स्वनिम शब्द अंग्रेजी भाषा के ‘ फोनिक ‘ का नवीनतम हिंदी अनुवाद है। इसके लिए अब तक ‘ ध्वनि – ग्राम ‘ का प्रयोग होता रहा है , किंतु भारत सरकार के पारिभाषिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग में ‘ फोनिक ‘ का हिंदी अनुवाद स्वनिम कर दिया गया है।
‘ स्वन ‘ विज्ञान या ‘ ध्वनि ग्राम ‘ वह विज्ञान है , जिसमें किसी भाषा विशेष के नियमों का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। ‘ स्वनिम ‘ शब्द संस्कृत भाषा की ‘ स्वन ‘ धातु से बना है , जिसका अर्थ होता है ‘ ध्वनि ‘ या ‘ आवाज करना ‘। यह भाषा की लघुतम अखंड इकाई है , जैसे –
काम , कशक , रोकना आदि शब्दों में ‘ क ‘ ध्वनि ( स्वन ) लघुतम एवं अखंड इकाई है।
इस की वैज्ञानिक परिभाषा देना कठिन है , कुछ विद्वानों ने इस पर गहराई से विचार किया तथा इसे परिभाषित करने का प्रयत्न भी किया –
स्वनिम की परिभाषा, संक्षेप उदहारण अथवा नोट्स
डॉ तिलक सिंह के अनुसार –
” भाषा विशेष के उच्चारित पक्ष की विषम स्वनिक अर्थ भेदक तत्व की इकाई स्वनिम है। ”
देवेंद्र नाथ शर्मा के अनुसार –
” स्वनिम उच्चारित भाषा का वह न्यूनतम अंश है , जो ध्वनियों का अंतर प्रदर्शित करते हैं। ”
डॉ भोलानाथ के अनुसार –
” संक्षेप में स्वनिम किसी भाषा की वह अर्थभेदक ध्वन्यात्मक इकाई है , जो भौतिक यर्थात ना होकर मानसिक यथार्थ होती है , तथा जिसमें एकाधिक ऐसे उपसर्ग होते हैं जो ध्वन्यात्मक दृष्टि से मिलते-जुलते हैं अर्थभेदक में असमर्थ तथा आपस में ( पूर्ण ) मुक्तवितरक होते हैं।”
पाश्चात्य विद्वानों ने स्वयं को इस प्रकार परिभाषित किया है –
डेनियर
डेनियर जोन्स के अनुसार ” स्वनिम मिलती-जुलती ध्वनियों का परिवार है। ”
ब्रागार तथा ट्रैगर
” ध्वनि ग्राम सामान्य ध्वनियों का समूह है जो किसी भाषा विशेष को उसी प्रकार के अन्य समूह से व्यक्तिरेकी भिन्न होता है। ”
ग्लीसन के अनुसार –
” स्वनिम किसी भाषा अथवा बोली में समान ध्वनियों का समूह है। ”
उपर्युक्त उदाहरण का विश्लेषण करने के पश्चात स्वयं की कुछ विशेषताएं अग्रलिखित है –
- स्वनिम भाषा की अर्थभेदक इकाई है।
- यह समान ध्वनियों का समूह है।
- इसका संबंध भाषा के उच्चारित पक्ष से है।
- यह भाषा विशेष की लघुतम इकाई है।
- इस में एक से अधिक उपसर्ग होते हैं।
- उप – स्वप्नों में एकमत होता है , तथा व्यर्थभेदक नहीं होता तथा परिपूरक तथा स्वतंत्र वितरण में आते हैं।
स्वनिम के संक्षेप उदहारण अथवा नोट्स
- भाषा की न्यूनतम अर्थभेदक इकाई है स्वनिम कहलाती है।
- इसके वह लघुतम इकाई जा सामान ध्वनियों का प्रतिनिधित्व करती है।
- इसके ध्वनि की लघुतं=म इकाई है और उसके कारण अर्थ में भेद उत्त्पन होता है।
- ‘ राम – राज ‘ ( र + आ + म + अ , ऱ + आ + ज + अ ) ‘ म ‘ और ‘ ज ‘ में भेद उत्त्पन्न हो रहा है अतः स्वनिम है ये नहीं रखते मगर अर्थ में भेद उत्त्पन कर देते है।
- स्वनिम विज्ञान के किसी भाषा या बोली के स्वनिमो का विश्लेषण होता है।
- इसमें और संस्वत में भेद है जैसे हिंदी में पांच – लौटा , उल्टा , लौग ,लगाव ,लाला , इन शब्द में ‘ ल ‘ का उच्चारण करने में जीभ की स्थिति बदलती है।
लौटा – जीभ तालु के भीतरी भाग को स्पर्श करती है
उल्टा – जीभ उलट जाती है।
लोग – जीभ दांत की और आगे बढ़ता है।
लेकिन – जीभ को कुछ आगे होता है।
लाला – जीभ को ‘ ले ‘ की अपेक्षा ज्यादा आगे बढ़ाना है।
- इस प्रकार इन पांच शब्दों में ‘ ल ‘ के पांच प्रतिनिधि है।
- इनमे ‘ ल ‘ को स्वनिम तथा ( ‘ ल ‘ , ‘ ल ‘१ , ‘ ल ‘ २ , …………. ‘ ल ‘ ५) संरचना कहा जा सकता है।
- हिंदी में दस केंद्रीय स्वनिम है ‘ अ ‘ से लेकर ‘ औ ‘ को तक , ‘ अ ॉ ‘ को एकेन्द्रिय स्वनिम कहते है।
- हिंदी में 35 केंद्रीय व्यंजन स्वनिम है।
बलाघात के उदहारण संक्षेप में। बलाघात क्या है।
बलाघात बोलते समय वाक्य , शब्द , अक्षर के एक अंश पर अधिक बल देने से अर्थ परिवर्तन हो जाता है। इसे ही बलाघात कहा जाता है।
‘ राम ‘ में ‘ आ ‘ बलाघात है। क्योंकि’ आ ‘ शब्द पर अधिक जोर दिया गया है , इसलिए यह ध्वनि बलाघात है। हिंदी भाषा में शब्द बलाघात ही स्वनिमिक है –
- उसे ‘ एक ‘ खिड़की वाला कमरा चाहिए।
- उसे एक ‘ खिड़की वाला ‘ कमरा चाहिए।
पद बलाघात होने पर अर्थ होगा – ऐसा कमरा जिसमें केवल एक खिड़की हो।
दूसरे वाक्य में उसका अर्थ है ऐसा कमरा जिसमें प्रकाश और वायु आते हो।
- इसी प्रकार ‘ पकड़ो ‘ मत जाने दो।
- ‘ पकड़ो मत ‘ जाने दो।
पहले वाक्य में किसी व्यक्ति को पकड़े रहने तथा दूसरे वाक्य में नहीं पकड़ने से है।
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Plzz संस्वन की परिभाषा और उसके भेद का संक्षिप्त में बताएं
जी बिल्कुल लिखा जाएगा
Good knowledge on swanim. Keep writing such an informational article in the future too. They are helpful for me.