श्लेष अलंकार की परिभाषा, भेद और उदाहरण Shlesh alankar

इस लेख में श्लेष अलंकार का विस्तृत अध्ययन कर सकेंगे। यहां परिभाषा, उदाहरण, भेद, पहचान करने की विधि आदि को विद्यार्थियों के कठिनाई स्तर की पहचान करते हुए लिखा गया है।

यह लेख परीक्षा की दृष्टि से उपयोगी है , ठीक प्रकार से अध्ययन करने पर परीक्षा में सर्वाधिक अंक प्राप्त कर सकते हैं। अतः इस लेख को ध्यान केंद्रित करते हुए पढ़ें।

अलंकार सौंदर्य की वृद्धि करते हैं जिस प्रकार महिलाएं अपने रूप को निखारने के लिए सौंदर्य प्रसाधन का प्रयोग करती है ठीक उसी प्रकार काव्य में सुंदरता को बढ़ाने के लिए अलंकार का प्रयोग किया जाता है यही कारण है कि अलंकार को काव्य का आभूषण कहा गया है अलंकार के प्रयोग से काव्य की सुंदरता बढ़ती है।

श्लेष अलंकार – Shlesh alankar

यह अलंकार शब्दालंकार के अंतर्गत माना गया है। शब्दालंकार में – अनुप्रास अलंकार , यमक अलंकार , को भी माना गया है।

परिभाषा :- काव्य में जहां शब्द एक बार प्रयोग होता है किंतु उसके अर्थ भिन्न-भिन्न होते हैं , अर्थात उसके अर्थ दो या दो से अधिक निकलते हैं वहां श्लेष अलंकार माना जाता है।

पहचान :- श्लेष अलंकार की पहचान शब्दों के आपस में चिपके होने से की जाती है। अर्थात एक ही शब्द में दो अर्थ चिपके होते हैं , वहां श्लेष अलंकार होता है। शब्द तो एक होते हैं , किंतु उस शब्द के साथ अनेकों अर्थ चिपके होते हैं वहां श्लेष अलंकार होता है।

उदहारण  पहचान 
जो रहीम गति दीप की , कुल कपूत की सोय।

बारे उजियारो करै , बढ़े अंधेरो होय। ।

बारे – जलना और बचपन

बढे – बड़ा होने पर और बुझने पर

मधुबन की छाती को देखो

सुखी कितनी इसकी कलियाँ

कलियाँ – फूल खिलने से पूर्व की अवस्था

कलियाँ – यौवन से पूर्व की अवस्था

रहिमन पानी रखिए , बिन पानी सब सून

पानी गए न उबरे , मोती मानस चून। ।

पानी – चमक और सम्मान
पी तुम्हारा मुख बास तरंग

आज बौरे भौरे सहकार। ।

बौरे – मस्त

बौरे  – आम के फूल या मंजरी।

सुबरन को ढूंढत फिरत ,कवि व्यभिचारी चोर। सुबरन – सुन्दर शरीर और  सोना
मेरी भव-बाधा हरौ राधा नागरि सोई

जा तन की झाईं परै स्यामु हरित दुति होई। ।

स्यामू – कृष्ण ,और  सांवला

हरित – हरा रंग और प्रसन्न

चिरंजीवौ जोरी जुरे क्यों न सनेह गंभीर

को घटि या वृषभानुजा वे हलधर वे वीर। ।

वृषभानुजा – राधा , वृषभानुजा – बैल की बहन

हलधर – बलराम , हलधर – बैल

 गुन करि मोहि सूर साँवरे को निरगुन निरबैहै
तो पर वारौं उरबसी सुनि राधिका सुजान

तू मोहन के उरबसी हवै उरबसी समान। ।

उरबसी – ह्रदय में बसना

उरबसी – उर्वशी अप्सरा का नाम।

मंगन को देख पट देत बार – बार है।

पट – वस्त्र

पट – दरवाजा

हे प्रभु हमे दो जीवन दान। जीवन – पानी

जीवन – उम्र

विपुल धन अनेकों रत्न हो साथ लाए

प्रियतम बता दो लाल मेरा कहाँ है। ।

लाल – रत्न

लाल – पुत्र

या अनुरागी चित की गति समुझै नहीं कोई

ज्यों ज्यों बूड़े स्याम रंग , त्यों – त्यों उज्जलु होई।

स्याम – श्याम  और  सांवला
रो-रोकर सिसक-सिसक कर कहता मैं करुण कहानी

तुम सुमन नोचते ,सुनते ,करते ,जानी अनजानी

सुमन – फूल

सुमन – सुंदर मन

श्लेष अलंकार के अन्य उदाहरण यथाशीघ्र यहाँ प्रकाशित किए जाएंगे अतः इस वेबसाइट से आप जुड़े रहे हैं।

यह भी पढ़ें –

अनुप्रास अलंकार

यमक अलंकार पूरी जानकारी

सम्पूर्ण अलंकार

सम्पूर्ण संज्ञा 

सर्वनाम और उसके भेद

अव्यय के भेद परिभाषा उदहारण 

संधि विच्छेद 

समास की पूरी जानकारी 

रस के प्रकार ,भेद ,उदहारण

पद परिचय

स्वर और व्यंजन की परिभाषा

संपूर्ण पर्यायवाची शब्द

वचन

विलोम शब्द

वर्ण किसे कहते है

हिंदी वर्णमाला

श्लेष अलंकार निष्कर्ष –

श्लेष अलंकार का उपरोक्त अध्ययन करने पर स्पष्ट होता है कि यहां शब्दों की बार-बार आवृत्ति नहीं होती और ना ही किसी प्रकार की कोई अन्य प्रतिक्रिया देखने को मिलती है। किंतु श्लेष अलंकार की पहचान करने का एक सरल और सटीक माध्यम है।

काव्य में शब्द एक बार प्रयोग होंगे किंतु उसके अर्थ दो या दो से अधिक निकलेंगे।

श्लेष अलंकार तथा यमक अलंकार में यही भिन्नता है। यमक अलंकार में एक ही शब्द बार-बार आ रहे थे , जबकि श्लेष अलंकार में एक शब्द रहता है उसके अर्थ अनेक होते हैं।

आशा है यह लेख आपको पसंद आया हो और श्लेष अलंकार की पहचान करने की समझ आप में विकसित हुई होगी। किसी भी प्रकार की समस्या के लिए हमें नीचे कमेंट बॉक्स में लिखकर बता सकते हैं।

Sharing is caring

Leave a Comment