हरिशंकर परसाई मुख्य रूप से व्यंग्यकार थे उन्होंने समाज के भीतर विसंगतियों तथा कुरीतियों, अन्याय, अत्याचार को देखकर अपने लेख में व्यंग्य के माध्यम से उजागर किया है तथा सामान्य जन और अफसरशाही लोगों को सोचने पर विवश किया है।
उनके काव्य रोचक और विसंगतियों को उजागर करते हुए प्रतीत होते हैं, जो पाठकों को जोड़ें रखता है भोलाराम का जीव उन्हें लेखों में से एक है।
भोलाराम का जीव ( हरिशंकर परसाई )
नई कहानी की अंतर्वस्तु के विस्तार की दृष्टि से अपने समकालीन में ‘हरिशंकर परसाई’ की अपनी अलग ही पहचान है।उनकी कहानियों में स्त्री-पुरुष संबंधों को लेकर ना कोई उलझाव है और ना ही शिल्प की बारीकियों के प्रति कोई विशेष आग्रह।
उनकी कहानियों में राजनीतिक, भ्रष्टाचार और सामाजिक विसंगतियों के प्रति तीखी आलोचनात्मक दृष्टि परिलक्षित होती है।सूक्ष्म व्यंग का कुशल प्रयोग परसाई को अन्य रचनाकारों से अलग, एक विशिष्ट पहचान देता है।
हरिशंकर परसाई अपने रचनाकर्म को सामाजिक दायित्व के रूप में स्वीकार करते हैं। सच्चे साहित्य के लिए वह सामाजिक अनुभव को ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं।इनकी कहानियों में सामाजिक दृष्टि और अंतर्वस्तु की व्यापकता स्पष्ट दिखाई देती है।
धनंजय वर्मा ने लिखा है कि उनमें आदमी की चौतरफा आजादी के लिए क्रांतिकारी चेतना स्पंदित है।समकालीन जीवन यथार्थ का शायद ही कोई पक्ष बचा हो जिसकी विसंगति और अंतर्विरोध को परसाई ने उद्घाटित न किया हो।
उन्होंने कहानी के संबंध पर विशेष ध्यान न देकर अपनी बात को अधिकतम और नुकीला बनाकर प्रस्तुत किया है। इसलिए उनके यहां ‘व्यंग्य की प्रधानता’ दिखाई देती है।
भोलाराम का जीव हरिशंकर परसाई की एक ऐसी कहानी है जिसमें व्यंगचित्र की मार स्पष्ट झलकती है। इस कहानी में सामाजिक विसंगतियों के साथ-साथ प्रशासनिक स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार को केंद्र में रखा गया है।
सरकारी कार्यालय में भ्रष्टाचार लापरवाही और सिफारिश का जो आलम है उसे व्यंग्य – विनोद के सहारे ‘भोलाराम का जीव’ में अभिव्यक्त किया गया है। भोलाराम का जीव धर्मराज के दरबार में इसलिए नहीं प्रस्तुत हो पाता, क्योंकि वह पेंशन की दरख्वास्तों के बीच कहीं अटका पड़ा है।
परसाई मुलतः एक व्यंग्यकार है सामाजिक विसंगतियों के प्रति गहरा सरोकार रखने वाला लेखक ही सच्चा व्यंगकार हो सकता है।
इतिहास, पुराण, लोक कथा और फैंटेसी का परसाई ने जमकर उपयोग किया है।
इस तरह वे अतीत का उपयोग वर्तमान के यथार्थ को उजागर करने के लिए ही करते हैं। उनका समूचा साहित्य वर्तमान से मुठभेड़ करता हुआ दिखाई देता है।
हसन अली मंटो के अनुसार- ‘ व्यंग्यकार ईट पत्थर मारता है मगर सलीके से ‘।
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निष्कर्ष –
समग्र अध्ययन करने से स्पष्ट होता है कि भोलाराम का जीव सरकारी तंत्र की असफलता को उजागर करता है।हरिशंकर परसाई ने इस कहानी के माध्यम से सरकारी भ्रष्टाचार तथा खोखली व्यवस्था को भी उजागर किया है।
किस प्रकार एक ईमानदार और सच्चा व्यक्ति सरकारी भ्रष्टाचार के जाल में फंस जाता है, कि उसकी मुक्ति मरने के बाद भी नहीं हो पाती।
आज लोगों की पीड़ा का एक बड़ा कारण यह है कि उनका कोई भी काम बिना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़े नहीं हो पाता जिसके कारण उन्हें भी भ्रष्टाचार का भागी बनना पड़ता है।