राष्ट्रीय गान की मूल संरचना बंगाली (बांग्ला) भाषा में है इसकी रचना रविंद्र नाथ टैगोर ने की थी। यह विशेष अवसर पर गाया जाने वाला गान है जिससे निश्चित समय निश्चित स्थिति तथा धुन पर गायन तथा वादन किया जाता है। इससे संबंधित भारत के संविधान में कुछ दिशा-निर्देश भी दिए गए हैं इसका पालन करना भारत के नागरिक का कर्तव्य है।
निम्नलिखित आप राष्ट्रगान पढ़ेंगे तथा उसमें कठिन शब्दों को भी जानेंगे साथ ही व्याख्या भी पढ़कर इसके अर्थों को समझ सकेंगे।
राष्ट्रीय गान अर्थ सहित
जन गण मन अधिनायक जय हे
भारत भाग्य विधाता
पंजाब सिन्ध गुजरात मराठा
द्राविड़ उत्कल बंग
विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा
उच्छल जलधि तरंग
तव शुभ नामे जागे
तव शुभ आशिष मागें
गाहे तव जय गाथा
जन गण मंगल दायक जय हे
भारत भाग्य विधाता
जय हे जय हे जय हे
जय जय जय जय हे। ।
राष्ट्रीय गान के शब्दों का अर्थ
जन-जनता, गण-समूह, मन-मस्तिष्क, अधिनायक-मुखिया/शासक, भारत-राष्ट्र, उत्कल- उड़ीसा, भाग्य-नियति, विधाता-ईश्वर, उच्छल-लहराना, जलधि-समुद्र, तरंग-लहर, आशिष-आशीर्वाद, गाथा-इतिहास/प्रशस्ति, मंगल-शुभ, दायक-देनेवाला।
राष्ट्रीय गान – जन गण मन की व्याख्या
राष्ट्रीय गान के रचयिता रविंद्र नाथ टैगोर ने आजादी से पूर्व इस गीत को लिखा था, जिसे स्वतंत्र भारत में राष्ट्रगान का दर्जा दिया गया है। जिसका अर्थ कुछ इस प्रकार हो सकता है –
आप भारत के विधाता है व्यक्ति,समूह, संगठन के मन के अधिनायक हे भारत के भाग्य विधाता तुम्हारी जय हो। आप ही यहां के जनता के मन में बसे हो, आप उनके नायक हो, आप ही भारत के भाग्य के ईश्वर हो। जहां जिस देश में पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा, द्रविड़, उड़ीसा, बंगाल जैसे सुंदर खूबसूरत राज्य है। जहां विंध्याचल पर्वत, भीमकाय हिमालय, जीवनदायिनी गंगा, यमुना सदैव कलकल बहती रहती है। जहां समुद्र की तरंगे जवान लहरों की भांति बहती रहती है। ऐसे पवित्र भूमि को भारत राष्ट्र कहते हैं। इससे यहां की भूमि की पहचान है, जिससे भारत की पहचान है। जहां हम शुभ आशीर्वाद मांगते हैं। हम तब इस की गाथा गाते हैं जो हमारे गौरव का विषय है। हे जन गण को मंगल प्रदान करने वाले तुम्हारी सदा जय हो। हे भारत के भाग्य विधाता तुम्हारी जय हो जय हो तुम्हारी सदा ही जय हो।
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समापन
रविंद्र नाथ टैगोर जी का जस गीत राष्ट्रीय गान का दर्जा प्राप्त है, किंतु कुछ विशेष समुदाय के लोग अपने धर्म से जोड़कर इस गीत को नहीं गाते हैं या कुछ इस पर अंग्रेजों की प्रशस्ति या उन्हें खुश करने का आरोप लगाकर इस गीत को गाने से परहेज करते हैं। भारत जैसे शक्तिशाली राष्ट्र का कोई बाहरी भाग्य विधाता कैसे हो सकता है। जबकि किसी भी देश की जनता वहां की सरकार उसके भाग्य का निर्धारण करती है ऐसे में राष्ट्रगान का विवाद सदैव बरकरार रहता है।
उपर्युक्त व्याख्या स्वयं के विवेक के आधार पर लिखा गया है, इसमें मूल अर्थ में भिन्नता हो सकती है, इसे हम नकार नहीं सकते क्योंकि यह व्यक्ति विवेक के आधार पर व्याख्या की गई है।
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