आज के लेख में हम वन महोत्सव अर्थात वृक्षारोपण से संबंधित विचार लिख रहे हैं ,जो मानव को जागरूक करने के लिए कारगर है। यह लेख निबंध के तौर पर है जिसे विद्यार्थी अपने परियोजना के लिए प्रयोग कर सकते हैं।
वृक्षारोपण पर निबंध
भारत की वसुंधरा सदैव शस्य-श्यामल रही है , यहां की प्रकृति ने सदैव लोगों को आकर्षित किया है। यही कारण है कि विदेशी भी इस धरती पर आकर एक सुखद अनुभूति प्राप्त करते हैं। वह यहां के वातावरण में इतना रम जाते हैं कि यहां से उन्हें वापस जाने का मन नहीं करता। हमारा देश सदैव खनिज तथा धन संपदा से भरा रहा है।
पूर्व काल में भारत को सोने की चिड़िया कहा गया था अर्थात यहां किसी प्रकार की कोई संपदा में कमी नहीं थी ,चाहे वह बौद्धिक संपदा हो या प्राकृतिक।
यहां के प्राकृतिक संपदा का कोई जवाब नहीं था।
कितने ही विदेशी दक्षिण भारत में मसालों की खोज करते हुए पहुंचे।
भारत के मसाले अति दुर्लभ है जिन्हें केवल भारत में ही प्राप्त किया जा सकता है। इसी प्राकृतिक संपदा को अधिक मात्रा में लूटने के लिए निरंतर विदेशी यहां आते रहे और बड़े मुनाफे पर अपने देश ले जाकर बेचते। आज भारत के प्राकृतिक धीरे-धीरे नष्ट होती जा रही है ,जिसके कारण पृथ्वी का संतुलन भी निरंतर बिगड़ता जा रहा है।
इसका एकमात्र कारण व्यक्ति की लापरवाही है।
वृक्ष के साथ मनुष्य का संबंध
वृक्ष का संबंध मनुष्य के आरंभिक जीवन से है। मनुष्य की सभ्यता इन वृक्षों के साथ ही विकसित हुई है। वृक्षों ने मनुष्य को पहनने के लिए वस्त्र दिए,खाने को फल दिए और श्वास लेने के लिए वायु प्रदान किया। धीरे-धीरे जब मनुष्य में बौद्धिक समझ विकसित हुई उन्होंने प्राकृतिक संसाधनों को पहचाना और उसके अहमियत को भी जाना। यही कारण है कि आदिकाल में प्रकृति की पूजा की जाती थी।
आदिमानव वृक्ष, सूर्य, अग्नि, वर्षा जैसे प्रकृति की पूजा की है।
उन्होंने अपने देवी देवता भी इन्हीं को माने थे। यही परंपरा आज भी चली आ रही है किंतु लोगों ने वृक्ष से धीरे-धीरे दूरी बना लिया है। आज उन्होंने केवल भौतिकवादी मानसिकता को अपनाकर निरंतर प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया है। अपने सुख-सुविधाओं और वैभव पूर्ण जीवन के लिए वृक्षों की कटाई की है।
यही वृक्ष जो आदिकाल से मनुष्य का भरण पोषण किया करते थे ,उनकी हालत दयनीय कर दी है। जिसका दुष्प्रभाव भी हमें बड़े मात्रा में देखने को मिल रहे हैं। ताप वृद्धि,सूखा ,बाढ़, वर्षा का ना होना यह सभी वृक्षों के साथ बुरा बर्ताव करने से हो रहा है। इसलिए व्यक्ति को अपने प्रकृति के संबंध को पुनः याद करना होगा और बड़ी मात्रा में वृक्षों को लगाकर उसके संरक्षण के लिए प्रण लेना होगा।
अगर वृक्ष नहीं रहे तो मानव जीवन पृथ्वी पर संभव नहीं रहेगा।
पृथ्वी के सौंदर्य में वृद्धि
वृक्ष पृथ्वी के सौंदर्य की वृद्धि करते हैं,इसमें हृदय को आकर्षित करने की क्षमता है। आप किसी बागान में जाइए आपको स्वस्थ वायु ,शीतल हवा और मधुर छाव प्राप्त होते हैं।
यह सभी वृक्षों के कारण ही संभव है।
अगर वृक्ष पृथ्वी पर ना रहे तो मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
हरे भरे खेतों को देखकर आंखों को जो एक दिव्य अनुभूति प्राप्त होती है क्या यह पृथ्वी का सौंदर्यीकरण नहीं है ? एक घने जंगल में जाकर जो प्रकृति का आनंद मिलता है , क्या वह शहर के भीड़भाड़ वाले ट्रैफिक में मिल सकता है ? पौधे-वृक्ष यह सभी पृथ्वी के सौंदर्य की वृद्धि के साथ-साथ मानव जीवन को पोषित करते हैं।
उन्हें खाने को अन्न प्रदान करते हैं तथा ऋतु चक्र को भी संतुलित बना कर रखते हैं।
वृक्ष की पूजा
जैसा कि हम सभी जानते हैं आदि मानव प्रकृति के बहुत करीब था।
पेड़ों के छाल को वस्त्र बनाकर पहना करता था,खाने को उनसे स्वादिष्ट फल प्राप्त किया करता था ,तथा आग जलाकर जंगली हिंसक जानवरों से स्वयं की रक्षा भी किया करता था। धीरे धीरे जैसे-जैसे सभ्यता विकसित हुई लोगों ने आवास के लिए,खेती के लिए, कल कारखाने लगाने के लिए बड़ी मात्रा में वृक्षों की कटाई की। वह यह भी जानता था कि मनुष्य जीवन के लिए ऑक्सीजन की बेहद आवश्यकता है। इसलिए बड़े ही चालाकी से ऑक्सीजन भरपूर मात्रा में प्रदान करने वाले वृक्षों की पहचान कर उन्हें आस्था और धर्म के साथ जोड़ दिया गया। आज तुलसी, पीपल, बरगद, नीम आदि अनेकों वृक्ष भारत में धर्म के अनुसार पूजा जाता है।
यह पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि वह मनुष्य को जीवन प्रदान करते हैं शुद्ध वायु प्रदान करते हैं। अगर इसे धर्म के साथ ना जोड़ा गया होता तो आज यह वृक्ष भी पृथ्वी से विलुप्त होने की कगार पर होते। मनुष्य इतना स्वार्थी है अपने स्वार्थ के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है।
हमें भी जागरूक रहकर वृक्षों के प्रति सजग और सतर्क व्यवहार करना चाहिए।
हमें अपने घर तथा बाहर वृक्षों का संरक्षण बड़े पैमाने पर करना चाहिए और उसे अपने आस्था और विश्वास के साथ भी जोड़ना चाहिए। आज अनेकों ऐसे घरेलू पौधे हैं जो चौबीसों घंटे शुद्ध वायु प्रदान करते हैं।
इनकी पूजा ईश्वर के रूप में ही करनी चाहिए क्योंकि यह हमें प्राणवायु प्रदान करते हैं।
वृक्षों से ऑक्सीजन की आपूर्ति
जैसा कि हम सभी जानते हैं वृक्षों से ऑक्सीजन की प्राप्ति होती है। वृक्ष हमारे द्वारा छोड़े गए कार्बन डाइऑक्साइड को सोख लेते हैं तथा उसके बदले ऑक्सीजन देते हैं। कुछ ऐसे पौधे भी हैं जो 24 घंटे ऑक्सीजन छोड़ते हैं। इतना ही नहीं वैज्ञानिकों के द्वारा सिद्ध हो चुका है कि वृक्षों के द्वारा ऑक्सीजन तथा सकारात्मक विचारों की भी सृष्टि होती है। वृक्षों के द्वारा एक ऐसे वातावरण का निर्माण होता है जो आसमान से उतरने वाली पराबैंगनी किरणें आदि को वायुमंडल के भीतर नहीं आने देती। यह किरणें इतनी खतरनाक होती है कि मनुष्य की त्वचा पर पडते ही कैंसर जैसी घातक बीमारी उत्पन्न कर देते हैं।
त्वचा रोग, आंखों की रोशनी आदि इस किरणों से प्रभावित होती है।
इसलिए वृक्षों का हमें सदैव संरक्षण करना चाहिए जिससे आपूर्ति के साथ-साथ हमें एक स्वस्थ वातावरण मिल पाता है।
ऋतु चक्र का संतुलित व्यवहार
वृक्षों से हमने अनेकों लाभ तो प्राप्त ही किए,किंतु इसका एक अहम योगदान वातावरण को संतुलित करने में भी है। वृक्ष अपने आवरण से एक ऐसी परिधि का निर्माण करते हैं जो वायुमंडल में हानिकारक गैस तथा किरणों को घुसने नहीं देते।
वृक्षों के माध्यम से प्रकृति का चक्र संतुलित बना रहता है।
समय पर वर्षा इसी संतुलन के आधार पर हो पाता है।
पूर्व समय में यह चक्र बेहद संतुलित था। अपने समय के अनुसार यह सभी कार्य पूरे हुआ करते थे , आज वैसी स्थिति नहीं रही। प्रकृति का संतुलन बिगड़ने से कहीं अधिक वर्षा होती है,तो कहीं सूखाग्रस्त रहता है। समय पर वर्षा नहीं होने से फसल नहीं लग पाती तथा कहीं अत्यधिक वर्षा से फसलें बर्बाद हो जाती है। बाढ़ आदि तमाम प्रकृति के संतुलन बिगड़ने से घटनाएं हो रही है।
वृक्षों की अधिक उपलब्धता के कारण ही हम प्रकृति का चक्र संतुलित कर सकते हैं।
जिसके कारण प्रकृति मानव के साथ एक संतुलित व्यवहार कर सकेगी।
वृक्षारोपण से लाभ
वृक्ष तथा वन संपदा से मनुष्य को अनेकों-अनेक लाभ होते हैं जिसकी हम गणना नहीं कर सकते। कुछ लाभ सादृश्य होते हैं जिसे हम देख सकते हैं कुछ लाभ अदृश्य होते हैं जिसे हम नहीं देख सकते। जैसे ऑक्सीजन प्रत्येक मनुष्य की प्राथमिकता है जिससे हम सब नहीं देख पाते किंतु ऑक्सीजन के बिना हम रह भी नहीं सकते। इस प्रकार वृक्ष से हमें अनेकों लाभ प्राप्त होते हैं जिसमें कुछ निम्न है –
शुद्ध वायु
वृक्षों के माध्यम से हमें शुद्ध वायु प्राप्त होती है। वृक्षों में एक खास गुण होता है जो जहरीली गैस से कार्बन डाइऑक्साइड आदि को स्वयं सोख लेती है और वातावरण को शुद्ध करते हुए ऑक्सीजन उपलब्ध कराती है। यह किसी अन्य स्रोत से नहीं हो सकता।
औषधि
वृक्ष हमें विभिन्न प्रकार के औषधि,जड़ी-बूटी आदि उपलब्ध कराते हैं। यह गंभीर से गंभीर रोगों का निवारण करने की क्षमता रखते हैं। प्राचीन काल में भारतीय संस्कृति में आयुर्वेदिक रूप से व्यक्ति की सभी बीमारियों का इलाज किया जाता था चाहे वह बीमारी साधारण हो अथवा गंभीर।
आज भी हमें जड़ी-बूटियां, औषधि प्रकृति तथा वृक्षों के माध्यम से ही प्राप्त होती है।
फल
आज व्यक्ति के पास भोजन के लिए अनेकों ऐसे साधन है जिससे अपनी भूख मिटा सके। किंतु प्राचीन काल से व्यक्ति अपना भरण-पोषण फल तथा कंद-मूल से किया करता था। यही उसके पेट भरने का एकमात्र स्रोत हुआ करते थे।
आज भी स्वादिष्ट फलों की प्राप्ति हमें वृक्षों के माध्यम से ही होती है।
भारत में मौसम परिवर्तित होते रहते हैं , यहां अनेकों प्रकार के मौसम है जो विदेशों में नहीं है होते। वृक्ष हमें मौसम के अनुसार स्वादिष्ट फल प्रदान करते हैं जो हमें अनेकों रोग से बचाते हुए शरीर को स्वास्थ्य लाभ भी देते हैं।
अन्न
पूरा विश्व आज अन्न के लिए संघर्ष कर रहा है।
विश्व में खेती के लिए जमीन काफी कम हो गई है। भारत जिसे कृषि प्रधान देश कहा जाता था। इस देश में भी खेती योग्य जमीन निरंतर घटता जा रही है। यहां उत्पादित हुए अन्न यहां के लोगों का पेट भरने के साथ-साथ विदेशी लोगों का भी पेट भरता है।
प्रकृति तथा वृक्षों से हमें अन्न की प्राप्ति होती है।
सुन्दर वातावरण
वृक्षों के माध्यम से एक सुंदर वातावरण का निर्माण होता है जिसमें चारों और हरियाली रंग-बिरंगे पेड़ पौधे फलदार वृक्ष आदि दृश्य हृदय को आकर्षित करते हैं। इस वातावरण में कई प्रकार के जीव-जंतु पनाह लेते हैं। इस शानदार वृक्षों के माध्यम से ही शीतल वायु और पक्षियों की कलर ध्वनि मिल पाती है।
अतः वृक्ष,पेड़-पौधे एक सुंदर और दिव्य वातावरण का निर्माण करते हैं।
कागज
मानव अपने बौद्धिक संपदा का हस्तांतरण अगली पीढ़ी तक मौखिक रूप से किया करता था। आधुनिक काल तक वह इसी पद्धति पर कार्य करता रहा। किंतु धीरे-धीरे विद्वानों ने इसे संग्रहित करने की दिशा में कार्य किया। उन्होंने ताम्रपत्र,भोजपत्र आदि पर अपने ज्ञान को लिखकर संग्रहित किया। किंतु यह अधिक समय तक सुरक्षित नहीं रह सकते थे। एक समय के बाद धीरे-धीरे यह नष्ट हो रहे थे।
इस पर वैज्ञानिक शोध के माध्यम से वृक्षों की छाल आदि से एक ऐसे कागज का निर्माण किया जो लंबे समय तक ज्ञान को संग्रहित करने की क्षमता रखता था। आज कागज प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकता में शामिल है , चाहे वह अपने पढ़ाई संबंधित कार्य करें या व्यवसाय संबंधित किंतु आज उसकी उपयोगिता से वह बचा नहीं है।
फर्नीचर
मनुष्य के भोग विलासिता की सामग्री प्रकृति तथा वृक्षों से ही प्राप्त होती है।
आज भवन निर्माण में प्रयोग होने वाले चौखट,
- दीवार,
- दरवाजे,
- खिड़की,
- कुर्सी-मेज
आदि सभी प्रकार की वस्तुएं वृक्षों से ही प्राप्त होती है।
यह काफी सस्ता और सुलभ संसाधन है इसलिए व्यक्ति इसका दोहन दोनों हाथों से कर रहा है।
इतना ही नहीं यह कुछ समय पूर्व तक भारतीय घरों में इंधन का कार्य भी करती थी।
लकड़ियों के माध्यम से ही भारतीय रसोइयों में खाना बना करता था।
वृक्षों की कटाई से हानि
वृक्षों की कटाई से अनेकों प्रकार की हानियां परोक्ष-अपरोक्ष रूप से निरंतर देखने को मिल रही है उसमें कुछ हानियां निम्नलिखित है –
1. खेती योग्य जमीन की घटती मात्रा
मनुष्य की प्राथमिकता भोजन की रहती है। भोजन कृषि के माध्यम से प्राप्त होता है। आज बड़े-बड़े आवासीय प्रोजेक्ट लगाए जा रहे हैं , कल कारखाने अंधाधुन मात्रा में स्थापित किए जा रहे हैं। इन सभी क्रियाकलापों से वनों के निरंतर कटाई की जा रही है। कंस्ट्रक्शन के माध्यम से खेती योग्य जमीन दिन-प्रतिदिन गुणात्मक रूप में घटती जा रही है जो भविष्य में अन्न संकट ला सकता है।
2. हरियाली की कमी
वृक्ष सौंदर्य को बढ़ाते हैं यह पृथ्वी का आभूषण होते हैं। जिस प्रकार मानव अपनी जरूरतों के लिए वनों की कटाई कर रहे हैं कृषि योग्य जमीन को नष्ट कर रहे हैं उससे हरियाली भी विलुप्त हो रही है। यह हरियाली केवल वृक्षों की समाप्ति से नहीं बल्कि पृथ्वी पर उपलब्ध ऑक्सीजन की मात्रा को भी समाप्त कर रहा है। ऑक्सीजन के बिना मनुष्य का जीवन नहीं है इस बात से भी अनभिज्ञ वह दिन-प्रतिदिन वृक्षों को काटकर मानव जीवन के अस्तित्व के लिए चुनौती उत्पन्न कर रहे हैं।
3. वर्षा समय पर ना होना
कुछ दशक से वर्षा समय पर नहीं हो पा रहा है, जिसका कारण है प्रकृति का संतुलन बिगड़ना। मनुष्यों ने अधिक मात्रा में वनों की कटाई कर वृक्षों को समाप्त कर उपजाऊ भूमि को बंजर बना कर प्रकृति के चक्र को बिगाड़ा है। जिसका एक प्रभाव वर्षा समय पर ना होना है।इसके कारण निरंतर मौसम अपना स्वरूप बदलता जा रहा है। कहीं अधिक वर्षा तो कहीं सूखा जैसी स्थिति उत्पन्न हो रही है।
इसके संतुलन के लिए अधिक मात्रा में वृक्षों को लगाया जाना आवश्यक है।
4. तापमान की वृद्धि
आज पूरे विश्व में ग्लोबल वार्मिंग के विषय पर जोर शोर से चर्चा और अभियान चलाए जा रहे हैं। वृक्षों की निरंतर कटाई से पृथ्वी पर तापमान की वृद्धि हो रही है ,जिसके कारण बड़े-बड़े ग्लेशियर पिघल रहे हैं। यह जल के इस तर्क को बढ़ा रहे हैं,जिसके कारण छोटे-छोटे द्वीप जलमग्न होते जा रहे हैं।
यही स्थिति रही तो मानव पृथ्वी के ताप को सहन नहीं कर पाएगा।
निरंतर प्रकृति का संतुलन बिगड़ता जाएगा और प्रकृति विभिन्न रूप से मनुष्य को जीवन जीने के लिए चुनौती उपस्थित करता रहेगा। बड़े-बड़े कल-कारखाने लगाने के लिए निरंतर वनों की कटाई हो रही है. वृक्ष वातावरण को शुद्ध करने के साथ-साथ शीतल करते हैं। जब वृक्ष नहीं रहेंगे तो शीतलता कहां से आएगी? इसीलिए वृक्षों के कम होने से पृथ्वी का ताप निरंतर वृद्धि कर रहा है।
5. जीव-जंतुओं का अस्तित्व संकट में
कई छोटे-बड़े जीव-जंतु पेड़ों के साथ अपना जीवन जोड़कर जिया करते थे। आज आपने उन पक्षियों को देखना बंद कर दिया होगा जो पहले आपके घरों तथा पेड़ों पर निवास किया करते थे।
जिसमें से एक उदाहरण गौरैया चिड़िया का ले सकते हैं।
पेड़ों की कटाई ने उनके अस्तित्व को समाप्त कर दिया है।
आज उन्हें अपने आश्रय के लिए पेड़ नहीं मिल पा रहे हैं। घरों में उनके लिए कोई आसरा नहीं रह गया है। इसलिए इस प्रकार के जीव जंतु निरंतर पेड़ों,वनों के अभाव में अपना निरंतर अस्तित्व खोते जा रहे हैं। अगर ऐसी स्थिति रही तो यह प्राकृतिक चक्र को बिगाड़ देंगे क्योंकि यह सभी मनुष्य जीवन के लिए आवश्यक है।
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संवाद लेखन की परिभाषा और उदाहरण
उपसंहार
वृक्षारोपण आज की आवश्यकता है। वृक्षारोपण के अभाव में प्रकृति का निरंतर दोहन होता रहेगा। अगर आज भी मनुष्य प्रकृति के साथ अपना नाता नहीं जोड़ेगा तो वह समय दूर नहीं जब उसके समक्ष अनेकों ऐसी समस्याएं विपदा उपस्थित होंगी , जिसमें वह अपने अस्तित्व को शनै शनै खोता रहेगा।
वृक्ष से मनुष्य को इतनी अपार संपदा प्राप्त होती है जिसका वह मूल्य कभी नहीं चुका सकता।
ऐसे भंडार को मनुष्य निरंतर दोनों हाथों से नष्ट कर रहा है।
प्राकृतिक संसाधनों का इतना दोहन कर रहा है कि प्रकृति दिन-प्रतिदिन अपना संतुलन खोती जा रही है। अनेकों ऐसे अभियान के माध्यम से वन महोत्सव तथा वृक्षारोपण का प्रचार किया जा रहा है, जिससे व्यक्ति जागरूक हो सके और अपने दायित्व को समझें। किंतु यह नाकाफी है जब तक इस विषय को जन जन तक नहीं पहुंचाया जाएगा। इसके लिए कड़े कानून का प्रावधान नहीं किया जाएगा तब तक यह सभी व्यर्थ है।
आज अनेकों विकसित देशों ने प्रकृति के प्रति अपनी समझदारी विकसित करने के लिए विद्यालय पाठ्यक्रम में वृक्षों तथा कृषि का विषय जोड़ा है। जो बचपन से ही बच्चों को उसके प्रति उदारवादी बनाता है। उसके संरक्षण और आवश्यकता के लिए सचेत और जागरूक करता है आज ऐसी ही आवश्यकता पूरे विश्व की है।
आशा है यह निबंध आपको पसंद आया हो आपकी समझ की वृद्धि हो सकी हो तथा वृक्ष के महत्व को जान सके होंगे। अपने विचार,राय और सुझाव या कुछ विशेष विचार साझा करने के लिए कमेंट बॉक्स में लिखें,हम आपके विचारों का सम्मान करते हैं।
अगर हमें इस पृथ्वी को बचाना है तो वृक्षारोपण करना पड़ेगा, नहीं तो बहुत सारी मुसीबत आ सकती है