छन्द क्या है? कविता की स्वाभाविक गति के नियमबद्ध रूप है। छंद कविता के लिए प्रभाव और संगीतात्मक उत्पन्न कहते हैं। छंदों का निर्धारण मात्राओं का वर्णन की गणना के आधार पर किया जाता है। इन्ही के आधार पर कविता में यति विराम और उसकी पाठ गति का निर्धारण भी होता है। छन्द से कविता के शिल्प वास्तव में चमत्कारिकता आती है, और पाठक या श्रोता में वह अभीरुचि पैदा करती है।
छन्द दो प्रकार के होते हैं
- 1 मात्रिक छन्द और
- 2 वर्णिक छन्द
दोनों ही प्रकार के छंदों की सैद्धांतिक समीक्षा पुस्तक के अंदर छंद विधान निरूपण के अंतर्गत की गई है यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि आधुनिक समय की हिंदी कविता अधिकांशतः छंदमुक्त कविता है। वर्तमान हिंदी कविता पर पाश्चात्य कविता का प्रभाव भी बहुत अधिक है। लेकिन आधुनिक कविता छंद मुक्त होकर भी काव्य के अन्य मौलिक अंगों रस, अलंकार, गुण, रीति, आदि के साथ अपनी पूर्ण अर्थता के साथ साहित्यिक मूल्यों को पूरा करती हुई आगे बढ़ रही है। यहां हमने गुणों और नीतियों की चर्चा भी की है.
संक्षिप्त काव्य में तीन कृतियां प्रचलित है
1 वैदर्भी रीति
2 गौड़ी रीति
3 पांचाली रीति
काव्य मीमांसाको ने कविता में उनकी उपादेयता अनेक प्रकार से बताई है। कविता या काव्य में गुण भी तीन प्रकार के होते हैं। इसके नित्य धर्म को गुण कहते हैं। इसके अनुरूप ही गुण का निर्धारण होता है।
1 माधुर्य गुण
जब कविता या काव्य को पढ़कर या सुनकर पाठक या श्रोता का हृदय आनंद से द्रवित हो जाए , वह माधुर्य गुण कहलाताहै। माधुर्य गुण युक्त काव्य में समास संयुक्ताक्षरो और दो वर्णों के अक्षरों से प्रायः दूरी रखी जाती है।
2 ओज गुण
जब पाठक या श्रोता के मन में काव्य या कविता को पढ़कर यह सुनकर जोश उत्साह उत्पन्न होने लगता है। वहां वह ओज गुण कहलाता है। इसमें समासिक शब्दों की बहुलता का प्रयोग होता है। तथा रेफ वह संयुक्त अक्षरों का भी अधिक प्रयोग होता है।
3 प्रसाद गुण
वह सहज सरल काव्य रचना जिसे पढ़कर यह सुनकर पाठक या श्रोता का मन प्रसन्नता से भर जाए चित्र में नया आह्लाद भाव उत्पन्न हो जाए वहां प्रसाद गुण होता है।
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बिंब की परिभाषा, भेद और उदाहरण
बिम्ब किसी पदार्थ का मानचित्र या मानसी चित्र होता है। पाश्चात्य काव्यशास्त्रीय में बिंब को कविता का अनिवार्य अंग माना है। बिंब शब्दों द्वारा चित्रित किए जाने वाला वह न्यूनाधिक संविदात्मक चित्र है जो अंश का रुप आत्मक होता है , और अपने संदर्भ में मानवीय संवेदनाओ से संबंध रखता है। किंतु वह कविता की भावना या उसके आगे को पाठक तक पहुंचाता है।
चित्रमयता वर्तमान कविता की अनिवार्यता है , क्योंकि चित्रात्मक स्थितियों का पाठक चाक्षुष अनुभव कर पाता है। कविता में बिंब के प्रयोग से पाठक या श्रोता कविता को इंद्रियबोध और मानसिक वह दोनों ही प्रकार किसे सुगमता से आत्मसात कर लेता है। छायावादी कविता और आधुनिक कविता ने बिम्बों को स्वीकार किया। इसलिए यह कविताएं छंद मुक्त होकर भी पाठक को सम्वेदनाओं से अधिक निकट ठहरती है।
शिक्षक और छात्र पाठ्यपुस्तकों में संकलित कविताओं के माध्यम से बिम्बों की महत्ता का स्वयं अनुभव करेंगे बिम्बों का वर्गीकरण बहुत जटिल है। लेकिन हमने अधिक जटिलताओं से बचते हुए उसके दो मौलिक वर्गों पर ही अपना विहंगपात सीमित कर लिया है।
(अ) शुद्ध इंद्रियबोध गम्य बिंब- 1 चाक्षुष बिंब 2 नाद बिंब 3 गन्ध बिम्ब 4 स्वाद बिंब,स्पर्श बिंब ।
पांचों ज्ञानेइंद्रियों के विषयों से संबंधित बिंब इंद्रिय बोध गम में बिंब कहलाते हैं ।
उदाहरण के लिए
नत नयन करके कुसुम जयमाल ले भाल में कौमार्य की वेदी दिए।
क्षितिज पर आकर खड़ी होती उषा नित्य किस सौभाग्यशाली के लिए।।
( आ ) मिश्रित इंद्रिय बोध के आधार पर यह संवेदात्मक बिम्ब -1 मानस बिंब , 2 स्रोत वैभिन्नयगत बिंब -( अ ) धार्मिक एवं पौराणिक बिंब ( ब) तंत्रों से गृहीत बिंब (स ) महाकाव्यों से गृहीत बिंब (द ) ऐतिहासिक स्रोतों से गृहीत बिंब।
युधिष्ठिर ! दुशासन – शैल सहरसा फूटता है?
कभी क्या वज्र निर्धन व्योम छूटता है ?
अमल गिरी फूटता , जब ताप होता है अवनि में,
कड़कती दामिनी विकराल धुमाकुल गगन में।।
यह संक्षिप्त परिचय था विशेष आपको पुस्तक में या फिर हमारे दूसरे लिंक पर मिल सकती है।
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काव्य में चिंतन का बड़ा महत्व है ।प्रतीक का संबंध भी मनुष्य की चिंतन प्रणाली से है । प्रतीक का शाब्दिक अर्थ अवयव या चिह्न होता है । कविता में प्रतीक हमारी भाव सत्ता को प्रकट अथवा गोपन करने का माध्यम है। प्रत्येक भाव व्यंजना की विशिष्ट प्रणाली है। इससे सूक्ष्म अर्थ व्यंजित होता है । डॉक्टर भगीरथ मिश्र कहते हैं कि ” सादृश्य के अभेदत्व का घनीभूत रूप ही प्रतीक है”। उनके मंतव्य में प्रतीक की सृष्टि अप्रस्तुत बिंब द्वारा ही संभव है ।
प्रतीक के कुछ मौलिक गुण धर्म है जैसे सांकेतिकता, संक्षिप्तता, रहस्यात्मकता,बौद्धिकता, भावप्रकाशयत्ता एवं प्रत्यक्षतः प्रतिज्ञा प्रगटीकरण से बचाव आदि आधुनिक कविता प्रतीक के वक्त सामान्य लक्षण को अपने अंदर समाहित कर पाठक को विषय को समझने अनुभव करने और अर्थ में संबोधन का व्यापक विकल्प प्रस्तुत करती है।
आज कविता कबीर, सूर, तुलसी, की भांति निश्चित अर्थों में बांधती नहीं है। बल्कि उसे उसकी भाव सत्ता के सोचने समझने की खुली छूट देती है ।और इसमें प्रतीकों का बहुत बड़ा योगदान परिलक्षित होता है।
पुनश्च हमारी चिंता अति विस्तार से बचने की है ।अतः हम केवल प्रतीकों का वर्गीकरण मात्र ही प्रस्तुत कर रहे हैं । हालांकि काव्यमनीषियों में प्रतीकों के अनेक वर्गीकरण किए हैं लेकिन हम चार वर्गीकरण के ही समस्त प्रतीकों को समाहित मान कर उन्हें मुद्रित कर रहे हैं।
प्रतिक विधान के भेद
1 रूपात्मक प्रतीक
2 गुणभाव-स्वभावात्मक प्रतीक
3 क्रियात्मक प्रतीक
4 मिश्र प्रतीक।
कुछ विद्वानों ने रूढ़ प्रतीक तथा सक्रिय प्रतीक के रूप में भी वर्गीकरण किया है। लेकिन यहां हमारा अभीष्ट केवल काव्य में प्रतीकों के महत्व पर प्रकाश डालना था उदाहरण से प्रतीकों का महत्व देखें।
1 दहक रही मिट्टी स्वदेश की , खोज रहा गंगा का पानी,
प्राचीरों पर गाज रही, जंजीरों सेकसी जमानी।।
2 हिटलर हारेगा गांधी जीतेंगे , लड़ाई अब और नहीं ठनेगी।
3 दुनिया के ‘नीरो’ सावधान दुनिया के पापी जा सजग।
4 झकझोरो झकझोरो महान सुप्त को,टेरो,टेरो चाणक्य चन्द्रगुप्त को।
विक्रम तेज, असी की उद्दाय प्रभा को, राणाप्रताप, गोविंद शिवा सरजा को ।।
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आशा है आपको छन्द बिम्ब एवं प्रतीक विषय पर लिखा गया यह लेख पसंद आया होगा और आपको बहुत कुछ जानने को मिला होगा, अगर कोई सवाल आपके मन में रह गया हो तो आप नीचे पूछ सकते हैं हम उसका जवाब देने का प्रयास करेंगे।
सर मेरा यह आपसे अनुरोध है कि आप छंद बिम्ब और प्रतीक पर और जानकारी अवश्य डालें।
हालांकि यह लेख मेरे लिए बहुत मददगार साबित हुआ है।
धन्यवाद
Pratik aur bimb ke bare me aur adhik detail me jankari like…. Please
Pratik aur bimb ke bare mai aur detail mai batye
chhand ko pura explain kare
please
Sir thodi saral Bhasha aur ho to samjhna aur samjhana adhik aasan hoga, dhanyawad
सर बिम्ब और प्रतीक के बारे में उदाहरण के साथ साथ उसकी व्यख्या करके बता दिजिएगा तो बहुत अच्छा होगा ।