आज के लेख में हम सीखेंगे स्वर और व्यंजन की परिभाषा, स्वरुप, वर्गीकरण और विशेषता। इन्हीं से अन्य महत्वपूर्ण विषय के बारे में भी जानेंगे। ध्यान पूर्वक इस लेख को अंत तक अवश्य करें ताकि इस विषय के पर आपको संपूर्ण जानकारी प्राप्त हो सके।
स्वर और व्यंजन की परिभाषा – Swar aur Vyanjan ki paribhasha
प्रश्न – स्वर और व्यंजन ध्वनियों का स्वरूप स्पष्ट करते हुए हिंदी की स्वर ध्वनियों का वर्गीकरण कीजिए .
उत्तर विंदुवार क्रम से निम्ननलिखित है –
स्वर
स्वर में ध्वनियों का वर्ण है जिसके उच्चारण से मुख विवर सदा कम या अधिक खुलता है , स्वर के उच्चारण के समय बाहर निकलती हुई श्वास वायु मुख विवर से कहीं भी रुके बिना बाहर निकल जाती है .
इसकी विशेषताएं क्या क्या है अब उस पर ध्यान दीजिए –
स्वर की विशेषता ( Swar ki Visheshta )
- स्वर तंत्रियों में अधिक कंपन होता है।
- उच्चारण में मुख विवर थोड़ा-बहुत अवश्य खुलता है।
- जिह्वा और ओष्ट परस्पर स्पर्श नहीं करते।
- बिना व्यंजनों के स्वर का उच्चारण कर सकते हैं।
- स्वराघात की क्षमता केवल स्वरूप को होती है
व्यंजन
व्यंजनों के उच्चारण में स्वर यंत्र से बाहर निकलती श्वास वायु मुख – नासिका के संधि स्थूल या मुख – विवर में कहीं न कहीं अवरुद्ध होकर मुख या नासिका से निकलती है।
इसकी विशेषताएं निम्नलिखित हैं –
व्यंजनों की विशेषता ( Vyanjan ki Visheshta )
- व्यंजन को ‘ स्पर्श ध्वनि ‘ भी कहते हैं।
- उच्चारण में कहीं ना कहीं मुख विवर अवरुद्ध होती है।
- व्यंजनों का उच्चारण देर तक नहीं किया जा सकता।
- व्यंजन स्वराघात नहीं वहन कर सकते।
स्वरों का वर्गीकरण
अब हम स्वरों के वर्गीकरण के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करेंगे।
१ मात्रा के आधार पर
मात्रा के आधार पर स्वरों को तीन वर्गों में बांटा जाता है – ह्रस्व , दीर्घ , प्लुत।
- ह्रस्व में एक मात्रा का समय लगता है – ‘ अ ‘ दीर्घ के उच्चारण में से अधिक मात्रा का समय लगता है।
- प्लुत में अधिक मात्रा का समय लगता है – ‘ अ ‘
२ मुख कुहर
इस आधार पर स्वरों को चार वर्गों में विभाजित किया गया है – विवृत , इष्यत विवृत , संवृत , इष्यत संवृत ,
- विवृत – उच्चारण में मुख अधिक खुलता है – ‘ आ ‘
- इष्यत विवृत – उच्चारण में कम खुलता है – ‘ ए ‘
- संवृत – उच्चारण में मुख्य संकीर्ण रहता है – ‘ ई ‘
- इष्यत संवृत – मुंह कम खुलता है – ‘ ए ‘
३ जिह्वा की स्थिति के आधार पर
जब स्वरों का उच्चारण किया जाता है तो जीवा अग्र , मध्य , पश्च की स्थिति में होती है।
- अग्र स्वर – इ ,ई , ए।
- मध्य स्वर – य
- पश्च स्वर – आ , अ , उ।
४ ओष्ठ के आधार पर –
ओष्ठ के आधार पर भी स्वरों का वर्गीकरण किया जाता है। ओष्ठ को दो वर्ग में विभजि किया गया है अवृत्तमुखी , वृतमुखी
- अवृत्तमुखी – जिन स्वरों के उच्चारण में ओठ वृतमुखी या गोलाकार नहीं होता है – अ , आ , इ ,ई , ए ,ऐ।
- वृतमुखी – जिन स्वरों के उच्चारण में ओठ वृतमुखी या गोलाकार होते है -उ ,ऊ ,ओ ,औ।
५ अनुनासिकता के आधार पर
स्वरों के उच्चारण में जब मुख विवर से पूरी तरह से स्वांस निकल जाए तब अनुनासिकता कहलाते हैं।अनुनासिकता दो प्रकार के है –
- निरानुसाकता – -जिन स्वरों के उच्चारण में हवा केवल मुँह से निकलती है (अ , आ , इ )
- अनुनासिकता — जिन स्वरों के उच्चारण में हवा नाक से भी निकलता है (अं , आं , इं )
- उच्चारण में मुख तथा नासिका से वायु बाहर निकलती है तभी अनुनासिकता कहलाती है।
व्यंजन के आधार पर वर्गीकरण
हिंदी व्याकरण में व्यंजनों की संख्या ३३ मानी गयी है। व्यंजनों का अध्ययन ३ बहगों में किया जाता है स्पर्श व्यंजन , अन्तः स्थ व्यंजन , उष्म/संघर्षी।
स्पर्श व्यंजन –
जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय हवा फेफड़ों से निकलते हुए मुंह के किसी स्थान विशेष कंठ , तालु , मूर्धा , दात या होंठ का स्पर्श करते हुए निकले।
- घोषत्व के आधार पर – घोष का अर्थ है स्वर तंत्रियों में ध्वनि का कंपन
- अघोष – जिन ध्वनियों के उच्चारण में स्वरतंत्रियों में कंपन हो।
- सघोष / घोष – जिन ध्वनियों के उच्चारण में स्वरतंत्रियों में कंपन हो।
- प्राणतत्व के आधार पर – यहां प्राण का अर्थ है हवा।
- अल्पप्राण – जिन व्यंजनों के उच्चारण में मुख से कम हवा निकले।क , च , ट ,ग ,ज द आदि
- महाप्राण – जिन व्यंजनों के उच्चारण में मुख से अधिक हवा निकले। ख , छ ,ठ ,थ ,फ ,घ ,झ आदि
अन्तः स्थ व्यंजन
जिन वर्णों का उच्चारण पारंपरिक वर्णमाला के बीच अर्थात स्वरों और व्यंजनों के बीच स्थित हो।
उष्म/संघर्षी
जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय वायु मुख से किसी स्थान विशेष पर घर्षण कर निकले वहां ऊष्मा , गर्मी पैदा करें , वह संघर्षी व्यंजन कहलाता है। श , सा।
अयोग्यवाहक – अनुस्वार , विसर्ग परंपरा अनुसार अनुस्वार और विसर्ग स्वरों के साथ रखा जाता है किंतु यह स्वर ध्वनियां नहीं है क्योंकि इनका उच्चारण व्यंजनों के उच्चारण की तरह स्वर की सहायता से होता है। यह व्यंजन भी नहीं है क्योंकि इनकी गणना स्वरों के साथ होती है , और उन्हीं की तरह लिखने में इनके लिए मात्राओं का प्रयोग किया जाता है।
उपवाक्य
- जब दो या अधिक सरल वाक्यों को मिलाकर एक वाक्य बनाया जाता है , तो उस एक वाक्य में जो वाक्य मिले होते हैं , उन्हें उपवाक्य कहा जाता है।
- यह मुख्यता दो प्रकार के होते हैं
- प्रधान उपवाक्य – जो वाक्य किसी अन्य वाक्य पर आश्रित नहीं होते उन्हें प्रधान उपवाक्य कहा जाता है।
- आश्रित उपवाक्य – जो वाक्य गौण तथा दूसरे के आश्रित हैं उन्हें आश्रित उपवाक्य कहा जाता है।
उदाहरण के लिए –
” वह लड़की चली गई जो शॉर्ट स्कर्ट पहनी हुई थी। ”
उपरोक्त वाक्य में ‘ वह लड़की चली गई ‘ प्रधान वाक्य है।
‘ जो शॉर्ट स्कर्ट पहनी थी ‘ आश्रित उपवाक्य है।
अयोगवाह
अं , अः को अयोगवाह क्यों कहते हैं ?
क्योकि इनमे आधारभूत अंतर इनमे अनुस्वर और विसर्ग का मिश्रण है। अनुस्वर और विसर्ग को स्वर के साथ रखा जाता है किन्तु ये स्वर ध्वनियाँ नहीं है क्योंकि इनका उच्चारण व्यंजनों के साथ स्वर की सहायता से किया जाता है। और ये व्यंजन भी नहीं है क्योंकि इनकी गणना परंपरागत रूप से स्वर में किया जाता है।
आसान शब्दों में – अनुस्वर और विसर्ग लिखने की दृष्टि से स्वर एवं उच्चारण की दृष्टि से व्यंजन होते है इसलिए इन्हे ‘ अयोग ‘ कहा जाता है। किन्तु यह अर्थ का वहन करते हैं इसलिए इन्हे ‘ अयोगवाह ‘ कहा जाता है।
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Bhut jyada discreption hai but mool tathyon ko chor diya gya hai.
इस समस्या पर ध्यान दिया जाएगा | अगर और कोई बात हो तो वो भी बताना न भूलें | धन्यवाद
M.a k aadar per questions tiyar kre
Ji Dhanywad awshay tyar kiya jayega
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