इस लेख में वात्सल्य रस की परिभाषा, भेद, उदाहरण, स्थायी भाव, आलम्बन, उद्दीपन, अनुभाव, संचारी भाव तथा कवियों की रचना आदि का विस्तृत उल्लेख है।
इस लेख को लिखने से पूर्व विद्यार्थी के कठिनाई स्तर का चयन किया गया है। विद्यार्थी को जहां समस्या आती है उस बिंदु को सरल बनाने का प्रयास किया गया है।
परिभाषा :- माता-पिता एवं संतान के प्रेम भाव को प्रकट करने वाले रस को वात्सल्य रस कहा जाता है। वत्सल नामक भाव जब अपने अनुरूप विभाव , अनुभाव और संचारी भाव से युक्त होकर आस्वाद्य का रूप धारण कर लेता है , तब वहां वात्सल्य रस में परिणति हो जाती है।
इस रस के अंतर्गत संतान तथा माता-पिता के बीच के प्रेम को महत्व दिया गया है।
श्रृंगार रस तथा अन्य रसों में जहां विभिन्न प्रकार के प्रेम नायक-नायिका आदि का भेद किया गया था। इस रस के अंतर्गत मुख्यतः माता-पिता तथा संतान के बीच की क्रियाकलाप और आनंद से उत्पन्न होने वाले प्रेम को हम वात्सल्य रस कहते हैं।
वात्सल्य रस का स्थाई भाव, आलम्बन, उद्दीपन, अनुभाव तथा संचारी भाव
रस का नाम | वात्सल्य |
स्थाई भाव | वत्सल प्रेम , स्नेह |
आलम्बन | माता-पिता , संतान ,बालक |
उद्दीपन | माता-पिता-संतान के बिच की गतिविधि ,भोली-भाली चेष्टाएं ,तुतलाना ,चंचलता ,नटखटपन ,सुंदरता , |
अनुभाव | आलिंगन ,चुम्बन ,स्पर्श ,मुग्ध होना , आश्रय की चेष्टायें , प्रसन्नता का भाव |
संचारी भाव | हर्ष , गर्व ,मौतुसक्य,अभिलाषा ,आशा , चपलता ,आवेग ,उत्सुकता ,अमर्ष ,शोक ,हास ,चिंता ,शंका ,विस्मय ,स्मरण। |
वात्सल्य रस का स्थाई भाव वत्सल रति है। जिसे पुत्र प्रेम , संतान प्रेम आदि भी कहा जा सकता है।
यह भाव अपने संतान के क्रियाकलापों को देखकर उत्पन्न होता है।
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वात्सल्य रस का उदहारण
तुम्हारी यह दंतुरित मुस्कान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूल-धुसर तुम्हारे ये गात…
उपर्युक्त पंक्ति में पुत्र के मोहित मुस्कान पर एक पिता की अवस्था का वर्णन है।
पिता अपने पुत्र के नन्हीं दंतुरित मुस्कान पर आनंदित हो रहा है।
यह मुस्कान मृतक को संजीवनी अर्थात जीवन प्रदान करने वाला प्रतीत हो रहा है , अतः यह वात्सल्य रस का सटीक उदाहरण है।
किलकत कान्ह घुटरुवनि आवत।
मचिमय कनक नंद के भांजन बिंब पक्रिये धतत।
बालदसा मुख निरटित जसोदा पुनि पुनि चंदबुलाबन।
अंचरा तर लै सुर के प्रभु को दूध पिलावत। ।
उपर्युक्त पंक्ति में कृष्ण के बाल लीलाओं का वर्णन है। कृष्ण अपने घुटनों पर चल रहे हैं किलकारियां मार रहे हैं और बाल लीला का प्रदर्शन कर रहे हैं।
इन सभी क्रियाकलापों को देखकर यशोदा मां आनंदित हो रही हैं , इन सभी लीलाओं ने माता को रिझा दिया है।
वह अपने कान्हा को अचरा तर छुपाकर दूध पिला रही हैं।
झूले पर उसे झूलाऊंगी दूलराकर लूंगी वदन चुम
मेरी छाती से लिपटकर वह घाटी में लेगा सहज घूम।
बच्चे के जन्म के साथ ही माता के स्तनों में पय धारा का प्रवाहित हो जाना स्नेहातिरेक से सुखी छाती में भी दूध उमड़ आना आदि मात्र वात्सल्य की ऐसी विचित्रता है।
जो वात्सल्य रस को पृथक स्वतंत्र अस्तित्व प्रदान करती है। इस रस में भी श्रृंगार रस की भांति संयोग और वियोग दो पक्ष होते हैं।
वात्सल्य रस के सम्राट
वात्सल्य रस का सम्राट सुरदास जी को कहा गया है। सूरदास जी ने श्री कृष्ण के बाल स्वरूप का वर्णन अपने साहित्य में किया है।
सूरदास जी के साहित्य अध्ययन से स्पष्ट होता है , उन्होंने अपने लगभग सम्पूर्ण साहित्य में ही कृष्ण के बाल लीलाओं को समाहित किया है।
भक्ति काल के अन्य कवियों ने अपने आराध्य की मिली-जुली प्रस्तुति अपने साहित्य में की है।
तुलसीदास जी को ही देखें तो उन्होंने श्री राम जी का वर्णन अपने साहित्य में किया है।
तुलसीदास जी ने अपने आराध्य श्री राम के संपूर्ण जीवन को अपने साहित्य में समाहित किया है। वहीं सूरदास जी ने श्री कृष्ण के बाल लीलाओं को ही केंद्र में रखकर लिखा है।
उपरोक्त कारणों से सूरदास को वात्सल्य रस का सम्राट माना गया।
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निष्कर्ष
समग्रतः अध्ययन से स्पष्ट होता है कि यह रस , श्रृंगार रस से बिल्कुल भिन्न है।
श्रृंगार रस में जहां नायक-नायिका , प्रेमी-प्रेमिका आदि का प्रेम अभव्यंजित होता है।
वहीं वात्सल्य रस में माता-पिता-पुत्र के प्रेम को महत्व दिया जाता है।
अतः हम कह सकते हैं कि वात्सल्य रस माता-पिता तथा पुत्र का प्रेम है। इसका स्थाई भाव वत्सल प्रेम है। आशा है यह रस आपको समझ आ गया हो , आपके ज्ञान की वृद्धि हो सकी हो। आपके परीक्षाओं के लिए कुछ मदद हो सकती हो।
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