Guru Nanak Dev ji ki Kahani in Hindi

नानक देव जी की प्रसिद्ध कहानियां इस लेख में पढ़ेंगे जिससे आपके जीवन को एक नई दिशा मिलेगी उनके जीवन संघर्ष तथा समाज कल्याण की भावना अद्भुत अकल्पनीय थी समाज सेवा के लिए उन्होंने अपना सर्वस्व न्योछावर किया आज उन्हें देवता या देव तुल्य मानते हैं

गुरु नानक देव जी की प्रसिद्ध कहानियां

जब गुरु नानक देव जी 12 वर्ष की आयु के थे, उनके पिताजी ने उन्हें ₹20 देकर कहा

यह ₹20 लो और कोई सच्चा सौदा करके आओ!

गुरु नानक जी व्यापार करना नहीं जानते थे, वह यह भी नहीं जानते थे कि ₹20 के ₹40 कैसे बनाए जाए। उन्होंने अपनी अध्यात्म बुद्धि का प्रयोग किया।

जब वह ₹20 लेकर विचार करते हुए जा रहे थे, तभी उन्हें राह में भूख-प्यासे गरीब जरूरतमंद लोग दिखाई दिए।उन्हें काफी समय से भोजन नहीं मिला था। उनकी अवस्था को देखकर नानक जी नजदीक से खाने-पीने का सामान ले आए और उन जरूरतमंद लोगों को भोजन कराया।

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इस कार्य में उनके ₹20 खर्च हो गए, अब उनके पास व्यापार करने के लिए रुपए नहीं थे। अतः वह घर खाली हाथ लौट आए।

जब वह घर लौट कर आए तो उनके पिताजी ने पूछा-

क्यों बेटा कर आए सच्चा सौदा?

नानक जी ने तत्काल जवाब दिया जी हां बिल्कुल सच्चा सौदा करके आया हूं!

पिता- पर क्या सौदा किया और क्या लेकर आए हो जरा दिखाओ!

नानक जी- राह में भूखे प्यासे जरूरतमंद लोग थे उन्हें भरपेट भोजन कराया, इसी कार्य में सभी पैसे समाप्त हो गए। मुझे जरूरतमंद की सेवा से बड़ा सच्चा सौदा कुछ और नहीं लगा जो ईश्वर की सेवा के समान था। इस जन्म की सेवा से मेरा ईश्वर प्रसन्न हो यही मेरे लिए सच्चा सौदा है।

नानक जी के जवाब से उनके पिताजी बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंने अपने पुत्र में उन सभी मानवीय गुणों को देख लिया था जो एक सच्चा व्यक्ति बनाने के लिए होना चाहिए।

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मेहनत का स्वाद

गुरु नानक देव जी अपने शिष्यों के साथ धर्म चर्चा के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान जाया करते थे। इसी क्रम में उन्हें एक गांव और शहर के बीच का स्थान प्राप्त हुआ, जहां विशाल भव्य मंदिर था। गांव और शहर के लोग यहां बड़े-बड़े अनुष्ठान किया करते थे। गुरु नानक देव जी वहां रुके उनके रुकने की खबर चारों ओर फैली। उनसे मिलने शहर के बड़े-बड़े सेठ आए और गांव के गरीब तथा मेहनत मजदूरी करके अपना जीवन यापन करने वाले व्यक्ति भी आए। दिन भर ज्ञान चर्चा होती रही, रात्रि के भोजन का निमंत्रण शहर के साहूकार तथा गांव के रामसेवक की ओर से आया जो मध्यम वर्गीय था।

दोनों ने अपने सामर्थ्य अनुसार गुरुदेव के लिए भोजन की व्यवस्था की। रामसेवक अपनी पत्नी के साथ कुछ पकवान ले आया था, वही साहूकार ने अनगिनत पकवान नानक जी को भेंट किया।

नानक जी दोनों के स्वागत सत्कार से प्रसन्न हुए उन्होंने धीरे धीरे कर रामसेवक के लाए हुए पकवानों से अपना भोजन पूरा किया। साहूकार देखता रहा जिसे ईर्ष्या हो रही थी कि नानक देव उनके द्वारा लाए हुए व्यंजन को नहीं छू रहे।

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जब नानक देव जी भोजन कर उठे तब एक ने शिकायत प्रश्न किया- गुरुदेव मेरे द्वारा लाए गए व्यंजन तो आपने स्पर्श तक नहीं किया वही इस गरीब निर्धन व्यक्ति के द्वारा लाए गए व्यंजन को आपने आनंद पूर्वक खाया, ऐसा क्यों? नानक जी ने कहा तुम्हारे प्रश्न में ही तुम्हारे उत्तर छुपे हैं, गरीब व्यक्ति अपनी ईमानदारी और मेहनत की कमाई से व्यंजन में आया था, जिसमें प्रसाद की अनुभूति हो रही थी। वही तुम्हारे द्वारा लाए गए व्यंजन ईर्ष्या और अहंकार के भाव प्रदर्शित कर रहे थे, इसलिए मेहनत के स्वाद का आनंद मैंने पाया।

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बासी भोजन का रहस्य

शहर से दूर प्रकृति की गोद में एक महात्मा का आश्रम था। महात्मा वहां अपने शिष्यों को उनके रुचि के स्तर से शिक्षा दिया करते थे। उनकी शिक्षा से सभी लोग प्रसन्न रहते थे। महात्मा की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी , लोग उनसे शास्त्रार्थ करने और उनके प्रवचन सुनने कई दिनों का मार्ग तय करके महात्मा के आश्रम आया करते थे।

एक धनी सेठ महात्मा के आश्रम में पधारे और महात्मा के प्रवचनों को सुनकर वह मंत्रमुग्ध हो गए। प्रवचन इतने हृदयस्पर्शी थे कि सेठ महात्मा के वचनों को बड़े ही तल्लीनता और एकाग्रता से सुन रहे थे। जब प्रवचन समाप्त हुआ तो , सेठ ने महात्मा को अपने घर भोजन का न्योता दिया।  महात्मा ने काफी अनुनय विनय के बाद सेठ का निवेदन स्वीकार किया। किंतु महात्मा के अनुयायियों ने सेठ को स्पष्ट बता दिया कि महात्मा केवल ताजा भोजन करते हैं।  अतः महात्मा के लिए ताजा भोजन का ही प्रबंध किया जाए।

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तय समय पर महात्मा अपने अनुयायियों के साथ सेठ के घर अतिथि रूप में उपस्थित हुए। सेठ ने महात्मा से बताया उनके पूर्वज उनके लिए इतना धन संपत्ति छोड़ गए हैं कि किसी को और को कमाने अथवा श्रम करने की कोई आवश्यकता नहीं। बैठे – बैठे सात पुस्ते खा सकती हैं , फिर भी धन की कोई कमी नहीं होगी महात्मा बात सुनते रहे।

भोजन का समय हुआ महात्मा के समक्ष अनेकों प्रकार के भोजन उपस्थित किए गए। महात्मा ने सेठ से कहा हमने तुम्हें पहले ही बताया था कि हम बासी भोजन नहीं करते हैं। सेठ आश्चर्यचकित रह गया और कहा महात्मा इन व्यंजनों के लिए कई घंटों की मेहनत लगी है , तब जाकर यह व्यंजन तैयार हुए हैं, यह ताजे व्यंजन है।

महात्मा ने कहा यह व्यंजन ताजे तब होते जब तुम्हारे द्वारा कमाए गए धन से बने होते। यह व्यंजन तुम्हारे पूर्वजों के धन से बनाया गया है , इसलिए यह भोजन मेरे लिए बासी के समान है। यह कहते हुए महात्मा अपने अनुयायियों के साथ बिना भोजन किए अपने आश्रम आ जाते हैं।

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निष्कर्ष

गुरु नानक देव जी धार्मिक होने से पहले वह सामाजिक थे, उन्होंने समाज के उत्थान उसकी रक्षा के लिए पूरा जीवन प्रयत्न किया। गुरु जी ने सभी को खुले हृदय से अपनाया चाहे वह किसी भी वर्ग का हो। उन्होंने दीन दुखियों की सेवा आरंभिक जीवन से ही आरंभ कर दी थी, जिसके कारण वह ईश्वर के रूप में स्थापित हुए। उनकी पूजा उनके कर्मों के आधार पर ही की जाती है। केवल कुछ धर्म ही नहीं अपितु सभी धर्म के लोग उन्हें ईश्वर का अवतार मानते हैं, उनके सच्चे हृदय से किए गए कार्यों को स्वीकार करते हैं। उनका नेक काम दीन दुखियों की सेवा के लिए ही समर्पित रहा करता था।

आशा है उपरोक्त कहानियों के माध्यम से आप गुरु नानक देव जी के जीवन तथा उनके उद्देश्यों से परिचित हो सके होंगे। अपने सुझाव तथा विचार कमेंट बॉक्स में लिखें जिससे हम इस लेख को और अधिक सुधार के साथ प्रस्तुत कर सकेंगे।

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