माता सरस्वती की कृपा जिस भक्तों पर हो जाती है, वह भक्त इस जगत में पूजनीय हो जाता है। लोग उसे अपना आदर्श मानते हैं और उसका अनुकरण करते हैं। वह भक्त अपने जीवन के मूल उद्देश्यों को समझते हुए जीवन यापन करता है तथा अंत समय में देवी के परमधाम को प्राप्त होता है। जहां सरस्वती माता विराजमान होती है वही लक्ष्मी जी का भी वास होता है, उस घर में सुख, समृद्धि, धन-वैभव आदि की वर्षा होती है।
माता सरस्वती जी की आरती (Saraswati Mata Aarti)
जय सरस्वती माता,
मैया जय सरस्वती माता
सदगुण वैभव शालिनी,
त्रिभुवन विख्याता ॥
जय जय सरस्वती माता…
चन्द्रवदनि पद्मासिनि,
द्युति मंगलकारी
सोहे शुभ हंस सवारी,
अतुल तेजधारी ॥
जय जय सरस्वती माता…
बाएं कर में वीणा,
दाएं कर माला
शीश मुकुट मणि सोहे,
गल मोतियन माला ॥
जय जय सरस्वती माता…
देवी शरण जो आए,
उनका उद्धार किया
पैठी मंथरा दासी,
रावण संहार किया ॥
जय जय सरस्वती माता…
विद्या ज्ञान प्रदायिनि,
ज्ञान प्रकाश भरो
मोह अज्ञान और तिमिर का,
जग से नाश करो ॥
जय जय सरस्वती माता…
धूप दीप फल मेवा,
माँ स्वीकार करो
ज्ञानचक्षु दे माता,
जग निस्तार करो ॥
जय सरस्वती माता…
माँ सरस्वती की आरती,
जो कोई जन गावे
हितकारी सुखकारी,
ज्ञान भक्ति पावे ॥
जय जय सरस्वती माता…
जय सरस्वती माता,
जय जय सरस्वती माता
सदगुण वैभव शालिनी,
त्रिभुवन विख्याता।
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समापन
सरस्वती माता को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री माना जाता है। सरस्वती माता ज्ञान, बुद्धि, विवेक देने वाली है। यह जिन भक्तों पर अपनी कृपा बरसाती है वह इस जगत में संपूर्ण वैभव को प्राप्त कर लेता है। जीवन के वास्तविक अर्थों को जान लेता है फिर वह मोह माया आदि के बंधनों से मुक्त होकर जीवन यापन करता है। दैहिक, भौतिक आदि कष्ट इनके भक्तों को कभी घेर नहीं पाता। इनके भक्त सदैव उचित आचरण करते है, और लोगों को अपने आचरण से प्रेरित करते हैं। जो कोई पूजा, यज्ञ आदि के उपरांत माता लक्ष्मी की विधि-विधान के साथ आरती करता है उसे सरस्वती माता की कृपा अवश्य प्राप्त होती है। आपको उपरोक्त लेख कैसा लगा सुझाव कमेंट बॉक्स में अवश्य लिखें।