भारत की पहचान हिंदी भाषा से है, आज के लेख में हम हिंदी दिवस पर निबंध प्रस्तुत कर रहे हैं। जिसमें हिंदी भाषा से संबंधित समस्त विषयों को उजागर करने का प्रयत्न करेंगे।
इस लेख का अध्ययन आप विद्यालय, विश्वविद्यालय तथा प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कर सकते हैं। इस लेख का अध्ययन आप बड़े-बड़े प्रतियोगी परीक्षाओं आई.ए.एस आदि के लिए भी विशेष रूप से कर सकते हैं।
हिंदी दिवस कब से मनाया जाता है
हिंदी दिवस 14 सितंबर को प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है।
14 सितंबर 1949 को हिंदी राष्ट्रभाषा तथा राजभाषा के रूप में स्वीकार की गई थी। तत्पश्चात 14 सितंबर 1953 से निरंतर 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। हिंदी दिवस मनाने के पीछे हिंदी भाषा का प्रचार प्रसार करना लोगों को हिंदी साहित्य के प्रति आकर्षित करना था।
भारत की प्राचीन भाषा
विश्व का इतिहास गवाह है कि भारत की शिक्षा पद्धति विश्व की प्राचीनतम है। भारत के तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों में देश-विदेश से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। यहां के गुरुकुल बेहद प्राचीनतम थे, जहां धर्म, समाज, राजनीति, वैज्ञानिक प्रयोग, अनुसंधान जैसे शिक्षा का अध्ययन किया जाता था। नालंदा विश्वविद्यालय में करोड़ों की संख्या में दुर्लभ पुस्तकों का संग्रह था, जिसे विदेशियों ने तहस-नहस कर जलाकर राख कर दिया था। माना जाता है भारत की शिक्षा व्यवस्था विश्व की शिक्षा व्यवस्था में सबसे प्राचीन है।
भारत में आदिकाल से
- वैदिक संस्कृत,
- लौकिक संस्कृत,
- पालि,
- प्राकृत,
- अपभ्रंश
जैसी प्राचीनतम भाषाओं का प्रचलन था।
आधुनिक भारत में ब्रजभाषा, अवधी भाषा के उपरांत हिंदी भाषा का प्रयोग किया गया। हिंदी भाषा को विशेष स्वीकार्यता प्राप्त हुई, यह जन सामान्य की भाषा बन गई क्योंकि इसे पढ़ना उच्चारण करना और बोलना बेहद ही आसान था। भारत में मुगल तथा अंग्रेजों के आगमन से उर्दू, अरबी, फारसी तथा अंग्रेजी भाषा का भी प्रचलन था। यह एक साधारण व्यक्ति के लिए भी सुलभ था जो संस्कृत आदि के शब्दों से बेहद सरल और आम बोलचाल की व्यवहारिक भाषा के रूप में परिवर्तित हो गई।
भारत में विदेशी भाषा का काल
भारत में आदिकाल से निरंतर भाषा का स्वरूप बदलता रहा है। मध्यकाल में जब मुगलों ने भारत पर अपना धीरे-धीरे साम्राज्य स्थापित किया तब उन्होंने भारत की भाषा उर्दू, अरबी, फारसी में परिवर्तित किया क्योंकि यह उनके राजकाज के लिए सुलभ भाषा थी। उन्होंने समस्त प्रशासन में इन्हीं भाषाओं का प्रयोग किया। वर्तमान समय में कोर्ट, कचहरी की भाषा में अधिकतर इन्हीं भाषाओं का प्रयोग देखने को मिलता है। मुगलों के उपरांत जब भारत में अंग्रेजी हुकूमत ने अपना साम्राज्य बढ़ाया, तब भारत की कार्यालय भाषा अंग्रेजी हो गई।
अंग्रेजी का ज्ञान होना व्यक्ति के प्रतिष्ठा और पद में चार चांद लगा दिया करता था
अंग्रेजों ने अंग्रेजी भाषा के प्रचार प्रसार के लिए विभिन्न प्रकार के उपाय किए। शिक्षा व्यवस्था मैं अंग्रेजी भाषा को शामिल किया तथा विभिन्न प्रकार के पत्र-पत्रिकाओं का अंग्रेजी भाषा में प्रकाशन किया। अंग्रेजी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए अंग्रेजों ने भारत में पहली बार 1526 में अपना एक छापाखाना भी खोला। इस छापाखाना का उद्देश्य धार्मिक पुस्तकों का प्रचार प्रसार करना था। वह अपने राजकाज के लिए एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते थे, जो उनकी भाषा को समझ सके और उनके द्वारा बताए गए कार्यों को कर सके।
अतः अंग्रेजी को विशेष महत्व देकर प्रचार प्रसार किया गया।
आधुनिक कवियों ने अंग्रेजी तथा उन सभी जटिल भाषाओं का विरोध किया जो सामाजिक नहीं था। समाज के अधिक लोग जिस भाषा से नहीं जुड़ सकते थे वैसे ही भाषा का आधुनिक कवियों ने विरोध किया और हिंदी भाषा के प्रयोग पर विशेष बल दिया। हिंदी भाषा बोलने श्रवण करने तथा आम बोलचाल के प्रयोग में सुलभ थी। अतः लोगों ने इस भाषा को अपने जीवन में अपना लिया। धीरे-धीरे हिंदी भाषा में अनुवाद हुए विभिन्न कहानी, कथा की रचना हुई जो जनसामान्य तक अपनी पहुंच बना सके।
दूरदर्शन आम बोलचाल की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित किया।
हिंदी को महत्व दिलाने वाले व्यक्ति
आधुनिक काल के समस्त कवियों ने हिंदी भाषा को महत्व दिलाने में अपना योगदान दिया। विशेषकर भारतेंदु हरिश्चंद्र हिंदी भाषा में साहित्य रच कर इसकी आधारशिला रखी थी। तत्पश्चात मध्यकालीन कवियों ने तथा छायावादी कवियों और आधुनिक काल के कवियों ने हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए पुरजोर समर्थन किया।
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कहा था –
“निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।” अर्थात अपनी भाषा में उन्नति सभी उन्नति का मूलभूत आधार है।
आजादी के पश्चात हिंदी भाषा को महत्व दिलाने के लिए मैथिलीशरण गुप्त, हजारी प्रसाद द्विवेदी जैसे महान कवियों ने अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दिया।
आजादी के पश्चात हिंदी भाषा का क्षेत्र बहुत व्यापक था, जिसके भीतर कई उप बोलियां हुआ करती थी। हिंदी भाषा के व्यापक क्षेत्र को देखते हुए सरकार ने 14 सितंबर 1949 को हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा तथा राजभाषा का दर्जा दिया। साथ ही अंग्रेजी भाषा को भी 15 साल के लिए राष्ट्रभाषा के रूप में प्रयोग करने का निर्णय लिया। 14 सितंबर 1953 में केंद्र सरकार ने हिंदी के प्रचार-प्रसार और महत्व को जनसामान्य तक पहुंचाने के लिए प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाने का भी निर्णय लिया। किंतु आज इतने वर्षों के पश्चात भी हिंदी भाषा को वह सम्मान नहीं मिल पाया जो मिलना चाहिए था।
भारत में कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां हिंदी का विशेष महत्व नहीं है
उन्होंने अपनी छोटी मानसिकता का परिचय देते हुए हिंदी का विरोध किया।
जिसमें दक्षिण भारत के राज्य तथा बंगाल अग्रणी है।
उच्च पदों पर स्थापित लोग जो अंग्रेजी भाषा को भली-भांति जानते हैं, उन्होंने हिंदी भाषा के महत्व को स्वीकार करने से इंकार कर दिया। यह कुछ प्रतिशत लोगों की वजह से बहुतायत प्रतिशत के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाया गया।
हिंदी का सम्मान आज भी वह नहीं है जो होना चाहिए था।
आज भी उच्च संस्थानों में अंग्रेजी भाषाओं का प्रयोग किया जाता है।
विडंबना यह है कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय में आप हिंदी भाषा का प्रयोग नहीं कर सकते।
आज भी अंग्रेजी का मान हिंदी भाषा से अधिक है, जो भारत के लिए दुर्भाग्य का विषय है।
हिंदी भाषा का विरोध क्यों
लगभग 60 साल के बाद भी हिंदी भाषा को व स्थान प्राप्त नहीं हुआ जो उसे प्राप्त होना चाहिए था। इसका एकमात्र कारण भारत में ही हुआ हिंदी का विरोध है। हमारे सरकार, राजनेता, अधिकारी तथा कुछ अलगाववादी प्रवृत्ति के लोगों ने हिंदी भाषा को वह स्थान प्राप्त नहीं होने दिया जो होना चाहिए था। उन्होंने हिंदी का विरोध यह कहकर किया कि हिंदी को एकाधिकार प्राप्त हो जाएगा। यह भारत की एकमात्र ऐसी भाषा बन जाएगी जो अन्य भारत के लोगों पर थोपे जाने वाली बात होगी।
हिंदी भाषा का विशेष विरोध बंगाल तथा तमिलनाडु के राज्यों ने किया।
उन्होंने हिंदी भाषा पर आरोप लगाया कि सरकार इस भाषा को स्थापित कर हिंदी का वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश कर रही है।
इससे सभी प्रांतीय भाषाएं पिछड़ जाएंगी, जबकि ऐसा नहीं था।
हिंदी भाषा का महत्व भारत ही नहीं विदेश में भी बढ़ रहा है
वहां मोटी फीस देकर लोग हिंदी भाषा सीख रहे हैं। भारत में नौकरी तथा अवसर की तलाश कर रहे हैं। यह कट्टरपंथी मानसिकता के लोगों का गलत सोचना और बयान था। भारत सरकार तथा नेताओं के द्वारा हिंदी भाषा के क्षेत्र में राजनीति भी काफी जिम्मेदार है। क्योंकि केवल 4-5% अंग्रेजी जानने वाले लोग जो चिकित्सा, इंजीनियरिंग तथा प्रशासनिक विभाग में उच्च पदों पर बैठे हैं। उनका ध्यान रखते हुए लगभग 95% लोगों की भावनाओं को दरकिनार रखते हुए हिंदी के महत्व को बढ़ने नहीं दिया।
जबकि आज हिंदी का प्रयोग पूरे विश्व में देखने को मिल रहा है।
यहां तक कि गूगल जैसे बड़े प्लेटफार्म पर भी हिंदी का बोलबाला विश्व की पांच भाषाओं में शामिल है।
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने काफी समय पहले ही कहा था –
“अंग्रेजी पढ़ि के जदपि सब गुन होत प्रवीन
पै निज भाषा ज्ञान बिन रहत हीन हीन। ।”
अर्थात अगर अंग्रेजी भाषा को पढ़कर सभी गुण आ जाते तो अंग्रेज खुद विद्वान होते, उनमें किसी प्रकार की कोई कमी नहीं होती।
हिंदी कम्प्यूटर की भाषा
हिंदी भाषी लोगों की निरंतर प्रगतिशीलता और हिंदी विषय में रुचि को बढ़ते हुए देख आज हिंदी ने अपना कंप्यूटर की भाषा में भी सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है।
- विश्व के लोग आज हिंदी से जुड़ रहे हैं।
- इसके लिए 10 जनवरी को राष्ट्रीय हिंदी दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।
- जिसका उद्देश्य हिंदी का प्रचार प्रसार करना होता है।
- गूगल के सहयोग से आज हिंदी कंप्यूटर की भाषा बन गई है।
- इस भाषा में निरंतर गुणात्मक रूप से पाठक जुड़ते जा रहे हैं।
- जो अन्य भाषा से बहुत ही ज्यादा है।
गूगल ने 2021 में बोलकर लिखने का टूल पेशकर भारत वासियों के लिए हिंदी से जुड़ने का योगदान दिया है। आज कोई भी व्यक्ति गूगल पर बोलकर हिंदी में लिख सकता है। इतना ही नहीं वह अपने मनपसंद सामग्री का अध्ययन भी कर सकता है। आज पूरा विश्व हिंदी के क्षेत्र में बढ़ते हुए पाठकों को देखकर आकर्षित हो रहा है यह एक बड़े व्यापार को जन्म दे रहा है। विश्व में संस्कृत विषय को भी कंप्यूटर से जोड़ने का शोध किया जा रहा है। संस्कृत भाषा कंप्यूटर के लिए गुणकारी है जो अंग्रेजी से भी सटीक और कारगर है। इस पर नासा जैसे बड़ी संस्थाएं कार्य कर रही है और अपने वैज्ञानिक शोध को संस्कृत में ही संपन्न कर रही है।
साहित्य समाज का दर्पण है
माना जाता है जो समाज में घटता है वह साहित्य का विषय बनता है अर्थात साहित्य को समाज का दर्पण कहना अन्योक्ति नहीं होगा।
हिंदी साहित्य ने लोगों को अपनी ओर खूब आकर्षित किया।
इसका पाठक प्रत्येक वर्ग से था।
इससे पूर्व जहां उच्च कुलीन तथा संभ्रांत परिवार साहित्य का अध्ययन करते थे।
हिंदी साहित्य के आगमन से इसने जनसामान्य तक अपनी पहुंच बना ली।
अनेकों साहित्य का अनुवाद हिंदी भाषा में किया गया
- नाटक,
- कहानी,
- उपन्यास
- कथा यात्रा वृतांत
- तथा दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले पारिवारिक धारावाहिक
ने जन सामान्य को हिंदी भाषा से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई।
प्रेमचंद जिन्हें कथा कहानी का सम्राट कहते हैं उन्होंने निम्न तथा कृषक समाज को अपने साहित्य में शामिल कर उनके मान को बढ़ाया था। उनका संपूर्ण साहित्य अध्ययन करें तो स्पष्ट होता है उन्होंने अपने साहित्य का कथानक निम्न तथा मध्यम वर्गीय तक सीमित रखा था जिसमें उनका अमर उपन्यास गोदान एक कृषक समाज का महाकाव्य माना गया है।
राष्ट्रीय हिंदी दिवस 10 जनवरी
हिंदी दिवस तथा राष्ट्रीय हिंदी दिवस में भिन्नता है। हिंदी दिवस जहां भारत में 14 सितंबर को मनाया जाता है, वहीं राष्ट्रीय हिंदी दिवस 10 जनवरी को संपूर्ण विश्व में मनाया जाता है।
जिसका उद्देश्य संपूर्ण विश्व में हिंदी साहित्य तथा भाषा का प्रचार प्रसार करना है।
लोगों को हिंदी विषय में जागरूक करना है।
इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए 10 जनवरी को राष्ट्रीय हिंदी दिवस तथा 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
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हिंदी दिवस उपसंहार
हिंदी दिवस मनाने का उद्देश्य हिंदी को व सम्मान दिलाना है जिसका वह अधिकारी है। हिंदी की लोकप्रियता आज पूरे विश्व में है विश्व के अनेकों देश हिंदी भाषा में अध्ययन कर रहे हैं। भारत आज विश्व के लिए उम्मीदों का देश है, यहां पर निरंतर व्यापार की उपलब्धता ने विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा है।
यहां के कामकाज और बोलचाल की भाषा हिंदी होने के कारण आज विदेशी मोटे पैसे देकर हिंदी भाषा को सीख रहे हैं। हिंदी में साहित्य अध्ययन करने वाले पाठक गुणात्मक में रूप से निरंतर बढ़ते जा रहे हैं, जो विश्व के लिए एक व्यापार का माध्यम है। आज ऑनलाइन पोर्टल पर अध्ययन में सामने आया है कि आगामी कुछ वर्षों में हिंदी पाठक विश्व के सभी भाषाओं से ज्यादा होंगे। अर्थात विश्व के लिए यह एक बाजार का विषय है। जिसमें वह अपने विभिन्न उत्पादों का प्रचार-प्रसार कर सकते हैं, अपने उत्पादों को बेच सकते हैं। आज विश्व के महंगे-महंगे उत्पाद भारत में हाथों-हाथ बिक जाते हैं, जो विदेशों में भी इतना आसान नहीं है।
एक उदाहरण के लिए देखें तो एप्पल जो अमेरिका की कंपनी है।
उसके उत्पाद सर्वाधिक भारत में ही बिकते हैं, वह भी हाथों हाथ।
ऐसे भारत को कौन अपना व्यापार का माध्यम नहीं बनाना चाहेगा।
इसलिए आज पूरे विश्व में हिंदी की उपयोगिता बढ़ती जा रही है।
भारत अंग्रेजी मोह-माया से निकलकर आज अपने सभी क्रियाकलाप हिंदी में ही करने लगा है।
इंटरनेट का प्रयोग भी वह हिंदी में ही करते हैं, यहां तक की सभी सामग्रियों आज हिंदी में मौजूद होने के कारण उनकी रूचि इस क्षेत्र में और बढ़ती जा रही है।
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