भारत में किसी भी त्योहार को मनाने के पीछे बहुत बड़ा कारण होता है। नवरात्रि नौ दिन का पावन समूह होता है। इन दिनों जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ मां दुर्गा के नौ रूप की विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करता है, उसे देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
वह भक्त धरती पर सभी सुख, वैभव, समृद्धि आदि को प्राप्त कर लेता है, इतना ही नहीं वह अपना परलोक भी सुधार लेता है।
नवरात्रि क्यों मनाया जाता है और उसका महत्व क्या है?
मां दुर्गा को आद्याशक्ति भी कहा गया है इन के नौ स्वरूप का वर्णन मार्कंडेय पुराण में विस्तार पूर्वक किया गया है। समय-समय पर असुरों का नाश करने तथा भक्तों को अभय दान देने के लिए अवतार लेती हैं।
नवरात्रि का पावन दिन माता के उन्हें नौ स्वरूप की पूजा करने का दिन होता है।
मान्यता के अनुसार वर्ष में नवरात्रि चार बार मनाया जाता है
- चैत्र नवरात्रा,
- आषाढ़ नवरात्रा,
- आश्विन नवरात्र,
- तथा माघ नवरात्रा।
मुख्य रूप से भारत में चैत्र नवरात्रा तथा शारदीय नवरात्रा मनाया जाता है जिसे हम चैत्र नवरात्रि को रामनवमी तथा शारदीय नवरात्रा को महानवमी के नाम से जानते हैं।
मंत्र
शरत-काले महापूजा क्रियते या च वार्षिकी
तस्यां ममैतन्माहात्म्यं श्रुत्वा भक्ति समन्वितः
सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धन-धान्य सुतान्वितः
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः। ।
दुर्गा सप्तशती में मां दुर्गा ने स्वयं कहा है जो शरद ऋतु में आने वाले नवरात्री को विधि-विधान के साथ देवी के नौ स्वरूप की पूजा करता है, उसकी सब बाधाएं स्वत नष्ट हो जाती है। वह इस पृथ्वी पर धन वैभव पुत्र आदि को प्राप्त करता है, उसे मेरा आशीर्वाद प्राप्त होता है। वह मनुष्य इस पृथ्वी पर भय मुक्त श्रेष्ठ मानव का जीवन यापन करता है तथा मृत्यु के पश्चात वह देवलोक का भागी होता है।
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बंगाल में दुर्गा पूजा का महत्व
पूरे भारतवर्ष में शारदीय नवरात्र की पूजा का विशेष प्रबंध किया जाता है।
जगह-जगह मां दुर्गा का पंडाल लगाया जाता है और पूरे विधि विधान के साथ पूजा की जाती है। विजयदशमी के दिन पूरे धूमधाम और उत्साह के साथ मां दुर्गा के मूर्ति को उठाया जाता है। बंगाल की संस्कृति में दुर्गा पूजा का और भी महत्व बढ़ जाता है क्योंकि इस संस्कृति से जुड़े लोग मां दुर्गा की पूजा बेहद उत्साह पूर्वक ढंग से करते हैं। विजयदशमी के दिन गुलाल और रंग के साथ होली खेलते हैं तथा अपने सगे संबंधी मित्र जनों को शुभकामनाएं भेंट करते हैं।
यह एक अनूठा दृश्य होता है जो केवल बंगाल की संस्कृति में देखने को मिलती है।
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श्रीराम द्वारा शक्ति की उपासना
त्रेता युग में जब रावण से निर्णायक युद्ध आरंभ हो चुका था। तब प्रभु श्री राम ने शक्ति की उपासना की थी। इस उपासना से उन्हें देवी की शक्ति प्राप्त हुई थी। इसी शक्ति के प्रभाव से ही उन्होंने रावण का संहार किया था।
शारदीय नवरात्री का पूजन प्रभु श्री राम ने मनुष्य रूप में किया था।
जो भी मनुष्य पूरे विधि विधान और सच्ची निष्ठा के साथ देवी शक्ति का आह्वान करता है उसे वह शक्ति अवश्य प्राप्त होती है। रामनवमी कोट्स
नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, स्वयं भगवान शिव शंकर ने माता पार्वती को बताया था –
नवशक्ति भिः संयुक्तं नवरात्रंतदुच्यते
एकैवदेव देवेशि नवधा परितिष्ठा। ।
जो कोई सच्ची श्रद्धा के साथ नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा की आराधना करता है प्रत्येक दिन उनके स्वरूपों की पूजा करता है उसे देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है वह शक्ति जो सृष्टि को संचालित करती है जिन्हें आदिशक्ति के नाम से भी जाना जाता है वह अपने भक्तों पर प्रसन्न होती हैं।
मां दुर्गा के नौ रूप का नाम
मार्कंडेय पुराण में दुर्गा के नौ रूप का वर्णन मिलता है।
प्रथम | शैलपुत्री |
द्वितीय | ब्रह्मचारिणी |
तृतीय | चंद्रघंटा |
चतुर्थी | कुष्मांडा |
पंचमी | स्कंदमाता |
षष्ठी | कात्यायनी |
सप्तमी | कालरात्रि |
अष्टमी | महागौरी |
नवमी | सिद्धिदात्री |
यह सभी नाम महात्मा भगवान वेद के नाम से प्रतिपादित हुए हैं माता का यह स्वरूप भिन्न भिन्न प्रकार की योग शक्तियों से संपन्न है। भक्त माता के नौ स्वरूप की पूजा शारदीय नवरात्रा के समय करते हैं तथा अष्टमी या नवमी को कन्या पूजन कर उन्हें भोग लगाते हैं देवी भागवत मे कुमारी कन्या को देवी का जीवंत रूप माना गया है इसमें विभिन्न प्रकार की आयु की कन्याओं को देवी के विशेष रूप से जोड़ा गया है।
नवरात्रि में पूजे जाने वाली कन्याओं के रूप
- कुमारिका – जो कन्या 2 वर्ष की होती है, उन्हें ‘कुमारिका’ कहते हैं। इनका विधि-विधान से पूजन करने से धन, आयु, बल की वृद्धि होती है भक्त का घर धन-वैभव, संपदा से परिपूर्ण रहता है।
- त्रिमूर्ति – 3 वर्ष की कन्या को ‘त्रिमूर्ति’ कहा जाता है। इनके पूजन से घर में सुख समृद्धि वैभव का आगमन होता है।
- कन्या कल्याणी – 4 वर्ष की कन्या का पूजन करने से विवाह जैसे मंगल कार्य संपन्न होते हैं। जो कार्य काफी वर्षों से पूर्ण नहीं हो पा रहे थे वह सभी पूर्ण हो जाते हैं।
- रोहिणी – 5 वर्ष की कन्या को ‘रोहिणी’ माना गया है इनकी विधि-विधान के साथ पूजा करने से स्वास्थ्य लाभ होता है। घर में सभी निरोगी रहते हैं, कभी कोई असाध्य रोग उनके पास नहीं आता।
- कालिका – 6 वर्ष की कन्या को ‘कालिका’ कहते हैं इनकी विधि-विधान के साथ पूजा करने से शत्रु का नाश होता है। कितना ही घोर शत्रु क्यों ना हो उससे मुक्ति प्राप्त होती है। शास्त्रों में कालिका पूजन का विस्तार से वर्णन है।
- शांभवी – 8 वर्ष की कन्या को शांभवी माना गया है, इनकी पूजा करने से दुख दरिद्रता का नाश होता है। घर में धन-वैभव का भंडार लगता है। साधक को दीर्घ आयु तथा निरोगी काया प्राप्त होती है।
- दुर्गा – 9 वर्ष की कन्या को ‘दुर्गा’ का स्वरूप माना गया है। इनका विधि विधान के साथ पूजन करने से असाध्य रोग का नाश होता है तथा कठिन से कठिन कार्य की सिद्धि होती है। इतना ही नहीं वह इस पृथ्वी पर दीर्घायु होता है, मृत्यु के उपरांत उसे देवलोक प्राप्त होता है।
- सुभद्रा – 10 वर्ष की कन्या को ‘सुभद्रा’ का स्वरूप माना जाता है। इनकी पूजा से मोक्ष की प्राप्ति होती है, वह सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाता है।
शास्त्रों में कन्या पूजन का महत्व
भारतीय संस्कृति प्राचीनतम संस्कृति में से एक है, यहां सभी का सम्मान होता है। भारतीय संस्कृति ही एक ऐसी संस्कृति है जिसमें निर्जीव की पूजा का भी विधान है। तभी यहां पाषाण की भी पूजा की जाती है। आदि काल में मनुष्य इंद्र, सूर्य, चंद्रमा जैसे देवताओं की भी पूजा उत्साह पूर्वक किया करते थे।
आज देवी देवताओं के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है।
शास्त्रों में कन्या पूजन का विशेष महत्व है। कन्या को देवी शक्ति का जीवंत रूप माना गया है।
देवी भागवत में इसका विस्तृत रूप से वर्णन भी मिलता है, जिसमें विभिन्न प्रकार की आयु की कन्याओं को देवी का स्वरूप माना गया है। आधुनिक समय में कन्या पूजन का महत्व और बढ़ जाता है। क्योंकि मानव आज के परिवेश में कन्या तथा देवी शक्ति को भूलता जा रहा है।
इस पूजन से समाज को कन्या तथा स्त्री का सम्मान करने की सद्भावना आती है।
इसके माध्यम से जन सामान्य तक स्त्री के सम्मान की शिक्षा को पहुंचाया जाता है जिसमें धार्मिकता का बंधन होता है। इस प्रयत्न से निश्चित रूप से ही देवी शक्ति को समझने और उसे अपने जीवन में अपनाने का ज्ञान प्राप्त होता है। कोई भी अधर्म करने से पूर्व इस शिक्षा से अवश्य ही डरता है तथा अधर्म करने से स्वयं को रोक पाने में सक्षम होता है।
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मां दुर्गा को आदि शक्ति के रूप में पूजा जाता है इनका पूजन मनुष्य ही नहीं देवताओं के लिए भी गुणकारी है। पृथ्वी पर जब-जब संकट उत्पन्न होता है आसुरी शक्ति देवलोक पर भारी पड़ती है। तब तब देवता देवी शक्ति को जागृत करते हैं।
देवी की पूजा करने वाले व्यक्ति को स्वास्थ्य दीर्घायु आदि का लाभ होता है।
उसके घर में धन वैभव की कमी नहीं रहती। वह दूसरों को आश्रय देने वाला हो जाता है।
इस पृथ्वी पर वह अपमृत्यु रहित सौ से अधिक वर्षों तक जीवित रहता है, फिर देव लोक में आनंद का भागी बनता है। इस नवरात्रि हाथी देवी शक्ति का विधि विधान के साथ अनुष्ठान करें और अपने जीवन में गुणकारी बदलाव को महसूस करें। आपका जीवन सफल सुखद और आनंदमय हो जाएगा।