पर्यावरण की रक्षा। ग्लोबल वार्मिंग। ताप वृद्धि का कारण।Global warming

प्रकृति और पर्यावरण के साथ मानव ने इतनी छेड़छाड़ की है कि , वह बदला लेने पर उतर आए हैं। प्रकृति बारंबार अपना रौद्र रूप दिखला कर धरती पर विनाश उपस्थित कर रही है। मानव ने ही गत 28 वर्षों में प्रकृति का असीमित शोषण कर इस विनाश को आमंत्रित किया है।

यदि ” तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा ” के भाव से प्रकृति का विवेकपूर्ण दोहन होता शोषण नहीं तब यह समस्या उपस्थित न होती। पर हमने पृथ्वी , जल , वायु , आकाश सबको दूषित कर डाला। प्रदूषण से मुक्ति दिलाने वाले वृक्षों को काट डाला , भूगर्भ के जल को असीमित उपयोग किया, व्यक्तिगत , सामाजिक , औद्योगिक सभी स्तरों पर प्रदूषक तत्व पर्यावरण में उड़ेला परिणाम विनाशकारी ही होना था।

बाल्मीकि रामायण

इस तथ्य पर प्रकाश डालती है कि उस काल में प्रकृति की कैसी प्रेमपूर्ण सेवा होती थी रक्षा होती थी। बाली के दुदंभि राक्षस (रावण की पत्नी मंदोदरी का भाई ) को मारकर उसका पर्वत आकार शरीर महर्षि मतंग के आश्रम की ओर फेंका जिससे वहां के कई वृक्ष टूट गए , इस पर वयोवृद्ध मतंग ऋषि ने उसे शराप दिया कि उस क्रम में उसके द्वारा उच्चारित एक श्लोक इस प्रकार है –

” मैंने अपने इस वन की सदा पुत्र की भांति रक्षा की है , जो इसके पत्र और अंकुर का विनाश तथा फल , मूल का अभाव करेंगे। वह अवश्य श्राप के भागी होंगे। ” तो मतंग ऋषि ने वृक्षों को पुत्रवत पाला था पद्म पुराण में वृक्षों को का महत्व बताते हुए कहा गया है 10 कुमाऊं के बराबर एक बावड़ी है , 10 बावरियों के समान एक तालाब है , 10 तालाबों के बराबर एक पुत्र है तथा 10 पुत्रों के समान एक वृक्ष है।

पुत्रों को जैसा स्नेह देकर पाला-पोसा जाता है वैसी ही वृक्षों के साथ किए जाने योग्य मानने वाली संस्कृत में वृक्ष विनाश की विकृति अति कष्टकारी है।

जिन पंचतत्व धरती , जल , अग्नि , वायु , आकाश से परमात्मा ने हमारी देह बनाई उन्हें तत्वों को निरंतर प्रदूषित कर हम ईश्वर का ही अपमान करते हैं , और स्वयं को ही प्रदूषित करते हैं। वृक्ष से हम निरंतर लेते हैं , उपभोग करते हैं नष्ट करते हैं , कभी उसे लौटाने कि उसकी क्षतिपूर्ति कि उसे पुनः समृद्ध करने की बात मन में आए उस दिशा में कुछ किया यह प्रश्न स्वयं से पूछे।

 

वृक्षारोपण करें –

निरंतर वृक्षारोपण अपने लगाए पौधे को स्नेहपूर्वक बढ़ाकर के पेड़ बनाने का संकल्प प्रत्येक भारतीय को करना चाहिए वृक्ष होंगे तो वायु शुद्ध होगी वर्षा अधिक होगी इस संकल्प के साथ कुछ अन्य संकल्प भी लेनी चाहिए-

– धूम्रपान द्वारा वायु प्रदूषण तथा स्वास्थ्य नाश नहीं करेंगे
– पॉलिथिन का प्रयोग समाप्त कर पर्यावरण बचाएंगे
– भूगर्भीय जल स्तर का बढ़ाने में मकानों भवनों आदि में जल संग्रहण की व्यवस्था करेंगे
– जल का उपयोग बड़ी कंजूसी से विवेकपूर्ण करेंगे
– पेट्रोल डीजल के वाहनों का न्यूनतम प्रयोग करेंगे
– अधिकारिक साइकिल द्वारा तथा पैदल चलकर पर्यावरण व स्वास्थ्य ठीक रखेंगे

इसी प्रकार के अन्य संरक्षणवादी उपाय सोचने होंगे तथा क्रियांवित करने होंगे ऐसे संकल्पों से क्रियान्वयन से ही प्रकृति प्रसन्न होगी और हमारी रक्षा करेगी वैसे ही जैसे वह राम राज्य में करती थी 11000 वर्षों के राम शासन के दौरान न कभी अकाल पड़ा ना सूखा पड़ा नाबार्ड आईना तूफान प्रकृति हमारे प्रति मधुर मृदु थी क्योंकि हम उसके प्रति अनुरागी थे रक्षा भावी  थे।

यह भी जरूर पढ़ें –

टेलीविजन की उपयोगिता पर प्रकाश डालिए | Importance of television in hindi

अप्रैल फूल क्या है 

नदी तथा जल संरक्षण पर निबंध | River protection

दशहरा निबंध

हिंदी का महत्व – Hindi ka mahatva

मोबाइल फ़ोन पर निबंध | Essay on Mobile phone in Hindi

Beti bachao beti padhao slogan

Best Safety slogan in hindi

Swachh Bharat Abhiyan slogans in hindi

Slogan on environment in Hindi

 

कृपया अपने सुझावों को लिखिए हम आपके मार्गदर्शन के अभिलाषी है | |

 

facebook page hindi vibhag

YouTUBE

 

Sharing is caring

Leave a Comment