उपन्यास की संपूर्ण जानकारी ( परिभाषा, विशेषताए, तत्व, तथा भेद )

उपन्यास की संपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए यह पोस्ट पूरा पढ़ें | नाटक ,कथा ,उपन्यास  आदि गद्य की विधाऐं  हैं। साहित्य जगत में गद्य का विशिष्ट महत्व रहा है। गद्य क्षेत्र के पाठक का दायरा विस्तृत है ,मुद्रण के माध्यम से गद्य विधा की प्रसिद्धि व्यापक रूप में हुई है। पद्य विधा जहां शिक्षित और विशिष्ट लोगों के दायरे तक सीमित थी वही गद्य विधा ने अपना दायरा विस्तृत करते हुए जनसामान्य तक पहुंच बनाई क्योंकि इसकी भाषा सरल और जनमानस की भाषा थी। स्वाधीनता आंदोलन में गद्य विधा ने अपना योगदान दिया लोगों तक विचारों के आदान प्रदान सुलभ हो सके।

साहित्य विधा 

उपन्यास दो शब्दों के योग से बना है उप + न्यास = उपन्यास। अर्थात सामने रखी हुई वस्तु जिसे पढ़कर ऐसा प्रतीत हो कि यह हमारी ही कहानी हो हमारे ही शब्दों में लिखी गई हो।

इस विधा में मनुष्य के आसपास के वातावरण दृश्य और नायक आदि सभी मौजूद होते हैं।इसमें मानव चित्र का बिंब निकट रखा गया होता है और जीवन का चित्र  एक कागज पर उतारा जाता है। उपन्यास को मध्यमवर्गीय जीवन का महाकाव्य भी कहा गया है।

उपन्यास का स्वरुप

उपन्यास शब्द उप तथा न्यास शब्दों के मेल से बना है , जिसका अर्थ है निकट रखी हुई  वस्तु। साहित्य के अनुसार उपन्यास वह कृति है जिसे पढ़कर ऐसा लगे कि यह हमारी ही है इसमें हमारी ही जीवन का प्रतिबिम्ब हमारी ही भाषा में प्रयुक्त किया जाता है। उपन्यास आधुनिक युग की देन है तथा इसका हमारी अन्तः व वाहय जगत की जितनी यथार्थ एवं सुन्दर अभिव्यक्ति उपन्यास में दिखाई पड़ती है उतनी किसी अन्य विधा में नहीं।

इसमें युग विशेष के सामाजिक जीवन और जगत की झंकिया संजोई जाती है, मनोवैज्ञानिक सबसे मार्मिक अभिव्यक्ति भी उपन्यास साहित्य में मिलती है।  उपन्यास के द्वारा लेखक पाठक के सामने अपने हृदय की कोई विशेष बात का कोई नविन मत या विचार प्रस्तुत करना चाहता है। साहित्य के जितने रूप विधान होते है उनमे उपन्यास का रूप विधान सर्वाधिक लचीला है। वह परिस्थिति के अनुसार कोई भी रूप धारण कर लेता है। इसलिए इसमें एक दिन एक वर्ष या एक युग की की कथा भी रह हो सकती है|इसमें घटनाये कैसी भी हो परन्तु उसमे तारतम्य सम्बन्ध अवश्य होता है

प्रेमचंद ने उपन्यास को “मानव चरित्र का चित्र कहा है ”

वस्तुतः उपन्यास मानव जीवन का वह वृहद् चित्र है जिमे मानव मन के प्रसादन के अद्भुत शक्ति के साथ उसके सहस्यो के उद्घटान तथा अनन्य की विचत्र क्षमता भी होती है। उपन्यासकार यह कार्य सफल चरित्र – चित्रण के सहारे सम्पन्न करता है।

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उपन्यास के तत्त्व

किसी भी साहित्य को एक नियमबद्ध रूप से लिखा जाता है, उपन्यास के संदर्भ में भी ऐसा ही है। उपन्यास को लिखने से पूर्व उपन्यासकार को उपन्यास के मूलभूत सिद्धांत से परिचित होना चाहिए, तभी वह सफल उपन्यास की रचना कर सकता है।

उपन्यास के प्रमुख तत्व निम्नलिखित है –

१ कथावस्तु

कथा वास्तु उपन्यास का प्राण होता है, इस की कथावस्तु जीवन से सम्बन्धित होते हुये भी अधिकतर काल्पनिक होते है। किन्तु काल्पनिक कथानक स्वाभाविक एवं यथार्थ प्रतीत हो अन्यथा पाठक उसके साथ तादात्म्य (ताल -मेल ) नहीं कर सकता पायेगा।  उपन्यासकार  को यथार्थ जीवन से सम्बन्धित केवल विश्वसनीय और सम्भव घटनाओं को ही अपनी रचनाओं में स्थान देना चाहिए, तथा तथ्यों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए यही गुण उपन्यास को कहानी से अलग करती है।

इसमें एक कथा मुख्य होती है तथा अन्य कथाएँ गौण है जो की मुख्य कथा को गति देती रहती है, किन्तु गौण कथा मुख्य कथा की सहायक तथा विकास करने वाली होनी चाहिए। इसके लिए उसमे गठन का होना आवश्यक है।  तात्पर्य यह है की मुख्य और प्रासंगिक कथाये परस्पर सम्बब्ध कोतुहल और रोचकता के साथ-साथ संगठन भी अनिवार्य है। उपन्यास की सफलता इसी में है कि सभी घटनाये एक सूत्र में पिरोई हुई हो तथा उनमे कारण शृंखला बंध जाए।

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प्रेमचंद कथा जगत एवं साहित्य क्षेत्र

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२ पात्र व चरित्र चित्रण

उपन्यास का मुख्य विषय मानव और उसका चरित्र है उपन्यास में पात्रों का चरित्र – चित्र्ण क्रियाकलापों के द्वारा होना चाहिए इसी में उपन्यास की सफलता है वैसे उपन्यासकार अपनी और से भी चरित्र चित्तरण करने में स्वतंत्र होता है उपन्यास में पात्र दो प्रकार के होते है

प्रधान पत्तर और गौाण  पात्र 

प्रधान पात्र :

शुरू से लेकर अंत तक उपन्यास के कथानक को गति देते हैं लक्ष्य  की और अग्रसर करते हैं। यह पात्र कथा के नायक होते हैं इन्हीं के इर्द-गिर्द संपूर्ण कथा चलती रहती है।

गौाण  पात्र  

प्रधान पात्रो को सहायक बनाकर आते है, इसका कार्य कथानक को गति देना वातावरण की गंभीरता को काम करना वातावरण की सृष्टि करना तथा अन्य पत्रों के चरित्र पर प्रकाश डालना भी होता है। बीच-बीच में उपस्थित होकर यह पात्र प्रधान पात्र अथवा कथावस्तु को गति देते रहते हैं। कभी यह हंसाने का कार्य करते हैं तो कभी दर्शकों का मनोरंजन करने के लिए उपस्थित होते हैं।

३ संवाद :

संवादों का प्रयोग कथानक को गति देना नाटकीयता लाना पत्रों के चरित्र का उद्घाटन करना वातावरण की सृष्टि करा आदि कई उद्देश्यों से होता है। सम्बन्ध मुख्य रूप से कथोपकथन (संवाद ) पात्तरों के भावो विचरों संवेदनाओं मनोवृतिओं आदि को व्यक्त करने में सहायक होते है। कथोपकथन की कथा और विषय पात्रों के अनुकूल होनी चाहिए एक साफल उपन्यास के सफल कथोपकथन, कोतुहल, वर्धक नाटकीयता से पूर्ण सवद्देशय व सभाविकता होते है उनमे मुश्किल  नहीं होती है।

४ वातवरण 

देशकाल वातावरण का निर्माण प्रत्येक उपन्यास में आवश्यक है पाठक उपन्यास के युग और उसकी परिश्थिति से बहुत दूर होता है उन्हें पूरी तरह समझने के लिए उसे उपन्यासकार के वर्णन का सहारा लेना पड़ता है। इसीलिए पाठक के प्रति उपन्यासकार का दाईत्व बढ़ जाता है इसके अतिरिक्त लेखक को पात्रों की मानसिकता स्थिति परिस्थतियों आदि का भी छत्रं करना पड़ता है। पात्रों के बाह्य आंतरिक वातावरण का सफल चित्रण लेखक  तभी कर सकता है जब वह अपने देश काल वेश -भूषा आदि के बारे में पूरी जानकारी रखता है।

५ भाषा शैली :

उपन्यास में वास्तु अभिव्यक्ति कला का विशेष महत्व होता है भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है और शैली उसके कथन का ढंग भाषा के द्वारा उपन्यासकार अपनी भाषा के द्वारा उपन्यासकार अपने भाषा पाठक तक सम्प्रेषण करता है। अतः उसका सुबोध होना आवश्यक है ताकि पाठक लेखन के भावों एवं विचारों के साथ ही उसका साहित्य होना भी आवश्यक है उसमे अलंकार मुहावरे लोकोक्तिआदि का यथा स्थान प्रयोग होना चाहिए।

कथावस्तु की अभिव्यक्ति की अनेक शैलियां हो सकती है ऐतिहासिक उपन्यास अधिकतर कथ्यात्मक शैली में लिखे जाते है वर्तमान जीवन से सम्बन्धित upanyaas आत्मकथ्यात्मक शैली में अधिक सजीव  हो सकते है इसके अतिरिक्त पूर्व दीप्ती डायरी शैली आदि का प्रयोग भी उपन्यास में किय जाता है।

६ जीवन दर्शन व उद्देश्य :

हमारी गद्य साहित्य सृष्टि के पीछे कोई न कोई भारतीय मान्यता या उद्द्देश्य आदि आवश्यक रहता है एक अनुभवी उपन्यासकार का जीवन और जगत प्रति उसकी प्रत्येक समस्या के प्रति एक विशेष दृष्टिकोण होता है जो किसी न किसी रूप में उपन्यास के पात्रों व घटनाओ के माध्यम से अभिव्यक्ति पते है , यही उपन्यासकार का उद्द्देश्य या अभिव्यकयी जीवन दर्शन होता है।

अतः इसकी अभिव्यक्ति शोषक ढंग से होनी चाहिए तभी वह प्रभावशाली सिद्ध होगा।

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निष्कर्ष

उपन्यास आधुनिक युग की देन है, इसका विकास मुद्रण कला के विकास से हुआ है। यह आम लोगों का महाकाव्य है। उपन्यास का सामान्य अर्थ है अपनी कहानी अपनी ही भाषा में लिखी गई हो, जिसे पढ़कर ऐसा लगे कि उसमें संपूर्ण घटनाक्रम हमसे जुड़ा हुआ है। आधुनिक काल में उपन्यास का आरंभ तथा विकास देखने को मिलता है। इसके प्रमुख 6 तत्व माने गए हैं जिस पर आधारित होकर संपूर्ण उपन्यास की रचना की जाती है। इन छह तत्व के संयोजन से ही एक सफल उपन्यास की रचना की जा सकती है तथा इसे रंगमंच पर दिखाया भी जा सकता है।

अनेकों ऐसे उपन्यास हुए हैं जिन्होंने ग्रामीण जीवन को बारीकी से प्रस्तुत किया है। जिसमें प्रेमचंद का गोदान प्रमुख है जिसे कृषक जीवन का महाकाव्य माना गया है।  उपन्यास किसी समस्या किया विषय को लेकर प्रस्तुत होता है और उसके समापन तक नायक की विजय यात्रा जय स्थिति में परिणत होता है। आशा है आप उपन्यास के विषय में गहन जानकारी हासिल कर सके होंगे संबंधित विषय से प्रश्न पूछने के लिए कमेंट बॉक्स में लिखें।

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23 thoughts on “उपन्यास की संपूर्ण जानकारी ( परिभाषा, विशेषताए, तत्व, तथा भेद )”

    • धन्यवाद
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  2. जानकारी काफी रोचक लगी, मुझे भी उपन्यास लिखने का शौक हुआ है देखते हैं कि कहां तक हो पाता है।धन्यवाद जी.

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  3. सर यह बता दीजिए उपन्यास को कितने भागों में बांटा गया है उपन्यास की परिभाषा एवं तत्व लिखिए शैली की दृष्टि से उपन्यास के कितने भेद होते हैं चार उपन्यास एवं उनके लेख लिखिए

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  4. उपन्यास शिक्षण पर टिप्पणी बता दीजिए सर आपका आभार होगा

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  5. उपन्यास विषय पर पूरी जानकारी देने के लिए मे हिंदी विभाग को धन्यवाद करना हूँ।

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