरण जो आए, उनका उद्धार किया।
पैठी मंथरा दासी, रावण संहार किया॥
॥ जय सरस्वती माता…॥
विद्या ज्ञान प्रदायिनि, ज्ञान प्रकाश भरो।
मोह अज्ञान और तिमिर का, जग से नाश करो॥
॥ जय सरस्वती माता…॥
धूप दीप फल मेवा, माँ स्वीकार करो।
ज्ञानचक्षु दे माता, जग निस्तार करो॥
॥ जय सरस्वती माता…॥
माँ सरस्वती की आरती, जो कोई जन गावे।
हितकारी सुखकारी, ज्ञान भक्ति पावे॥
॥ जय सरस्वती माता…॥
जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता।
सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥
॥ श्रीसरस्वती अष्टोत्तरनामावली ॥
ॐ सरस्वत्यै नमः ।
ॐ महाभद्रायै नमः ।
ॐ महामायायै नमः ।
ॐ वरप्रदायै नमः ।
ॐ श्रीप्रदायै नमः ।
ॐ पद्मनिलयायै नमः ।
ॐ पद्माक्ष्यै नमः ।
ॐ पद्मवक्त्रायै नमः ।
ॐ शिवानुजायै नमः ।
ॐ पुस्तकभृते नमः
॥ १० ॥
ॐ ज्ञानमुद्रायै नमः ।
ॐ रमायै नमः ।
ॐ परायै नमः ।
ॐ कामरूपायै नमः ।
ॐ महाविद्यायै नमः ।
ॐ महापातक नाशिन्यै नमः ।
ॐ महाश्रयायै नमः ।
ॐ मालिन्यै नमः ।
ॐ महाभोगायै नमः ।
ॐ महाभुजायै नमः
॥ २० ॥
ॐ महाभागायै नमः ।
ॐ महोत्साहायै नमः ।
ॐ दिव्याङ्गायै नमः ।
ॐ सुरवन्दितायै नमः ।
ॐ महाकाल्यै नमः ।
ॐ महापाशायै नमः ।
ॐ महाकारायै नमः ।
ॐ महांकुशायै नमः ।
ॐ पीतायै नमः ।
ॐ विमलायै नमः
॥ ३० ॥
ॐ विश्वायै नमः ।
ॐ विद्युन्मालायै नमः ।
ॐ वैष्णव्यै नमः ।
ॐ चन्द्रिकायै नमः ।
ॐ चन्द्रवदनायै नमः ।
ॐ चन्द्रलेखाविभूषितायै नमः ।
ॐ सावित्र्यै नमः ।
ॐ सुरसायै नमः ।
ॐ देव्यै नमः ।
ॐ दिव्यालंकारभूषितायै नमः
॥ ४० ॥
ॐ वाग्देव्यै नमः ।
ॐ वसुधायै नमः ।
ॐ तीव्रायै नमः ।
ॐ महाभद्रायै नमः ।
ॐ महाबलायै नमः ।
ॐ भोगदायै नमः ।
ॐ भारत्यै नमः ।
ॐ भामायै नमः ।
ॐ गोविन्दायै नमः ।
ॐ गोमत्यै नमः
॥ ५० ॥
ॐ शिवायै नमः ।
ॐ जटिलायै नमः ।
ॐ विन्ध्यावासायै नमः ।
ॐ विन्ध्याचलविराजितायै नमः ।
ॐ चण्डिकायै नमः ।
ॐ वैष्णव्यै नमः ।
ॐ ब्राह्मयै नमः ।
ॐ ब्रह्मज्ञानैकसाधनायै नमः ।
ॐ सौदामिन्यै नमः ।
ॐ सुधामूर्त्यै नमः
॥ ६० ॥
ॐ सुभद्रायै नमः ।
ॐ सुरपूजितायै नमः ।
ॐ सुवासिन्यै नमः ।
ॐ सुनासायै नमः ।
ॐ विनिद्रायै नमः ।
ॐ पद्मलोचनायै नमः ।
ॐ विद्यारूपायै नमः ।
ॐ विशालाक्ष्यै नमः ।
ॐ ब्रह्मजायायै नमः ।
ॐ महाफलायै नमः
॥ ७० ॥
ॐ त्रयीमूर्त्यै नमः ।
ॐ त्रिकालज्ञायै नमः ।
ॐ त्रिगुणायै नमः ।
ॐ शास्त्ररूपिण्यै नमः ।
ॐ शुम्भासुरप्रमथिन्यै नमः ।
ॐ शुभदायै नमः ।
ॐ स्वरात्मिकायै नमः ।
ॐ रक्तबीजनिहन्त्र्यै नमः ।
ॐ चामुण्डायै नमः ।
ॐ अम्बिकायै नमः
॥ ८० ॥
ॐ मुण्डकायप्रहरणायै नमः ।
ॐ धूम्रलोचनमर्दनायै नमः ।
ॐ सर्वदेवस्तुतायै नमः ।
ॐ सौम्यायै नमः ।
ॐ सुरासुर नमस्कृतायै नमः ।
ॐ कालरात्र्यै नमः ।
ॐ कलाधारायै नमः ।
ॐ रूपसौभाग्यदायिन्यै नमः ।
ॐ वाग्देव्यै नमः ।
ॐ वरारोहायै नमः
॥ ९० ॥
ॐ वाराह्यै नमः ।
ॐ वारिजासनायै नमः ।
ॐ चित्राम्बरायै नमः ।
ॐ चित्रगन्धायै नमः ।
ॐ चित्रमाल्यविभूषितायै नमः ।
ॐ कान्तायै नमः ।
ॐ कामप्रदायै नमः ।
ॐ वन्द्यायै नमः ।
ॐ विद्याधरसुपूजितायै नमः ।
ॐ श्वेताननायै नमः
॥ १०० ॥
ॐ नीलभुजायै नमः ।
ॐ चतुर्वर्गफलप्रदायै नमः ।
ॐ चतुरानन साम्राज्यायै नमः ।
ॐ रक्तमध्यायै नमः ।
ॐ निरंजनायै नमः ।
ॐ हंसासनायै नमः ।
ॐ नीलजङ्घायै नमः ।
ॐ ब्रह्मविष्णुशिवान्मिकायै नमः॥ १०८ ॥
॥ इति श्री सरस्वति अष्टोत्तरशत नामावलिः ॥
Saraswati pooja aarti
ओइम् जय वीणे वाली, मैया जय वीणे वाली
ऋद्धि-सिद्धि की रहती, हाथ तेरे ताली
ऋषि मुनियों की बुद्धि को, शुद्ध तू ही करती
स्वर्ण की भाँति शुद्ध, तू ही माँ करती॥ 1 ॥
ज्ञान पिता को देती, गगन शब्द से तू
विश्व को उत्पन्न करती, आदि शक्ति से तू॥ 2 ॥
हंस-वाहिनी दीज, भिक्षा दर्शन की
मेरे मन में केवल, इच्छा तेरे दर्शन की॥ 3 ॥
ज्योति जगा कर नित्य, यह आरती जो गावे
भवसागर के दुख में, गोता न कभी खावे॥ 4 ॥
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