अन्योक्ति अलंकार की परिभाषा, पहचान और उदाहरण

अप्रस्तुत प्रशंसा को अन्योक्ति अलंकार भी कहा जाता है। इस लेख में आप अन्योक्ति अलंकार की परिभाषा, पहचान, और उदाहरण  आदि का विस्तार पूर्वक अध्ययन करेंगे।

यह लेख विद्यार्थियों को ध्यान में रखकर सरल बनाया गया है।

उन विद्यार्थियों को भी विशेष रुप से ध्यान रखा गया है जिन्हें अलंकार भेद करने में कठिनाई होती है। इस लेख का अध्ययन विद्यालय , विश्वविद्यालय तथा प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए किया जा सकता है।

जैसा कि विदित है अलंकार काव्य की शोभा बढ़ाते हैं। वाक्य में प्रयोग करने से उस वाक्य की शोभा अलंकार के माध्यम से बढ़ जाती है।

अन्योक्ति अलंकार की परिभाषा

जहां उपमान के माध्यम से उपमेय का वर्णन हो। उपमान अप्रस्तुत एवं उपमेय प्रस्तुत हो , वहां अन्योक्ति अलंकार होता है। इस अलंकार को अप्रस्तुत प्रशंसा भी कहते हैं।

इस अलंकार में किसी अप्रत्यक्ष की ओर संकेत किया जाता है।

अन्योक्ति अलंकार के उदहारण

१.जिन दिन देखे वे कुसुम गई सु बीती बहार। अब अली रही गुलाब में अपत कंटीली डार। ( यहां नायिका अपनी सहेली के साथ अपनी प्रेम की अभिव्यक्ति भंवरा तथा गुलाब के फूल के माध्यम से कर रही है )

२.माली आवत देखकर कलियाँ करिहैं पुकार , फूली-फूली चुनि लियो काल्ह हमारी बार। (कबीर दास जीने जीवन मृत्यु के शाश्वत को माली और कलियों के माध्यम से व्यक्त किया है )

३.नहीं पराग नहीं मधुर मधु , नहिं विकास इहि काल। अली कली ही सौं बिंध्यों , आगे कौन हवाल। (इस पंक्ति में राजा जयसिंह और उसकी रानी का वर्णन भंवरा पराग और मधु के माध्यम से हुई है)

४.खोता कुछ भी नहीं यहां पर केवल जिल्द बदली पोथी। ( इस संसार में जीवन के विषय को जिल्द बदलती पोथी कहा गया है)

५.करि फुलेल को आचमन , मीठो कहत सराहि , ए गंधी मतिमंद तू अतर दिखावत काहि।

६.मरतु प्यास पिंजरा पइयौ ,सुआ समय के फेर। आदर दै – दै बोलियतु बायसु बलि की बेर।

७.स्वारथ , सुकृत न श्रम वृथा देखि विहंग विचारि। बाज पराए पानि परि , तू पच्छीनु न मारि। (प्रस्तुत पद में बाज पक्षी के माध्यम से अन्य हिंदू राजाओं को जागृत करने का प्रयत्न किया गया है राजा जयसिंह और औरंगजेब पर संकेत है )

८.जिन पै तै लै आए ऊधो , तिनहीं के पेट समै है।

९.अति अगाधु अति औथरौ नदी कूप सरु बाइ।

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निष्कर्ष –

उपरोक्त अध्ययन से स्पष्ट होता है कि जिस काव्य में अप्रस्तुत प्रशंसा हो वहां अन्योक्ति अलंकार होता है। जैसे कली और भंवरे का प्रयोग करके अपने प्रेम और प्रेमी का वर्णन किया गया है। बाज जो पक्षी में बलशाली है , वह शिकारी के साथ मिलकर शिकार कर रहा है।

इस बात को कहते हुए जयचंद और औरंगजेब की ओर संकेत किया गया है।

अर्थात अप्रस्तुत रूप से किसी का वर्णन करना अन्योक्ति अलंकार के माध्यम से संभव है।

भारतीय इतिहास पर दृष्टिपात करें तो यहां विदेशियों का आधिपत्य रहा। ऐसी स्थिति में अभिव्यक्ति की आजादी सीमित थी। अपनी बात को कहने के लिए कवियों तथा लेखकों ने अन्योक्ति तथा मानवीकरण का सहारा लिया।

इन माध्यमों से वह अपनी बात अपने जनमानस तक पहुंचा पाने में सक्षम रहे।

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