यह लेख आपको हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित कुटज तथा अशोक के फूल निबंध पर संपूर्ण जानकारी देगा। अंत तक अवश्य पढ़े ताकि आपको हर एक चीज बारीकी से समझ में आ जाए और आपको किसी प्रकार की समस्या ना रह जाए। लेख शुरू करने से पहले हम आपसे अनुरोध करना चाहते हैं कि अगर आपको इस लेख में किसी भी प्रकार की कमी लगे या फिर कुछ समझ में ना आए तो आप नीचे कमेंट बॉक्स में अवश्य बताएं। किस विषय के ऊपर आपको लेख चाहिए यह भी आप हमें सूचित कर सकते हैं।
‘ कुटज ‘ ,’ अशोक के फूल ‘ हजारी प्रसाद द्विवेदी
कुटज द्विवेदी जी का व्यक्तिपरक निबंध है।
इस निबंद में पौधों के बहाने द्विवेदी जी ने कई कालों का सांस्कृतिक यात्रा की है।
‘कुटज’ का मूल संदेश है ‘अपराजित रहो ‘ |
‘कुटज’ जिस काल की रचना है।
उस काल में द्विवेदी जी को काशी विश्वविद्यालय की राजनीति का शिकार होना पड़ा था। उन्हें चंडीगढ जाना पड़ा था। वे इस पौधे के बहाने उन समझौता वादी और स्वार्थप्रेरित राजनीति करने वाले लोगों पर व्यंग्य करते है।
कुटज व्यक्तित्व की अबाध स्वतंत्रता का कायल है। उसमे मस्ती और आत्मविश्वास है। जो जीवन के सहज प्रवाह में उसे मिला है।
अशोक के फूल
अशोक वृक्ष और उसके फूलों के माध्यम से भारत के प्राचीन इतिहास , संस्कृति ,जीवन दृष्टि , धर्म , संसाधनों तथा विभिन्न जातिओं के विषय में जानकारी दी है।
उन्होंने बताया है कि आर्यों का आर्येतर जातियों से संघर्ष हुआ , जो जातियां गर्वीली थी और उन्होंने आर्यों का प्रभुत्व नहीं माना ,जैसे दैत्य ,असुर ,राक्षस ,दानव उनसे संघर्ष हुआ और जो शांतिप्रिय जातियां थी जैसे यक्ष – गंधर्व वह आर्यों से मिल गयी।
उन्होंने बताया है कि संस्कृत कवि कालिदास से पूर्व अशोक के वृक्ष एवं फूल तो थे पर महिमामंडित करने वाले कालिदास ही थे।
सुंदरियों के नूपुरों के मृदु आघात से फूलता था , वे अपने कानो में फूल के आभूषण बनाकर पहनती थी। उनसे अपने केशों का श्रृंगार करती थी।
भारतीय धर्म साधना में भी इसका महत्व था।
आर्येतर जातियों ने वरुण , कुबेर ,इंद्र , कामदेव की पूजा अर्चना में इस पुष्प का प्रयोग किया।
महाभारत काल में संतान के इच्छुक स्त्रियां वृक्षों के देवताओं के पास जाती थी इनमें अशोक का वृक्ष महत्वपूर्ण था।
व्रत रखने और अशोक की 8 पत्तियां खाने से स्त्रिया गर्भवती हो जाती थी।
यक्ष और गंधर्व भी इस पोस्ट का प्रयोग करते थे और उत्सवों पर इसके फूलों से सजावट भी करते थे।
लेखक बताता है कि इसे आरंभिक युग के बाद सामंतवादी व्यवस्था का अंत होने पर जब भूत-प्रेतों , पीरों , काली- दुर्गा की पूजा होने लगी तब अशोक का गौरव समाप्त हो गया।
उसे पुष्प हीन कोटि का माने जाने लगा।
मुसलमानों के शासन काल में यह पुष्प साहित्य से भी निष्काषित कर दिया गया।
लेखक ने अशोक के फूल की गरिमा तथा उसके पतन का इतिहास बताते हुए मानव जाति के उत्थान – पतन की कथा प्रस्तुत की है। तथा परिवर्तन को प्रकृति का सहज स्वाभाविक धर्म बताते हुए निराश ना होने का संदेश दिया है।
निबंध में मुख्यता पाठकों को यह संदेश दिया गया है –
१ – भारत का अतीत गौरवपूर्ण है इन्हें स्मरण करना इसका अनुकरण करना एक प्रकार का पितृ ऋण चुकाना है।
२ सांसारिक स्वार्थों , संकुचित विचारधारा को त्याग कर अहिंसा , मित्रता , उदारता जैसे उदास भावों को अपनाओ इसमें सबका कल्याण है।
परिवर्तन तथा विकास सृष्टि का शाश्वत नियम है अतः अतीत को याद कर दुखी मत हो अतीत को ध्यान में रखकर वर्तमान का निर्माण करो।
संघर्ष युद्ध विग्रह से मत डरो पूरी शक्ति के साथ संघर्ष करो संघर्ष ही नई शक्ति प्रदान करता है।
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Very informative……… I read this essay in the year 1977 ie during my school days. I had some faint memories which now I have been able to recall in a better way. I would like to read the text thoroughly.
I could read Hindi literature only up to graduation but then read English (British and American), Greece and Italian later. Still, I love Hindi literature above anything else.
I like all Hindi writers (essayists, poets, novelists, and playwriters) old and new as well.
Thanks a ton…………