यह नोट्स विद्यार्थी को ध्यान में रखकर बनाया गया है। जो विद्यार्थी परीक्षा व किसी प्रतियोगिता के लिए तैयारी करते हैं उनके पास ऐसा साधन नहीं होता कि 1 घंटे या 1 दिन में पूरा कहानी या पूरा उपन्यास पढ़ सकें। ऐसी परिस्थिति में हम आपको कहानी , नाटक व उपन्यास का सार बहुत ही संक्षिप्त और रोचक पूर्ण तथ्यों के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं ,जिसके पढ़ने के बाद आप आसानी से बिना कहानी पढे भी उस कहानी का निचोड़ या कहें सार समझ जाएंगे। इससे आपका समय बचेगा यह सोच कर इस नोट्स को तैयार किया गया है।
पुरस्कार नाटक (जयशंकर प्रसाद)
पुरस्कार कहानी का सार
- जयशंकर प्रसाद प्रेमचंद युग के एक महत्वपूर्ण कहानीकार के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
- यह अजीब संयोग है कि काशी में उन दिनों हिंदी के तीन दिग्गज साहित्यकार मौजूद थे और तीनों चिंतन और लेखन के स्तर पर समय और समाज के यथार्थ को अलग अलग ढंग से अभिव्यक्त कर रहे थे।
- जयशंकर प्रसाद प्रेमचंद और रामचंद्र शुक्ल एक ही देश और काल में रचना रखते जयशंकर प्रसाद कविता और कहानी दोनो ही मोर्चे पर एक साथ सक्रिय थे।
- प्रसाद की आरंभिक कहानियों का संकलन सन 1912 में ‘ छाया ‘ नाम से प्रकाशित हुआ था। जबकी अंतिम कहानी संग्रह ‘ इंद्रजाल ‘ उनके निधन के 1 वर्ष पहले सन 1936 में प्रकाशित हुआ था।
- उनके समकालीन प्रेमचंद के लेखन में तत्कालीन सामाजिक राजनीतिक हलचलों की जैसी मुखर अभिव्यक्ति मिलती है वैसी प्रसाद के यहां नहीं है।
- प्रसाद भारत की गरिमा और गौरव का बखान सांस्कृतिक , ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में कर रहे थे। इस तरह वह अंग्रेजों की पराधीनता से उपजी भारतीय जनता की हताशा और पीड़ा को अतीत के गौरवान से फैलाना चाहते थे।
- बता दे जिस समय कहानियां लिख रहे थे वह स्वाधीनता आंदोलन में उत्कर्ष का काल था।
- प्रसाद ने मुक्ति चेतना को इतिहास से जोड़कर अपनी रचनाओं में अभिव्यक्त किया है।
- उन्होंने ऐतिहासिक पात्रों के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना को व्यक्त करने का प्रयास किया है।
- ‘पुरस्कार’ उनकी ऐसी ही रचना है जिसमें प्रेम और मुक्ति चेतना का विकास लक्षित किया जा सकता है।
- राजा द्वारा मधुलिका की कृषि भूमि अधिग्रहित कर लेने पर भी वह पुरस्कार नहीं लेती क्योंकि वह उसकी पैतृक संपत्ति थी जिसे बेचना वह अपराध समझती थी।
- स्वर्ण मुद्राओं को अस्वीकार और जीवन यापन के लिए कठिन श्रम उसकी देशभक्ति और ईमानदारी का प्रमाण है।
- राष्ट्रीय प्रेम एवं मुक्ति चेतना का एक अन्यतम उदाहरण और है जहां कौशल पर कब्जे की योजना बनाते अरुण का रहस्य व राज्य सैनिकों के सामने उद्घाटित करती है , और पुरस्कार स्वरूप खुद को प्राणदंड के लिए प्रस्तुत कर देती है। क्योंकि राजा ने अरुण को प्राण दंड देने का आदेश दिया था और मधुलिका अरुण से प्रेम करती थी।
- कितने ग्रहण अंतर्द्वंद उसे मधुलिका को गुजरना पड़ा होगा एक तरफ मातृभूमि की रक्षा का सवाल और दूसरी और प्रेम का लहराता समुद्र।
- परंतु मधुलिका ने जिस बुद्धिमानी का परिचय दिया उसे देश और प्रेम दोनों के प्रति ईमानदारी पर संदेह नहीं किया जा सकता।
- पुरस्कार के रुप में प्राणदंड की मांग और अरुण के साथ खड़ा हो जाना प्रेम की पराकाष्ठा का प्रमाण है।
- राष्ट्रीय आंदोलन में आदर्श और नैतिकता का जो भाव प्रबल था वह प्रसाद और प्रेमचंद दोनों के कथा साहित्य में मिलता है।
- प्रसाद ने इतिहास पुराण और संस्कृति का उपयोग अपनी युगीन आवश्यकताओं के संदर्भ में जनता की इच्छा आकांक्षाओं को स्वर देने के लिए ही किया है।
- मूल संवेदना उस क्षेत्र से मिलती है जहां कर्तव्य एवं निष्ठा का निर्वाह किया गया हो।
कर्तव्य एवं निष्ठां -कहानी की मूल संवेदना –
सच्चे नागरिक होने के कारण अरुण को पकड़वा देती है किंतु प्रेम के प्रति अपनी निष्ठा भी दिखाती है वह भी पुरस्कार रूप में प्राणदंड की मांग करती है यही कहानी की मूल संवेदना है यहां कर्तव्य एवं निष्ठा का निर्वाह किया गया है।
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निष्कर्ष –
जयशंकर प्रसाद प्रमुख नाट्य कारों में से एक थे। उन्होंने नवजागरण काल में भारत के जनमानस को जागृत करने का अथक प्रयास किया था। उनके साहित्य का अध्ययन करें तो स्पष्ट होता है कि भारत के गौरवान्वित क्षणों को प्रकट करते हुए भारतीय जनमानस की हताशा और पीड़ा से भरे क्षण को दूर करना चाहते थे।
वह लोगों को यह संदेश देना चाहते थे कि वह किस कारण दूसरों की गुलामी करने को विवश हैं जबकि उनके पूर्वज कितने शक्तिशाली और समृद्ध थे कि वह कभी गुलामी को स्वीकार नहीं करते।
अनेकों ऐसे पात्रों का अपने साहित्य में उद्घाटन किया जिन्होंने स्वयं के समर्थ से दुश्मनों से लोहा लिया था।
उसी क्रम में पुरस्कार कहानी है जिसमें राष्ट्रप्रेम के लिए स्वयं के हितों का त्याग कर मधुलिका ने अपने राष्ट्र कर्तव्य को सर्वोपरि माना।
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