काल विभाजन का आधार
- सर्वप्रथम डॉक्टर ‘ जॉर्ज ग्रियर्सन ‘ ने काल का विभाजन किया उन्होंने भक्ति काल को ‘ स्वर्ण युग ‘ कहा किंतु किसी ने ध्यान नहीं दिया।
- मिश्र बंधुओं ने मिश्रबंधु विनोद में हिंदी साहित्य को नौ खंडों में विभाजन किया किंतु इसके साहित्य में प्रमाणिकता का अभाव था।
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने काल का विभाजन चार भागों में किया जो आज तक मान्य है। इन्होंने मिश्र बंधुओं के साहित्य का भी सहारा लिया।
- डॉ श्यामसुंदर दास ने शुक्ल जी के काल विभाजन को मान्यता दी।
- डॉ नगेंद्र ने शुक्ल के काल विभाजन को ही मान्यता दी।
- शुक्ल जी के पश्चात आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने हिंदी साहित्य की भूमिका की रचना की। आचार्य द्विवेदी ने शुक्ल की मान्यताओं को प्रमाणिक रूप से खंडन किया आचार्य द्विवेदी ने ‘ भक्ति आंदोलन ‘ का श्रेय ‘ वैष्णव भक्ति आंदोलन ‘ को दिया।
“भक्ति उपजी द्रवडी लाये रामानंद ”
- ” मैं इस्लाम को नहीं भूला हूं लेकिन ज़ोर देकर कहना चाहता हूं कि अगर इस्लाम ना आया होता तो भी इस साहित्य का बाहर आना वैसा ही होता जैसा आज है। ” आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
- आचार्य रामकुमार वर्मा ने हिंदी साहित्य को 693 से लेकर 1663 तक समेटा।
- डॉ धीरेंद्र वर्मा हिंदी साहित्य काल का विभाजन तीन रूप में करते हैं- १ आदिकाल २ मध्यकाल ३ आधुनिक काल।
नामकरण
आदिकाल ( 1050 से 1375 )
- जॉर्ज ग्रियर्सन चारण काल 700 से 1300
- मिश्रबंधु प्रारंभिक काल
- श्याम सुंदर वीरगाथा काल
- डॉ शुक्ल वीरगाथा काल
- डॉ विश्वनाथ डॉ नगेंद्र वीरगाथा काल
- हजारी प्रसाद द्विवेदी आदि काल 1000 से 1400
- महावीर प्रसाद द्विवेदी बीजवपन काल
- रामकुमार वर्मा चारणकाल राहुल
- संकृत्यायन सिद्ध सामंत काल
रीतिकाल ( 1700 से 1900 )
- जॉर्ज ग्रियर्सन रीति काव्य
- मिश्रबंधु अलंकृत
- विश्वनाथ प्रसाद मिश्र श्रृंगार काल
- रमाशंकर शुक्ल रसाल काल
- आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी रितिकाल तीन भागों में रीतिबद्ध , रीतिसिद्ध , रीतिमुक्त।
भक्ति काल ( 1375 से 1700 )
जॉर्ज ग्रियर्सन स्वर्ण काल
आचार्य रामचंद्र शुक्ल भक्ति काल
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