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यात्रा साहित्य एवं यात्रा वृतांत
साहित्य’ मनोवृति का घुमक्कड़ है। जब सौंदर्यबोध की दृष्टि से उल्लास भावना से प्रेरित होकर यात्रा करता है , और उसकी मुक्त भाव से अभिव्यक्ति करता है उसे यात्रा साहित्य / यात्रा वृतांत कहते हैं। मानव प्रकृति व सौंदर्य का प्रेमी है। वह साहित्य की भांति घुमक्कड़ स्वभाव का है , जहां भी जाता है वहां से साहित्य की भांति कुछ-न-कुछ ग्रहण करता है। उसके द्वारा ग्रहण किये गये प्रेम , सौंदर्य , भाषा , स्मृति आदि को अपने शुद्ध मनोभावों से प्रकट करता है। जो साहित्य में समाहित होकर एक नई विधा का रूप ले लेता है। यह यात्रा मानव आदि – अनादि काल से करता आ रहा है। किंतु साहित्य में यह कला नवीन है जो ‘ निबंध शैली ‘ का एक नया रूप है जिसे ” यात्रा वृतांत ” कहते हैं।
इस साहित्य विधा के पीछे का उद्देश्य लेखक के रमणीय अनुभवों को हु – बहू पाठक तक प्रेषित करना है। जिसके माध्यम से पाठक उस अनुभव को आत्मसात कर सके उसे अनुभव कर सके।
आदिकाल का विश्लेषण
आदिकाल में भी यात्रा का अधिक महत्व था। लेखक एक दूसरे देश में घूमा करते थे , और अपने अनुभव को घूम – घूम कर लोगों को बताया करते थे। नौका यात्रा की एक होड़ लग गई थी। नौका से एक – दूसरे देश को ढूंढने , भ्रमण करने का प्रचलन था। इस यात्रा में लेखक एक – दूसरे संस्कृति से परिचित होते थे शिक्षा व धर्म का प्रचार – प्रसार करते थे , अपने अनुभव को पुस्तक में सँजोते थे।
मुख्य यात्री थे – अलबरूनी , इब्नबतूता , अमीर खुसरो , हेनसांग , फाहियान , मार्कोपोलो , सेल्यूकस निकेटर आदि।
विदेशी यात्रियों – ‘ फाहियान ‘ , ‘ हेन सॉन्ग ‘ इत्यादि ने भी अपने यात्रा विवरण प्रस्तुत किए हैं।
उनके यह विवरण ज्ञान के भंडार तो कहे जा सकते हैं , पर यात्रा साहित्य नहीं। संस्कृत साहित्य में ‘ कालिदास ‘ और ‘ बाणभट्ट ‘ के साहित्य में भी आंशिक रूप से यात्रा वर्णन मिलता है। ऐसे विवरणों में लेखक के व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति बहुत कम हो पाती है। वह एक तटस्थ दृष्टा के रूप में देखता है और लिख देता है। प्रकृतिगत विशेषताएं प्रतिबिंबित हो उठती है , यही कारण है कि आधुनिक यात्रा साहित्य का विकास शुद्ध निबंधों की शैली से माना जाता है।
निबंध शैली में व्यक्ति परखता , स्वच्छंदता , आत्मीयता आदि गुण यात्रा साहित्य में पाए जाते हैं। यात्रा साहित्य विविध शैलियों में लिखा जाता है जो विविध रूपों में पाया जाता है।
कुछ यात्रा साहित्य ऐसे होते हैं जिनका उद्देश्य विभिन्न देशों या स्थानो का विस्तृत परिचय देना होता है –
- राहुल सांकृत्यायन का ‘ हिमालय परिचय ‘ , ‘ किन्नर देशों में ‘ और
- शिवनंदन सहाय का ‘ कैलाश दर्शन ‘ इसी प्रकार के यात्रा वृतांत हैं
- कुछ यात्रा साहित्य का उद्देश्य देश – विदेश के व्यापक जीवन को उभारना होता है। इसमें
- यशपाल का ‘ लोहे की दीवार के दोनों ओर ‘ ,
- गोविंद दास का ‘ सुंदर दक्षिण – पूर्व ‘ आदि प्रसिद्ध है।
आधुनिक युग ( भारतेंदु युग )
मुख्य रूप से भारतेंदु के युग को ही यात्रा साहित्य का आरंभ काल माना जा सकता है। भारतेंदु ने खड़ी बोली का विकास कर कितने ही नवीन साहित्य को जन्म दिया। यह बोली जन – जन की बोली थी।
यही कारण है कि साहित्य की पहुंच एक आम व्यक्ति तक हुई।
भारतेंदु के युग को हिंदी साहित्य का जन्मकाल कहे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
मुख्य रचनाएं – हरिद्वार , लखनऊ , जबलपुर , रायपुर , वैद्यनाथ की यात्रा आदि उनके काल में प्रकाशित हुई थी।
उनके द्वारा संपादित पत्र पत्रिकाओं में यात्रा का अधिक महत्व था।
मुख्य रचनाएं व लेखक –
- दामोदर दास शास्त्री – ‘ मेरी पूर्व दिग्यात्रा ‘ (1885)
- देवी प्रसाद खत्री – ‘ रामेश्वर यात्रा ‘ (1893)
- शिव प्रसाद गुप्त – ‘ पृथ्वी प्रदक्षिणा ‘ (1924)
- स्वामी सत्यदेव – ‘ मेरी कैलाश यात्रा ‘ (1915) , ‘ मेरी जर्मन यात्रा ‘ (1926)
- कन्हैयालाल मिश्र – ‘ हमारी जापान यात्रा ‘ (1931)
- राम नारायण मिश्र – ‘ यूरोप यात्रा के छह मास। ‘
स्वतंत्रता पूर्व (जयशंकर प्रसाद)
जो साहित्य की नींव भारतेंदु ने रखी थी वह जयशंकर प्रसाद के युग में फलता-फूलता वृक्ष बन गया था। ‘ नाटक ‘ , ‘ यात्रा ‘ , ‘ उपन्यास ‘ , ‘ निबंध ‘ , ‘ कहानी ‘ आदि क्षेत्रों में यह काफी विकास कर चुका था। जयशंकर प्रसाद को “भारतेंदु का उत्तराधिकारी” कहे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस काल ने स्वतंत्रता आंदोलन के लिए प्रयत्न भी किया है और स्वतंत्रता प्राप्ति को देखा भी है। इस युग में ‘ केदारनाथ ‘ , ‘ नागार्जुन ‘ , ‘ राहुल सांस्कृत्यायन ‘ मुख्य यात्रा लेखक थे।
राहुल सांकृत्यायन का योगदान यात्रा साहित्य में अद्वितीय व अग्रणी है।
उन्होंने भारत ही नहीं भारत के आस – पास वह अन्य देशों में भी भ्रमण किया। उनकी यह यात्रा कई बार जानलेवा भी साबित हुई , किंतु वह उससे बच गए। वह दुर्गम घाटी , दर्रा , पहाड़ी , पठार आदि पर भी यात्रा करने से नहीं हिचकिचाते थे।
राहुल सांकृत्यायन के अनुसार –
“जिसने एक बार घुमक्कड़ धर्म अपना लिया, उसे पेंशन कहां, उसे विश्राम कहां ? आखिर में हडि्डयां कटते ही बिखर जाएंगी।” आजीवन यायावर रहे।
उनकी रचना –
- ” मेरी तिब्बत यात्रा ” ,
- ” मेरी लद्दाख यात्रा ” ,
- ” किन्नर देश में ” ,
- ” रूस में पच्चीस मास ” ,
- ” तिब्बत में सवा वर्ष ” ,
- ” मेरी यूरोप यात्रा ” प्रसिद्ध है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद (अज्ञेय युग)
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अज्ञेय व उनके द्वारा बनाया गया ” तार सप्तक ” के कवियों ने हिंदी साहित्य को कई प्रकार के बंधनों से मुक्त कर उन्हें नया आयाम वह दिशा दिखाया।
साहित्य के क्षेत्र में लोगों को आकर्षित किया।
अज्ञेय ने ‘ यात्रा वृतांत ‘ के क्षेत्र में विशेष योगदान दिया उनका मानना था कि- “यायावर को भटकते हुए चालीस बरस हो गए, किंतु इस बीच न तो वह अपने पैरों तले घास जमने दे सका है, न ठाठ जमा सका है, न क्षितिज को कुछ निकट ला सका है… उसके तारे छूने की तो बात ही क्या।…यायावर न समझा है कि देवता भी जहां मंदिर में रूके कि शिला हो गए, और प्राण संचार की पहली शर्त है कि गति:गति: गति।”
उनके द्वारा रचित यात्रा वृतांत –
” अरे यायावर रहेगा याद “( 1953 ) , “एक बूंद सहसा उछली ” ( 1964 ) चित्रात्मक व वर्णात्मक शैली में प्रस्तुत कर यात्रा साहित्य को नया आयाम दिया।
मुख्य लेखक व कृतियां –
- रामवृक्ष बेनीपुरी – ” पैरों में पंख बांधकर ” (1952) , ” उड़ते चलो उड़ते चलो” |
- यशपाल – ” लोहे की दीवार ” (1953)
- भगवतशरण उपाध्याय – ” कोलकाता से पैकिंग तक ” (1953) , ” सागर की लहरों पर ” ( 1959)
- प्रभाकर माचवे – ” गोरी नजरों में हमें ” ( 1964 )
- मोहन राकेश – ” आखिरी चट्टान तक ” ( 1953 )
- निर्मल वर्मा ” चीड़ों पर चांदनी ” (1964)
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यात्रा साहित्य में यात्री अपने यात्रा के प्रत्येक स्थल और क्षेत्रों में से उन्हीं क्षेत्रों का संयोजन करता है जिनको वह अद्भुत सत्य के रूप में ग्रहण करता है। बाहरी जगत की प्रतिक्रिया से उसके हृदय में जो भावनाएं उमड़ती है , वह उन्हें अपनी संपूर्ण चेतना के साथ अभिव्यक्त कर देता है , जिससे शुष्क विवरण भी मधुर और भाव विभोर कर देने वाला बन जाता है।
पाठक एक साथ इतना तदात्म्य स्थापित कर लेता है , फिर वह स्वयं उस आनंद को प्राप्त करने के लिए तड़प उठता है। इस विषय में उल्लेखनीय है कि यात्रा साहित्य के लेखक को संवेदनशील होकर भी निरपेक्ष होना चाहिए अन्यथा यात्रा के स्थान पर यात्री के प्रधान हो उठने की संभावनाएं बढ़ जाती है , तथा वह अभिव्यक्त यात्रा साहित्य न रहकर आत्म चरित्र या आत्म स्मरण बन जाता है।
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हमें यह जानकर खुशी हुई अभिषेक तिवारी जी
साहित्य एवं साहित्य विधा की अति रोचक ढंग से प्रस्तुति है। बहुत ही सुन्दर लगी।
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अत्यंत ज्ञानवर्धक, रोचक एवं परिमार्जित ब्लॉग है-हिंदी विभाग डॉट कॉम। इस ब्लाग को मेरी तरफ से विशेष बधाइयां। अनेकानेक कठिन प्रतीत होने वाले हिंदी साहित्य एवं भाषा संबंधी ज्ञान, अत्यंत मनोरंजक अर्थात रोचक एवं सरस, चित्रोपम ढंग से प्रस्तुत किया गया है। निश्चित रूप से ब्लॉगर महोदय बधाई के पात्र हैं।,-दिनेश कुमार मिश्र स्नेही
दिनेश कुमार मिश्र जी
आपका हृदय से आभार ।आप जैसे पाठक यदि हिंदी विभाग को प्रेरित करते रहेंगे और मार्गदर्शन करेंगे तो निश्चित रूप से हिंदी विभाग एक श्रेष्ठ दिशा में आगे बढ़ेगा । आपके सुझाव और मार्गदर्शन का हम सदैव प्रतीक्षा करते हैं , आपका यह संदेश हिंदी विभाग के लिए अभूतपूर्व है इसके लिए हिंदी विभाग आपका आभारी है।
सागर कन्या और खग सावक की उदेश्य मुल सामवेदना तत्त्व के आधार पर मुल्यांकन
यह उत्कृष्ट कोटि का ब्लॉग है।इससे हिंदी साहित्य को बढ़ावा मिलेगा। आजकल जो हिंग्लिश चलन पर है ,उससे हिंदी साहित्य को काफी ठेस पहुंची है ।यह ब्लॉग हिंदी भाषियों की कसौटी पर खरा उतरता है।
बहुत ही सुंदर तरह से हमें यात्रा साहित्य की जानकारी दी है
किसी भी ऐतिहासिक इमारत की यात्रा कर उस पर यात्रा वृतांत लिखो।