जंतर मंतर
संसद मार्ग से कनाट प्लेस की ओर चलने पर कुछ ही दूरी पर स्थित है। महाराजा जयसिंह द्वितीय की वेधशाला जिसमें गुलाबी आभा लिए अनेक विचित्र निर्माण स्थित है। राजा जयसिंह द्वितीय की खगोल शास्त्र के प्रति ललक इतनी अधिक थी कि उन्होंने इस वैद्यशाला के निर्माण से पहले अपने विद्वानों को विदेश में भेजा था , ताकि वह विदेशी वेधशालाओं के बारे में अध्ययन कर सकें। सन 1725 में इस वैद्यशाला का निर्माण हुआ था और इस वैद्यशाला का प्रमुख आकर्षण स्थल सूर्य की घड़ी है जिसे धूप घड़ीयों के राजकुमार के नाम पर भी जाना जाता है।
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जंतर-मंतर पहली नजर में विचित्र ढांचों का सिर्फ एक समूह सा लगता है , पर वास्तव में हर निर्माण का अपना एक विशेष उद्देश्य है। जैसे कि सितारों की सही स्थिति को जानना या ग्रहों की गणना करना। राजा जयसिंह ने जयपुर , वाराणसी तथा उज्जैन में भी वैद्यशाला ने बनवाई थी। मथुरा स्थित पांचवी वैद्यशाला अब नहीं है।
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