Ramadhar Verma is a Hindi lecturer who has written in this poem and submitted it to us. We loved this poem and hence we are making special post to thank him.
Poem by Sir Ramadhar Verma – मेरे ईश्वर , मैं ईश्वर का
मेरे ईश्वर, मैं ईश्वर का।
राम का आधार पाकर तब मैं ‘रामाधार’ कहलाया
दिन – रात , सुख – दुख में ,उसीने मुझे सहलाया। ।
मानकर लोगों ने मेरी लाचारी को , श्राप
दूर किया सब लोगों ने आप ,
तब भी बंधी रही डोर उनसे।
पाकर सहारा तब फिर उसका ,
और अधिक हुआ सक्षम मैं। ।
एक क्या अनेकों जीवन तब संवारा मैंने
जो थे वंचित और लाचार ,
मां – बाप का भी जिन्हें मिला न था प्यार ,
देखते – देखते हो गया,मैं ही उनका संसार। ।
पाकर संबल उन पौधों ने ,
लिया है आज विशाल आकार
मैं क्या कुछ और बताऊँ
प्रसन्न है मेरे निराकार। ।
जब मेरा जीवन था खुशहाल , तब मैंने पाए दो लाल
तब जीवन में चारों ओर , बजने लगे मृदंग और ताल
एक है चंदा तो दूजा सूरज दोनों जीवन के, श्रृंगार। ।
जो कहते थे मेरा संसार छोटा है
मेरा संसार नहीं उनका मन खोटा है ,
जो निकलते हैं करीब से बिना मिले हमसे
खुश रहे आबाद रहे यही दुआ है रब से। ।
जीवन में है जितने रंग और बसंत ,
औरों से बेहतर समझता हूं ,
पग – पग पर कितने रंग बदलते
यह लोगों के स्वभाव में देखता हूं। ।
मैं ईश्वर का ईश्वर मेरे , यही बिधि का आज विधान ।
है जीवन की सुरंग सुधिया यही,ना और कोई अभिमान। ।
रामाधार वर्मा
प्रवक्ता हिंदी
Story by Sir Ramadhar Verma
Read this awesome story written by him.
डर पर दोस्ती भारी
सचिन चौथी कक्षा में पढ़ता है। वह अपने घर से निकलने में डरता है , क्योंकि अभी कुछ दिनों से वह जब भी बाजार कुछ सामान लेने जाता गली में घूम रहे डॉगी ( Dog ) उससे , उसका सामान छीन लेते और चट कर जाते।
सचिन काफी परेशान था , इसलिए वह घर में रहकर अपने पालतू डॉगी ( Dog ) गोलू के साथ खूब मस्ती किया करता था।
एक दिन की बात है , गोलू और सचिन गेंद से खेल रहे थे , तभी उनकी गेंद गली में चली गई और गली में बैठे डॉगी उस गेंद को लेकर भाग गए। तभी गोलू ने तुरंत उनका पीछा किया और उनकी खूब पिटाई की , और गेंद लेकर वापस आ गया।
गोलू के द्वारा डॉगी की पिटाई पर सचिन बहुत खुश हुआ , क्योंकि उन डॉगी ने सचिन को परेशान किया हुआ था। अब सचिन को विश्वास होने लगा कि वह गली में अपने डॉगी गोलू के साथ बाहर घूम सकता है और सामान भी ला सकता है।
गोलू और सचिन अब प्रतिदिन बाहर घूमते और उसको देखकर गली के डॉगी भी डरा करते थे।
दो शब्द लेखक के विषय में –
यह कविता श्री रामाधार वर्मा जी की मौलिक है। ‘ हिंदी विभाग ‘ के आग्रह पर इस कविता की रचना की गई है , जिसमें उनके जीवन के कुछ सुख – दुख भरे क्षणों की स्मृतियां उकेरी गई है।
‘ हिंदी विभाग ‘ इस लेख को प्रकाशित करने में गर्व महसूस कर रहा है। क्योंकि उनके जीवन के संघर्षों को देखकर एक सामान्य व्यक्ति प्रेरणा ले सकता है। किस प्रकार वह आंखों से न देखते हुए भी एक सामान्य व्यक्ति से अधिक सक्षम और सबल है। उनके मार्ग में आने वाली तमाम बाधाओं ने भी हार मानकर उनका रास्ता नहीं रोका।
ऐसे महान शख्सियत की रचना प्रकाशित करते हुए हिंदी विभाग आज गौरवान्वित है।
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यह कदम का पेड अगर माँ हिंदी कविता | yah kadam ka ped agar maa | hindi poem
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Special thanks to sir Ramadhar Verma.