मानवीकरण अलंकार की परिभाषा, पहचान, कविता और उदाहरण

जहां चेतन,अचेतन अवस्था को मनुष्य के क्रियाकलापों से जोड़ा जाए वहां मानवीकरण अलंकार होता है। इस लेख में आप मानवीकरण अलंकार की परिभाषा, पहचान, कविता और उदाहरण का विस्तार पूर्वक अध्ययन करेंगे।

मानवीकरण अलंकार को समझाने के लिए तथा स्पष्टीकरण के लिए प्रश्न-उत्तर भी दिए गए हैं। इस लेख को पढ़कर आप अनेकों प्रकार से मानवीकरण अलंकार को समझ सकेंगे। आशा है इस लेख के अध्ययन से आपकी समझ विकसित होगी तथा अलंकार को विस्तृत रूप से जानने तथा पहचाने मैं समर्थ होंगे।

मानवीकरण अलंकार की परिभाषा

परिभाषा :- जहां काव्य में चेतन-अचेतन अवस्था का संबंध तथा क्रियाकलापों को , मनुष्य के व्यवहार से जोड़कर प्रस्तुत किया जाता है वहां मानवीकरण अलंकार होता है। जहां बेजुबान में जान होने का संकेत मिले वहां मानवीकरण अलंकार की उपलब्धता होती है।

हम जानते हैं कि अलंकार काव्य की शोभा को बढ़ाते हैं। अलंकारों के प्रयोग से काव्य की शोभा में वृद्धि होती है। मानवीकरण अलंकार का प्रयोग हिंदी साहित्य में स्वतंत्रता से पूर्व अधिक देखने को मिलता है। मुख्यतः छायावादी कवियों ने मानवीकरण अलंकार का अधिक प्रयोग किया है।

स्वतंत्रता के समय किसी भी साहित्य को खुलकर नहीं लिखा जा सकता था। अभिव्यक्ति की आजादी सीमित थी। अतः छायावादी कवियों ने प्रकृति तथा अन्य माध्यमों को अपनाकर मनुष्य को आंदोलन में सम्मिलित होने के लिए प्रेरित किया।

‘बीती विभावरी जाग री’ कविता को पढ़ने से स्पष्ट होता है कि कवि सखी को जागने के लिए नहीं अपितु देशवासियों को जागृत करने का प्रयत्न कर रहा है। ऐसी अनेकों कविताएं तथा लेखनी हिंदी साहित्य में उपलब्ध है , जहां मानवीकरण अलंकार का उदाहरण देखने को मिलता है।

manvikaran alankar in hindi
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मानवीकरण अलंकार के उदाहरण

१. दिवसावसान का समय

मेघ आसमान से उतर रही है

वह संध्या सुंदरी परी-सी  

धीरे-धीरे-धीरे।

(उपरोक्त पंक्ति में संध्या समय का दृश्य है , जिसका वर्णन सुंदर परी के रूप में किया है। यहां प्रकृति को मनुष्य के क्रियाकलाप से जोड़ा गया है। )

२. बीती विभावरी जाग री

अंबर पनघट में डुबो रही

तारा घट उषा नागरी।

( यहां अंबर रूपी पनघट में तारा रूपि उषा को स्त्री के रूप में चित्रित किया है। यह पनघट पर पानी भरने के लिए गई है।)

३. श्रद्धानत तरुओं की अंजली से झरे पात 

कोंपल के मूंदे नयन थर-थर-थर पुलकगात।

(यहां वृक्ष और उसके शाखाओं को मानवीय व्यवहार से जोड़ा गया है )

४. खंड-खंड करताल बाजार ही विशुद्ध हवा।

(हवा का करताल बजाना मानवीय व्यवहार को प्रकट करता है। क्योंकि करताल मनुष्य द्वारा बजाए जाने वाला वाद्य यंत्र है। अतः यहां मानवीकरण अलंकार है। )

५. इस सोते संसार बीच

जगकर सजकर रजनीबाले।

(रात को कन्या के रूप में बताया गया है , जो सज संवर कर घूम रही है।)

६. आए महंत वसंत। 

(यहां बसंत को महंत अर्थात मानव माना गया है जो सज संवर कर आया है )

७. मेघ आए बड़े बन-ठन के सवर के। ।

(बादलों के सजने सवरने का जिक्र है जो मानवीय क्रिया से जोड़ती है।)

८. धीरे-धीरे उतर क्षितिज से आ बसंत-रजनी।

(बसंत ऋतु की रात को उतर कर अपने पास आने के लिए कहा है अर्थात यहां मानव का संबंध स्थापित किया गया है।)

९. तिनको के हरे-हरे तन पर। 

१०. लो हरित धरा से झांक रही 

नीलम की कली , तीसी नीली।

११. हंस रही सखियां मटर खड़ी।

(यहां मटर को स्त्री के रूप में चित्रित किया गया है जो खड़ी होकर एक साथ हंसती हुई प्रतीत हो रही है )

१२. अरहर सनई की सोने की

कंकरिया है शोभाशाली।

१३. यह हरा ठीगना चना बांधे मुरैना शीश पर।

(चने को मानव के रूप में चित्रित किया है जो सिर पर पगड़ी बांधकर खड़ा है )

१४. बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की। 

१५ .आगे-आगे नाचती गाती बाजार चली। 

१६. बीच में अलसी हठीली

देह की पतली ,कमर की है लचीली। 

(अलसी के पौधे को नव युवती के रूप में चित्रित किया है। जिसकी चाल हठीली है , कमल पतली है और देह लचीला बताया है )

१७. सिमटा पंख सांझ की लाली

जा बैठी अब तरु शिखरों पर।

संध्या की सूर्य को पक्षी के रूप में चित्रित किया है , जो वृक्ष पर बैठा प्रतीत हो रहा है।

१८. अचल हिमगिरि के हृदय में आज चाहे कंप हो ले

या प्रलय के आंसुओं में मौन अलखित व्योम रो ले।

१९. तुंग हिमालय के कंधों पर छोटी-बड़ी कई झीलें हैं।

हिमालय को मानव बताकर उसके कंधों पर झील होने का संकेत है।

२०. अपनी एक टांग पर खड़ा है यह शहर

अपनी दूसरी टांग से

बिलकुल बेखबर।

यहां शहर को मनुष्य के रूप में बताया है जो अपनी एक टांग पर खड़ा है। अतः यहां मानवीकरण अलंकार है।

२१. हेम कुंभ ले उषा सवेरे-भरती बुलकाती सुख मेरे

मदिर ऊंघते रहते जब-जगकर रजनी भर तारा।

२२. गुलाब खिलकर बोला मैं आग का गोला नहीं प्रीत की कविता हूं।

गुलाब कैसे निर्जीव में भी बोलने का गुण विद्यमान है अतः यहां मानवीकरण के संकेत मिलते हैं।

मानवीकरण अलंकार की कविता

बीती विभावरी जाग री!

अम्बर पनघट में डुबो रही
तारा घट ऊषा नागरी।
खग कुल-कुल सा बोल रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा,

लो यह लतिका भी भर लाई
मधु मुकुल नवल रस गागरी।
अधरों में राग अमंद पिये,
अलकों में मलयज बंद किये
तू अब तक सोई है आली
आँखों में भरे विहाग री।

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मानवीकरण अलंकार निष्कर्ष :-

उपरोक्त अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि जहां निर्जीव में भी सजीव होने का संकेत मिलता है वहां मानवीकरण अलंकार होता है। प्रकृति में मानव के गुणों को देखना मानवीकरण अलंकार की ओर इशारा करता है। इस अलंकार का प्रयोग छायावादी कवियों ने अधिक रूप से किया।

जैसा कि हमने ऊपर स्पष्ट किया है आजादी के समय स्वतंत्रता पूर्वक अभिव्यक्ति नहीं किया जा सकता था।

अतः प्रकृति को माध्यम बनाकर छायावादी कवियों ने अपने बातों को कहा। एक स्पष्ट रूप से निश्चित और सटीक बात को कहने का सबसे बड़ा माध्यम यह अलंकार है।

आधुनिक समय में मानवीकरण अलंकार का उतना प्रयोग देखने को नहीं मिलता जितना छायावादी तथा प्रकृति से जुड़ी कविताओं में देखने को मिलता था। आशा है आपको यह लेख समझ आया हो आपके ज्ञान की वृद्धि हुई होगी। आप निश्चित रूप से इस अलंकार को पहचान पाने में समर्थ हुए होंगे।  किसी भी प्रकार की समस्या या पूछताछ के लिए आप हमें कमेंट बॉक्स में लिख सकते हैं।

हम विद्यार्थियों की सहायता के लिए सदैव तत्पर रहते हैं यथाशीघ्र आपके जवाब दिए जाएंगे।

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3 thoughts on “मानवीकरण अलंकार की परिभाषा, पहचान, कविता और उदाहरण”

  1. मानवीकरण अलंकार को आपने बहुत अच्छे तरीके से समझाया है. इसकी परिभाषा और पहचान इतने सरल तरीके से समझाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.

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  2. आपने मानवीकरण अलंकार के भेद परिभाषा और उदाहरण को बहुत अच्छे से बताया है
    धन्यवाद

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