दुर्गा माता को आदिशक्ति माना जाता है उनके विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के नौ दिनों में देवी के नौ स्वरूप की प्रत्येक दिन विधि विधान के साथ पूजा आराधना की जाती है। भक्त उनके स्वरूप की पूजा कर अपने लिए सुख समृद्धि स्वास्थ्य तथा विजय श्री का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। माता दुर्गा विभिन्न स्वरूपों में पृथ्वी से असत्य का नाश कर धर्म की स्थापना करने हेतु अवतरित होती हैं। प्रस्तुत लेख में आप मां दुर्गा से संबंधित लेख पढ़ेंगे।
Durga Mata ki Aarti
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी। तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी।।
जय अम्बे गौरी,…।
मांग सिंदूर बिराजत, टीको मृगमद को। उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रबदन नीको।।
जय अम्बे गौरी,…।
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै। रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै।।
जय अम्बे गौरी,…।
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी। सुर-नर मुनिजन सेवत, तिनके दुःखहारी।।
जय अम्बे गौरी,…।
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती। कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत समज्योति।।
जय अम्बे गौरी,…।
शुम्भ निशुम्भ बिडारे, महिषासुर घाती। धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती।।
जय अम्बे गौरी,…।
चण्ड-मुण्ड संहारे, शौणित बीज हरे। मधु कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे।।
जय अम्बे गौरी,…।
ब्रह्माणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी। आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी।।
जय अम्बे गौरी,…।
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं, नृत्य करत भैरू। बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू।।
जय अम्बे गौरी,…।
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता। भक्तन की दुःख हरता, सुख सम्पत्ति करता।।
जय अम्बे गौरी,…।
भुजा चार अति शोभित, खड्ग खप्परधारी। मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी।।
जय अम्बे गौरी,…।
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती। श्री मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति।।
जय अम्बे गौरी,…।
अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै। कहत शिवानंद स्वामी, सुख-सम्पत्ति पावै।।
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
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दुर्गा माता की आरती क्यों की जाती है?
आरती के बिना पूजा अपूर्ण मानी जाती है पौराणिक समय में हवन तथा आरती का विशेष विधान हुआ करता था। इससे अलौकिक शक्तियां वातावरण में प्रवाहित होती थी। हवन तथा आरती के माध्यम से नकारात्मक शक्ति तथा विषाणुओं का नाश होता था। शुद्धि आदि के लिए हवन तथा आरती का विधान स्कंद पुराण में बताया गया है। सकारात्मक वातावरण के निर्माण के लिए मां दुर्गा की आरती को विधि-विधान के साथ किया जाना चाहिए। शंख, घंटी, मृदंग आदि के साथ कपूर तथा घी के दीपक की बाती जलाकर आरती की जानी चाहिए जिससे मां दुर्गा प्रसन्न होती है और अपने भक्तों के पूजा को सहर्ष स्वीकार करती हैं।
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समापन
मां दुर्गा की आराधना करने से भक्तों को मानसिक शारीरिक तथा आध्यात्मिक रूप से लाभ प्राप्त होता है वह भक्त भय मुक्त हो जाता है जो आदिशक्ति की पूजा करता है उसके घर सुख समृद्धि वैभव की सदैव वर्षा होती है उसके इर्द-गिर्द अनिष्ट कारक देवता, भूत पिशाच आदि तक नहीं भटकते वह भक्त माता की शक्तियों से भयमुक्त होकर अपने मनचाहे विजय को प्राप्त करता है आशा है उपरोक्त लेख से आपको भक्ति लाभ हुआ हो।