स्मृति के आधार पर किसी विषय या व्यक्ति के संबंध में लिखित किसी लेख या ग्रंथ को संस्मरण कहते हैं।
संस्मरण लेखक अतीत की अनेक स्मृतियों में से कुछ रमणीय अनुभूतियों को अपनी कल्पना भावना या व्यक्तित्व की विशेषताओं से अनुरंजित कर (युक्त कर) प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त करता है , उसी का वर्णन करता है , उसके वर्णन में उसकी अपनी अनुभूतियों और सम्वेदनाओं का समावेश रहता है।
संस्मरण की पूरी जानकारी
संस्मरण के लेखक के लिए यह नितांत आवश्यक है कि लेखक ने उस व्यक्ति या वस्तु का साक्षात्कार किया हो जिसका वह संस्मरण लिख रहा है। वह अपने समय के इतिहास को लिखना चाह रहा है परंतु इतिहासकार की भांति वह विवरण प्रस्तुत नहीं करता।
इतिहासकार के वस्तुपरक दृष्टिकोण से वह बिल्कुल अलग है। संस्मरण में जीवन के कुछ महत्वपूर्ण क्षणों या घटनाओं की स्मृति पर आधारित रोचक अभिव्यक्ति होती है संस्मरण यथार्थ जीवन से संबंधित संक्षिप्त रोचक चित्रात्मक भावुकतापूर्ण लेखक के व्यक्तित्व के आभा से पूर्ण प्रभाव पूर्ण शैली में लिखित घटना संस्मरण कहलाती है।
संस्मरण में मुख्यतः बीती हुई बातें याद की जाती है तथा उसमे भाषात्मक्ता अधिक रहती है इसमें लेखक ‘ रेखाचित्रकार ‘ की भांति तत्व निर्लिप्त नहीं रहता। यदि संस्मरण लेखक अपने विषय में लिखता है तो वह रचनात्मक आत्मकथा के अधिक निकट होती है , यदि वह अन्य व्यक्तियों के संबंध में लिखता है तो वह जीवनी के निकट होती है।
इसलिए संस्मरण के लेखक को अपने लेख के प्रति सचेत रहना आवश्यक है।
हिंदी साहित्य के क्षेत्र में संस्मरण आधुनिक काल की विधा है।
हिंदी संस्मरण को विकास की दिशा में बढ़ाने वाले प्रमुख साहित्यकारों में उल्लेखनीय नाम है –
- रामवृक्ष बेनीपुरी – ” माटी की मूरतें ” , ” मील के पत्थर “।
- देवेंद्र सत्यार्थी जी – ” क्या गोरी क्या सांवरी ” तथा ” रेखाएं बोल उठी। “
- कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर – ” भूले हुए चेहरे ” , तथा ” माटी हो गई सोना। “
संस्मरण के अंग अथवा तत्व
संस्मरण के तत्त्व की संपूर्ण जानकारी
अतीत की स्मृति
संस्मरण अतीत पर आधारित होता है इसमें लेखक अपने यात्रा , जीवन की घटना , रोचक पल , आदि जितने भी दुनिया में रोचक यादें होती है , उसको सहेज कर उन घटनाओं को लिख रूप में व्यक्त करता है। जिसे पढ़कर दर्शक को ऐसा महसूस होता कि वह उस अतीत की घटना से रूबरू हो रहा है उसको आत्मसात कर रहा है। किंतु संस्मरण को रेखाचित्र , जीवनी , रिपोर्ताज , यात्रा आदि से अलग महत्व दिया गया है।
आत्मीय एवं श्रद्धापूर्ण अन्तरंग सम्बन्ध
जब तक लेखक आत्मीयता से किसी स्मृति अतीत को याद कर अंकित नहीं करेगा तब तक संस्मरण प्रभावशाली नहीं हो सकता। इसके साथ ही आवश्यक है कि किसी श्रद्धेय पुरुष या चरित्र के प्रति श्रद्धा भाव, जो मानव-मात्र को प्रेरणा दे सके।किसी अद्भुत क्षण को याद कर भी उस पल को भी लिख सकता है।
प्रामाणिकता
संस्मरण विधा में कल्पना का कोई स्थान नहीं होता क्योकि कल्पना का समावेश होते ही संस्मरण की विधा नष्ट हो जाता है। इस विधा में कल्पना के लिए कोई खास जगह नहीं होती।
उन्हीं घटनाओं का वर्णन होता है जो जीवन में घट चुकी हैं और प्रामाणिक हैं।
वैयक्तिकता
संस्मरण की महत्वपूर्ण विशेषता वैयक्तिकता मानी जाती है। इसका सहारा लिए बिना संस्मरण नहीं लिखा जा सकता। संस्मरण में लेखक के अपने जीवन में किसी न भुला सकने वाली घटना का वर्णन होता है। वह घटना को हु बहु पाठक के समक्ष रखता है जिसे पढ़कर पाठक को उस घटना को करने का मौका मिलता है।
क्या आप जानते हैं ?
संस्मरण बहुत ही लचकदार विधा है। इसके तत्त्व और गुण अन्य अनेक विधाओं में मिल जाते हैं। बहुत समय तक रेखाचित्र, जीवनी, रिपोर्ताज आदि विधाओं और संस्मरण को एक समझा जाता रहा। संस्मरण और रेखाचित्र एक-दूसरे के साथ कहीं-कहीं इस तरह जुड़े कि एक-दूसरे के पर्याय माँ लिए गए। महादेवी वर्मा की ‘स्मृति की रेखाएं’ इसका ज्वलंत उदहारण है। ‘स्मृति’ शब्द जहाँ उस कृति को संस्मरण की ओर ले जा रहा है वहीं ‘रेखाएं’ रेखाचित्र विधा की ओर।
जीवन के खंड विशेष का चित्रण
जीवनी में सम्पूर्ण जीवन का चित्रण न करके कुछ घटनाओं का विवेचन होता है। लेखक अपने जीवन की किसी घटना विशेष या संपर्क में आए हुए व्यक्ति विशेष के चरित्र के महत्वपूर्ण पक्ष की झांकी पेश कर जीवन के खंडरूप या किसी एक पक्ष का ही चित्रण करता है।
चित्रात्मकता
संस्मरण की एक विशेषता होती है की वह जितनी चित्रात्मक होगी संस्मरण उतना ही सफल होगा ,क्योकि चित्र मानव मष्तिष्क पर अधिक प्रभाव डालती है वह मष्तिष्क में अमित छाप छोड़ती है। लेखक चुन-चुनकर शब्दों का प्रयोग कर आलंबन का चित्र प्रस्तुत करता है। वह इस प्रकार विवेचन करता है कि चित्र सहज ही बनने लगते हैं।
कथात्मकता
संस्मरण कथात्मक साहित्य विधा है। यह कथा काल्पनिक न होकर सत्य पर आधारित होती है। कथा का ताना-बाना जीवन की घटनाओं से बुना जाता है और पाठक के साथ सहज तादात्म्य हो जाता है।
तटस्थता
तटस्थता भी संस्मरण की अनिवार्य शर्त है। लेखक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह स्वयं को महिमामंडित करने की प्रवृति से दूर रहकर जीवन में घटित सत्य को सामने लाए, भले वह सत्य स्वयं के लिए कितना ही कटु क्यों न हों?
हिंदी के संस्मरणकारों में पद्म सिंह शर्मा को इस विधा का पहला लेखक माना जाता है।
आचार्य शिवपूजन सहाय, रामवृक्ष बेनीपुरी, कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’, इस क्षेत्र के बड़े नाम हैं। महादेवी वर्मा हिंदी संस्मरण-साहित्य में मील का पत्थर हैं। इनके प्रारंभिक संस्मरण ‘कमला’ पत्रिका में प्रकाशित हुए। ‘पथ के साथी’, ‘मेरा परिवार’, इनके संस्मरण संकलन हैं। हालाँकि आत्मीयता की गहनता और चित्रात्मक शैली ने भ्रम पैदा किए हैं और इन्हें संस्मरणात्मक रेखाचित्र कहा जाना चाहिए। किन्तु निश्चित तौर पर महादेवी अपने आप में संस्मरण का स्वर्णिम इतिहास हैं।
हिन्दी की साहित्यिक पत्रिकाओं ने बुजुर्ग लेखकों से संस्मरण लिखवाने में बहुत तत्परता दिखाई है।
वस्तुतः पत्रकार, समालोचक, साहित्यकारों के सामानांतर इस विधा को खुशबू देने वालों में अनेक राजनीतिज्ञ, क्रांतिकारी, समाज-सुधारक भी हैं जिनके मार्मिक संस्मरणों का अपना इतिहास है। इनमें भारत के प्रथम राष्ट्रपति स्वर्गीय राजेंद्र प्रसाद, प्रथम प्रधानमंत्री नेहरु, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जैसी हस्तियाँ शामिल हैं।
इनका संस्मरण साहित्य अपने आप में प्रामाणिक इतिहास और समय का साक्ष्य है।
इस प्रकार संस्मरण में व्यक्ति विशेष से सम्बंधित विवरण के आधार पर उसकी चारित्रिक रेखाओं को जोड़ कर उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व के प्रभाव को ग्रहण करने का प्रयास होता है। इसका क्षेत्र बड़ा व्यापक है।
यह किसी व्यक्ति का भी हो सकता है और वस्तु का भी। उसमें मात्र वर्णन या विवरण नहीं होता अपितु वर्ण्य विषय के साथ लेख के आत्मीय या निजी सम्बन्ध से उद्भूत प्रतिक्रियाओं का आकलन होता है।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि संस्मरण बहुत ही लचकदार विधा है।
इसके तत्त्व और गुण अन्य अनेक विधाओं में मिल जाते हैं।
बहुत समय तक रेखाचित्र, जीवनी, रिपोर्ताज आदि विधाओं और संस्मरण को एक समझा जाता रहा। इस तरह कई विधाओं के साथ संस्मरण का घालमेल होता प्रतीत होता है। किन्तु हिंदी साहित्य के विशाल फलक पर संस्मरण विधा ने अपनी छोटी-सी विकास यात्रा में पर्याप्त प्रगति की है। साहित्य-रसिकों का रुझान धीरे-धीरे इस विधा की ओर बढ़ रहा है। अतः संस्मरण का भविष्य आशा और आत्मीयता के मध्य गोते खाता एक निश्चित दिशा की ओर बढ़ रहा है।
निष्कर्ष कहा जा सकता है कि अत्याधुनिक होने पर भी संस्मरण विधा आज हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान की अधिकारिणी बन गई है यह रेखाचित्र से भी लोकप्रियता प्राप्त कर चुकी है भविष्य में इसके विकास की अच्छी संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता।
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वर्ष संस्मरण का शीर्षक संस्मरणकार
- 1905 अनुमोदन का अन्त, अतीत स्मृति ( महावीरप्रसाद द्विवेदी )
- 1907 इंग्लैंड के देहात में महाराज बनारस का कुआं ( काशीप्रसाद जायसवाल )
- 1907 सभा की सभ्यता ( महावीरप्रसाद द्विवेदी )
- 1908 लन्दन का फाग या कुहरा ( प्यारेलाल मिश्र )
- 1909 मेरी नई दुनिया सम्बन्धिनी रामकहानी ( भोलदत्त पांडेय )
- 1911 अमेरिका में आनेवाले विद्यार्थियों की सूचना ( जगन्नाथ खन्ना )
- 1913 मेरी छुट्टियों का प्रथम सप्ताह जगदीश बिहारी सेठ
- 1913 वाशिंगटन महाविद्यालय का संस्थापन दिनोत्सव पांडुरंग खानखोजे
- 1918 इधर-उधर की बातें रामकुमार खेमका
- 1921 कुछ संस्मरण (सुधा 1921 में प्रकाशित) वृन्दालाल वर्मा
- 1921 मेरे प्राथमिक जीवन की स्मृतियां (सुधा 1921 में प्रकाशित) इलाचन्द्र जोशी
- 1932 मदन मोहन के सम्बन्ध की कुछ पुरानी स्मृतियां शिवराम पांडेय
- 1937 क्रान्तियुग के संस्मरण मन्मथनाथ गुप्त
1937 बोलती प्रतिमा श्रीराम शर्मा
- 1937 साहित्यिकों के संस्मरण (हंस के प्रेमचन्द स्मृति अंक 1937 सं. पराड़कर) ज्योतिलाल भार्गव
- 1938 झलक शिवनारायण टंडन
- 1940 टूटा तारा (स्मरण : मौलवी साहब, देवी बाबा) राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह
- 1946 पंच चिह्न शांतिप्रसाद द्विवेदी
- 1946 वे दिन वे लोग शिवपूजन सहाय
- 1947 पुरानी स्मृतियां और नए स्केच प्रकाशचन्द्र गुप्त
- 1947 मिट्टी के पुतले प्रकाशचन्द्र गुप्त
- 1947 स्मृति की रेखाएं महादेवी वर्मा
- 1948 सन् बयालीस के संस्मरण श्रीराम शर्मा
- 1949 एलबम सत्यजीवन वर्मा ‘भारतीय’
- 1949 ज़्यादा अपनी, कम पराई उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’
- 1952 संस्मरण बनारसीदास चतुर्वेदी
- 1954 गांधी कुछ स्मृतियां जैनेन्द्र
- 1954 ये और वे जैनेन्द्र
- 1955 मुझे याद है रामवृक्ष बेनीपुरी
- 1955 मैं भूल नहीं सकता कैलाशनाथ काटजू
- 1956 मील के पत्थर रामवृक्ष बेनीपुरी
- 1956 जिनका मैं कृतज्ञ, मेरे असहयोग के साथी राहुल सांकृत्यायन
- 1956 मंटो मेरा दुश्मन या मेरा दोस्त मेरा दुश्मन उपेन्द्रनाथ अश्क
- 1957 जंजीरें और दीवारें रामवृक्ष बेनीपुरी
- 1957 वे जीते कैसे हैं श्रीराम शर्मा
- 1959 कुछ मैं कुछ वे रामवृक्ष बेनीपुरी
- 1959 ज़्यादा अपनी कम परायी अश्क
- 1959 मैं इनका ऋणी हूं इन्द्र विद्यावाचस्पति
- 1959 स्मृति-कण सेठ गोविन्ददास
- 1960 प्रसाद और उनके समकालीन विनोद शंकर व्यास
- 1962 अतीत की परछाइयां अमृता प्रीतम
- 1962 कुछ स्मृतियां और स्फुट विचार डॉ॰ सम्पूर्णानन्द
- 1962 जाने-अनजाने विष्णु प्रभाकर
- 1962 नए-पुराने झरोखे हरिवंशराय ‘बच्चन’
- 1962 समय के पांव माखनलाल चतुर्वेदी
- 1963 जैसा हमने देखा क्षेमचन्द्र ‘सुमन’
- 1963 दस तस्वीरें जगदीशचन्द्र माथुर
1963 साठ वर्ष : एक रेखांकन सुमित्रानन्दन पन्त
- 1965 कुछ शब्द : कुछ रेखाएं विष्णु प्रभाकर
- 1965 जवाहर भाई : उनकी आत्मीयता और सहृदयता रायकृष्ण दास
- 1965 मेरे हृदय देव हरिभाऊ उपाध्याय
- 1965 लोकदेव नेहरू रामधारीसिंह ‘दिनकर’
- 1965 वे दिन वे लोग शिवपूजन सहाय
- 1966 चेहरे जाने-पहचाने सेठ गोविन्ददास
- 1966 स्मृतियां और कृतियां शान्तिप्रय द्विवेदी
- 1967 चेतना के बिम्ब डॉ॰ नगेन्द्र
- 1968 गांधी संस्मरण और विचार काका साहेब कालेलकर
- 1968 घेरे के भीतर और बाहर डॉ॰ हरगुलाल
- 1968 बच्चन निकट से अजित कुमार एवं ओंकारनाथ श्रीवास्तव
- 1968 स्मृति के वातायन जानकीवल्लभ शास्त्री
- 1969 चांद पद्मिनी मेनन
- 1969 संस्मरण और श्रद्धांजलियां रामधारी सिंह दिनकर
- 1970 व्यक्तित्व की झांकियां लक्ष्मीनारायण सुधांशु
- 1971 जिन्होंने जीना जाना जगदीशचन्द्र माथुर
- 1971 स्मारिका महादेवी वर्मा
- 1972 अन्तिम अध्याय पदुमलाल पुन्नालाल बख़्शी
- 1973 जिनके साथ जिया अमृतलाल नागर
- 1974 स्मृति की त्रिवेणिका लक्ष्मीशंकर व्यास
- 1975 मेरा हमदम मेरा दोस्त कमलेश्वर
- 1975 रेखाएं और संस्मरण क्षेमचन्द्र सुमन
- 1975 चन्द सतरें और अनीता राकेश
- 1976 बीती यादें परिपूर्णानन्द
- 1976 मैंने स्मृति के दीप जलाए रामनाथ सुमन
- 1977 मेरे क्रान्तिकारी साथी भगत सिंह
1977 हम हशमत कृष्णा सोबती
- 1978 कुछ ख़्वाबों में कुछ ख़यालों में शंकर दयाल सिंह
- 1978 संस्मरण को पाथेय बनने दो विष्णुकान्त शास्त्री
- 1979 अतीत के गर्त से भगवतीचरण वर्मा
- 1979 पुनः सुलोचना रांगेय राघव
- 1979 श्रद्धांजलि संस्मरण मैथिलीशरण गुप्त
- 1980 यादों के झरोखे कुंवर सुरेश सिंह
- 1980 लीक-अलीक भारतभूषण अग्रवाल
- 1981 औरों के बहाने राजेन्द्र यादव
- 1981 यादों की तीर्थयात्रा विष्णु प्रभाकर
- 1981 जिनके साथ जिया अमृतलाल नागर
- 1981 सृजन का सुख-दुख प्रतिभा अग्रवाल
- 1982 संस्मरणों के सुमन रामकुमार वर्मा
- 1982 स्मृति-लेखा अज्ञेय
- 1982 आदमी से आदमी तक भीमसेन त्यागी
- 1983 निराला जीवन और संघर्ष के मूर्तिमान रूप डॉ॰ ये॰ पे॰ चेलीशेव
- 1983 मेरे अग्रज : मेरे मीत विष्णु प्रभाकर
- 1983 युगपुरुष रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’
- 1984 बन तुलसी की गन्ध रेणु
- 1984 दीवान ख़ाना पद्मा सचदेव
- 1986 रस गगन गुफा में भगवतीशरण उपाध्याय
- 1988 हज़ारीप्रसाद द्विवेदी : कुछ संस्मरण कमल किशोर गोयनका
- 1989 भारत भूषण अग्रवाल : कुछ यादें, कुछ चर्चाएं बिन्दु अग्रवाल
1990 सृजन के सेतु विष्णु प्रभाकर
- 1992 जिनकी याद हमेशा रहेगी अमृत राय
- 1992 निकट मन में अजित कुमार
- 1992 याद हो कि न याद हो काशीनाथ सिंह
- 1992 सुधियां उस चन्दन के वन की विष्णुकान्त शास्त्री
- 1994 लाहौर से लखनऊ तक प्रकाशवती पाल
- 1994 सप्तवर्णी गिरिराज किशोर
- 1995 अग्निजीवी प्रफुल्लचन्द्र ओझा
- 1995 मितवा घर पदमा सचदेव
- 1995 लौट आओ धार दूधनाथ सिंह
- 1995 स्मृतियों के छंद रामदरश मिश्र
- 1996 अभिन्न विष्णुचन्द्र शर्मा
- 1996 सृजन के सहयात्री रवीन्द्र कालिया
- 1998 यादें और बातें बिन्दु अग्रवाल
- 1998 हम हशमत भाग-2, कृष्णा सोबती
- 2000 अमराई पदमा सचदेव
- 2000 नेपथ्य नायक लक्ष्मीचन्द्र जैन मोहनकिशोर दीवान
- 2000 याद आते हैं रमानाथ अवस्थी
- 2000 यादों के काफिले देवेन्द्र सत्यार्थी
- 2000 वे देवता नहीं हैं राजेन्द्र यादव
- 2001 अंतरंग संस्मरणों में प्रसाद पुरुषोत्तमदास मोदी
- 2001 एक नाव के यात्री विश्वनाथप्रसाद तिवारी
- 2001 प्रदक्षिणा अपने समय की नरेश मेहता
- 2001 अपने-अपने रास्ते रामदरश मिश्र
- 2002 काशी का अस्सी काशीनाथ सिंह
- 2002 नेह के नाते अनेक कृष्णविहारी मिश्र
- 2002 लखनऊ मेरा लखनऊ मनोहर श्याम जोशी
- 2002 स्मृतियों का शुक्ल पक्ष डॉ॰ रामकमल राय
- 2002 चिडि़या रैन बसेरा विद्यानिवास मिश्र
- 2002 लौट कर आना नहीं होगा कान्तिकुमार जैन
- 2003 आंगन के वंदनवार विवेकी राय
- 2004 नंगा तलाई का गांव डॉ॰ विश्वनाथ त्रिपाठी
- 2004 लाई हयात आए लक्ष्मीधर मालवीय
- 2005 मेरे सुहृद : मेरे श्रद्धेय विवेकी राय
- 2005 सुमिरन को बहानो केशवचन्द्र वर्मा
- 2006 घर का जोगी जोगड़ा काशीनाथ सिंह
2006 जो कहूंगा सच कहूंगा डाॅ॰ कान्ति कुमार जैन
- 2006 ये जो आईना है मधुरेश
- 2007 अब तो बात फैल गई कान्तिकुमार जैन
- 2007 एक दुनिया अपनी डॉ॰ रामदरश मिश्र
- 2009 कविवर बच्चन के साथ अजीत कुमार
- 2009 कालातीत मुद्राराक्षस
- 2009 कितने शहरों में कितनी बार ममता कालिया
- 2009 कुछ यादें : कुछ बातें अमरकान्त
- 2009 दिल्ली शहर दर शहर डॉ॰ निर्मला जैन
- 2009 मेरे भोजपत्र चन्द्रकान्ता
- 2009 हाशिए की इबारतें चन्द्रकान्ता
- 2010 अ से लेकर ह तक, यानी अज्ञेय से लेकर हृदयेश तक डॉ॰ वीरेन्द्र सक्सेना
- 2010 अंधेरे में जुगनू अजीत कुमार
- 2010 जे॰ एन॰ यू॰ में नामवर सिंह सं॰ सुमन केशरी
- 2010 बैकुंठ में बचपन कान्तिकुमार जैन
- 2011 अतीत राग नन्द चतुर्वेदी
- 2011 कल परसों बरसों ममता कालिया
- 2011 स्मृति में रहेंगे वे शेखर जोशी
- 2012 हम हशमत भाग-3 कृष्णा सोबती
- 2012 अपने-अपने अज्ञेय [दो खंड] ओम थानवी
- 2012 आलोचक का आकाश मधुरेश
- 2012 गंगा स्नान करने चलोगे डॉ॰ विश्वनाथ त्रिपाठी
- 2012 माफ़ करना यार बलराम
- 2012 यादों का सफ़र प्रकाश मनु
- 2012 स्मृतियों के गलियारे से नरेन्द्र कोहली
- 2013 मेरी यादों का पहाड़ देवेंद्र मेवाड़ी