मुंशी प्रेमचंद को कलम का सिपाही कहा गया है, उन्होंने उपन्यास तथा कहानी के क्षेत्र में अद्वितीय कार्य किया है। गोदान उपन्यास मध्यम वर्गीय समाज का महाकाव्य है। इस उपन्यास में मुंशी जी ने उन सभी पहलुओं पर विचार किया है जो मध्यमवर्गीय तथा निम्न वर्गीय समाज में घटित होता है। किस प्रकार अमीर और गरीब के बीच की खाई हे जो कभी भरी नहीं जा सकती, उसका मर्म उकेरने का प्रयास किया है।
निम्न वर्ग किस प्रकार सामंती व्यवस्था में फंसकर आजीवन रह जाता है। सामंती मकड़जाल में निम्नवर्ग की आने वाली पीढ़ी भी फंसी रहती है। प्रस्तुत लेख में हम उन्हें बिंदुओं पर विचार करेंगे।
गोदान की मूल समस्या
डॉ नगेंद्र ने अपने प्रेमचंद नामक लेख में यह बात अच्छी तरह स्पष्ट की है कि, प्रेमचंद के संपूर्ण साहित्य पर आर्थिक समस्याओं का प्रभुत्व है
प्रेमचंद का हिंदी विषय में पहला समस्या मूलक उपन्यास है सेवासदन विद्वानों ने इसे वेश्या समस्या पर लिखा हुआ उत्कृष्ट उपन्यास माना है।
गोदान में प्रेमचंद यथार्थ के ठोस भूमि पर खड़े हुए हैं। ‘गोदान’ में मुख्य रूप से आर्थिक समस्या का ही चित्रण किया गया है।आरंभ में ही होरी तथा धनिया का ही चित्रण किया गया है। ‘गोदान’ के आरंभ में ही होरी तथा धनिया के अभाव ग्रस्त जीवन का यथार्थ चित्र प्रेमचंद ने अंकित किया है। पेट की चिंता के कारण धनिया 36 वर्ष की उम्र में ही बूढी बन गई है उसके तीन लड़के ठीक-ठीक दवा-दारू ना होने से मर जाते हैं।
उपर्युक्त प्रसंग से प्रेमचंद केवल ‘ होरी ‘ की ही दुर्दशा का खाका नहीं प्रस्तुत करते बल्कि वह समस्त कृषक वर्ग की आर्थिक समस्या का यथार्थ चित्र प्रस्तुत करना चाहते हैं। भारतीय किसान की आर्थिक समस्या को उग्र बना देने वाले अनेक कारण है इन सब में प्रमुख है जमींदार।
‘गोदान’ की आर्थिक समस्या का समाधान सूचित करने वाला पहला पात्र है धनिया।’गोदान’ पढ़ते समय पाठक बार-बार यही अनुभव करता है कि होरी यदि धनिया की नीति से काम लेता तो शायद उसकी इतनी दुर्दशा ना होती।
इस समस्या के समाधान की ओर संकेत करने वाला दूसरा पात्र है गोबर जो किसान की आने वाली पीढ़ी का प्रतीक है। वह किसान बनकर आजीवन आर्थिक विषमता से पीड़ित रहने की अपेक्षा शहर में जाकर मजदूर बनना पसंद करता है उसे होरी का जमींदार के सामने दबना तथा लाचार होना पसंद नहीं है।
कृषकों की समस्या का उत्तर देने वाला तीसरा पात्र है रूपा का पति ‘रामसेवक’ वह भी गोबर के ही समान किसानों की अगली पीढ़ी का प्रतिनिधित्व कर रहा है तथा एक संगठन बनाता है। प्रेमचंद आर्थिक विषमता को समाज का एक सबसे बड़ा अभिशाप मानता है।
गोदान की विस्तृत जानकारी
“धनी को अपने धन का मद रहता है, अहंकार रहता है, परंतु गरीब की झोपड़ी में, मद और अहंकार के लिए स्थान नहीं रहता……………….प्रेमचंद
” मनुष्य जितना छोटा होता है उसका अहंकार उतना ही बड़ा होता है …………………वाल्टेयर
प्रारम्भिक युग में स्वयं प्रेमचंद आदर्शवाद तथा सुधारवाद से कितने प्रभावित थे। इसके प्रभाव उनकी पंच परमेश्वर, बडे घर की बेटी, मंत्र जैसी कहानियों तथा सेवासदन, प्रेमाश्रम आदि उपन्यासों में मिलते हैं।
गबन उपन्यास से वे यथार्थवाद की ओर झुकने लगे और गोदान तक आते-आते वह पूर्ण रूप से यथार्थवादी बन गए।
डॉ नगेन्द्र ने लिखा है -“प्रेमचंद ने अपने युग की ज्वलंत समस्याओं को अपने उपन्यास तथा कहानियों में महत्वपूर्ण स्थान दिया है”।
प्रेमचंद ने युगीन जीवन की सभी महत्वपूर्ण समस्याओं जैसे विधवा समस्या, वेश्या समस्या, कृषक समस्या, सांप्रदायिकता की समस्या, अछूत समस्या आदि का चित्रात्मक वर्णन किया है।
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