आदिकाल की परिस्थितियां
आदिकाल की परिस्थितियां – साहित्य मानव समाज की भावात्मक स्थिति एवं गतिशील चेतना की सार्थक अभिव्यक्ति है। साहित्य मानव के आदर्श समाज का निर्माण करने में अग्रणी भूमिका निभाती है। साहित्य ही मानव के अगली पीढ़ी तक उनके आदर्शों को पहुंचती है।
राजनीतिक धार्मिक सामाजिक सांस्कृतिक साहित्यिक परिस्थितियां – आदिकाल की परिस्थितियां | नीचे दिया गया है |
राजनीतिक परिस्थितियां ( आदिकाल की परिस्थितियां ) –
- वर्धन साम्राज्य को भारत का अंतिम साम्राज्य माना जाता है।
- हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद साम्राज्य लड़खड़ा गया।
- कासिम ने भारत पर सफल आक्रमण किया यह अरबों का प्रथम आक्रमण 712 ईस्वी में हुआ
- भारत में अरबों का आक्रमण का मुख्य उद्देश्य ‘ धन लूटना ‘ व ‘ इस्लाम धर्म का प्रचार – प्रसार ‘ करना था।
मोहम्मद गजनी
- 10 वीं शताब्दी में गजनी का राज्य जब मोहम्मद गजनी के हाथ में आया तो उसने भारत पर सफल आक्रमण 1001 ईस्वी में किया।
- मोहम्मद गजनी ने भारत पर लगभग 17 बार आक्रमण किया।
- मोहम्मद गजनी ने 1008 ईस्वी में मूर्तिवाद के विरुद्ध नगरकोट में आक्रमण किया।
- मोहम्मद गजनी ने मथुरा , कन्नौज , ग्वालियर , सौराष्ट्र , बनारस आदि मंदिरों को भी लूटा।
- उसका सबसे चर्चित आक्रमण 1024 ईस्वी में सौराष्ट्र ‘ सोमनाथ मंदिर ‘ पर हुआ और नगरों को पददलित किया।
‘ 11 वीं 12 वीं शताब्दी में राजाओं में एकता का अभाव था अतः गजनी में तुर्कों को समाप्त कर मोहम्मद गोरी ने भारत पर आक्रमण किया। ‘
मोहम्मद गोरी
- मोहम्मद गोरी एक कट्टर मुसलमान शासक था।
- उसने भारत पर प्रथम आक्रमण 1175 ईस्वी में किया।
- दूसरा आक्रमण 1178 ईस्वी में गुजरात पर किया यहां का शासक भी बुरी तरह पराजित हुआ।
- 1192 में पृथ्वीराज को भी पराजित किया और मुसलमानों का राज्य स्थापित किया।
- इसका कारण था कि राजपूत में परस्पर फूट व पड़ोसी राज्यों के प्रति ईर्ष्या द्वेष।
- इस प्रकार संपूर्ण भारत में हिंदुओं की सत्ता समाप्त हो गई और मुसलमानों का राज्य स्थापित हो गया
- ईशा की आठवीं शताब्दी से 15वीं शताब्दी तक राजनीतिक दृष्टि से हिंदू की राज्यसत्ता ” शनै-शनै समाप्त हो गई ” और इस्लाम सत्ता धीरे-धीरे उदय होता गया।
- विदेशियों का आक्रमण पश्चिमी उत्तर मध्य भारत पर हुआ जिसका प्रभाव यहां की साहित्य पर भी पड़ा और साहित्य में उसका वर्णन हो पाया ‘ हम्मीर रासो ‘ , ‘ विजयपाल रासो ‘ , ‘ पृथ्वीराज रासो ‘ , ‘ परमाल रासो ‘ आदि ग्रंथ इसके प्रमाण है।
धार्मिक परिस्थितियां ( आदिकाल की परिस्थितियां ) –
- ईशा की सातवीं शताब्दी से पूर्व देश का धार्मिक वातावरण शांत और सद्भावपूर्ण था।
- छठी शताब्दी में भक्ति आंदोलन तमिल क्षेत्र से उदय होकर कर्नाटक और महाराष्ट्र में फैल गया।
- एक और बौद्ध धर्म का पतन हो रहा था तो दूसरी ओर अलवार और नयनार संतों का उदय ।
- अलवार संत 12 , और नयनार 63 संत ने भक्ति का विकास किया और दक्षिण भारत से उत्तर भारत में भक्ति को लेकर आए।
- भक्ति आंदोलन को दक्षिण भारत से उत्तर भारत में लाने का श्रेय रामानंद को जाता है।
- उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन 13 वीं शताब्दी में आई रामानंद के शिष्य कबीर , रैदास , धन्ना , पीपा , सेना आदि
- ” भक्ति उपजी द्रावड़ि लाए रामानंद “
- एक और जैन धर्म और शैव धर्म आपस में टकराव की स्थिति में थे दोनों में प्रतिस्पर्धा का दौर चल रहा था।
- राजपूत अहिंसा में विश्वास नहीं करते थे , अतः शैव धर्म को माना और जैन धर्म का हास्य हुआ , राजपूतों के कारण ब्राह्मणों का खूब बोलबाला था।
- अपनी शक्ति क्षीण होता देख ‘ बौद्ध धर्म ‘ रूप बदलकर सामने आया। बौद्ध धर्म ‘ महायान शाखा ‘ के रूप में आया। जिसमें तंत्र – मंत्र , जादू – टोने ध्यान धारण आदि का महत्व था , अतः लोग इससे प्रभावित होकर जादू – टोने के चक्कर में पड़ गए।
- जनता को कोई सही राह नहीं दिखा पा रहा था , भ्रमित जनता को नई दिशा प्रदान करने के लिए शंकराचार्य , रामानुजाचार्य आदि सामने आए।
सामाजिक परिस्थितियां ( आदिकाल की परिस्थितियां ) –
- जनता की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। जनता ‘ शासन ‘ और ‘ धर्म ‘ दोनों से स्वयं को निराश्रित पा रहा था। वास्तविकता यह थी कि दोनों ही जनता का शोषण कर रहे थे।
- समाज छोटी – छोटी जातियों उप – जातियों में विभाजित था , समाज में अनेक रूढ़ियां पनप रही थी। समाज में नारी की दशा अत्यंत सोचनीय अथवा दयनीय थी। वह मात्र भोग की वस्तु रह गई थी , उसका क्रय विक्रय किया जा रहा था।
- सामान्य जन शिक्षा से वंचित था , निर्धनता बढ़ती जा रही थी , सती प्रथा का भयंकर अभिशाप था राजपूतों में आत्मसम्मान का स्वाभिमान था।
- नारी के कारण युद्ध भी हुआ करते थे।
- राजाओं में बहु – विवाह की प्रथा का प्रचलन था।
- सामंती व्यवस्था से सामान्य जन आक्रांता।
सांस्कृतिक परिस्थितियां ( आदिकाल की परिस्थितियां ) –
- हर्षवर्धन के समय तक भारतीय संस्कृति अपने चरमोत्कर्ष पर थी , उस समय तक स्वाधीनता तथा देश भक्ति के भाव दृढ़ थे।
- पारंपरिक संगीत , मूर्ति , चित्र , स्थापत्य आदि कलाओं ने खूब प्रगति की।
- उस समय मंदिरों का निर्माण भी भव्य रुप में हुआ भुवनेश्वर , सोमनाथ , पूरी , कांची , तंजौर , खुजराहो आदि।
- प्रायः सभी कलाओं में धार्मिक भावनाओं की छाप थी ‘ अलबरूनी ‘ ने हिंदुओं के मंदिर शैली की बड़ी प्रशंसा की है , किंतु मुसलमानों ने इस कला पर कुठाराघात किया और मंदिरों को नष्ट करते गए।
- यवनों के आक्रमण से भारतीय संस्कृति का विघटन होने लगा। हमारे त्यौहार , मेलों , खान – पान , वेशभूषा , विवाह आदि पर इस्लाम का गहरा प्रभाव पड़ता गया।
- कला के क्षेत्र में भी भारतीय परंपरा लुप्त हो गई।
- गायन , वादन , नृत्य आदि पर भी इस विदेशी संस्कृति का प्रभाव पड़ा।
- हिंदू राजाओं ने भी विदेशी कलाकारों को प्रश्रय प्रदान किया जिसके कारण धीरे-धीरे भारतीय संस्कृति लुप्त होती गई।
- मुसलमान मूर्ति विरोधी थे अतः मूर्तिकला का भी विकास समाप्त हो गया।\
साहित्यिक परिस्थितियां ( आदिकाल की परिस्थितियां ) –
- इस काल में साहित्यिक परिस्थितियों का विशेष महत्व था।
- अशांत वातावरण में भी इसने निरंतर विकास किया ।
- इस काल में ज्योतिष , दर्शन , स्मृति आदि विषयों के अलावा हर्ष का नैषध चरित आदि जैसे कवियों की रचना हुई।
- संस्कृत में भी खूब रचनाएं हुई संस्कृत के अलावा प्राकृतिक एवं अपभ्रंश में भी प्रचुर मात्रा में श्रेष्ठ साहित्य रचा गया।
- जैन , सिद्धों का साहित्य इसका प्रमाण है।
- देशभाषा में भी साहित्य की रचना हुई साहित्य जनता की भावनाओं को मानसिक स्थितियों का व्यक्त करने का माध्यम बन गया था।
- संस्कृत के कवि रचनात्मक प्रतिभा के उद्घाटन में अपभ्रंश के कवि धर्म प्रचार में लीन थे ,
- केवल हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जो साहित्य के माध्यम से तत्कालीन परिस्थितियों को किसी रूप में उद्घाटित कर रही थी।
काल विभाजन का आधार
- सर्वप्रथम डॉक्टर ‘ जॉर्ज ग्रियर्सन ‘ ने काल का विभाजन किया उन्होंने भक्ति काल को ‘ स्वर्ण युग ‘ कहा किंतु किसी ने ध्यान नहीं दिया।
- मिश्र बंधुओं ने मिश्रबंधु विनोद में हिंदी साहित्य को नौ खंडों में विभाजन किया किंतु इसके साहित्य में प्रमाणिकता का अभाव था।
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने काल का विभाजन चार भागों में किया जो आज तक मान्य है। इन्होंने मिश्र बंधुओं के साहित्य का भी सहारा लिया।
- डॉ श्यामसुंदर दास ने शुक्ल जी के काल विभाजन को मान्यता दी।
- डॉ नगेंद्र ने शुक्ल के काल विभाजन को ही मान्यता दी।
- शुक्ल जी के पश्चात आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने हिंदी साहित्य की भूमिका की रचना की। आचार्य द्विवेदी ने शुक्ल की मान्यताओं को प्रमाणिक रूप से खंडन किया आचार्य द्विवेदी ने ‘ भक्ति आंदोलन ‘ का श्रेय ‘ वैष्णव भक्ति आंदोलन ‘ को दिया।
“भक्ति उपजी द्रवडी लाये रामानंद ”
- ” मैं इस्लाम को नहीं भूला हूं लेकिन ज़ोर देकर कहना चाहता हूं कि अगर इस्लाम ना आया होता तो भी इस साहित्य का बाहर आना वैसा ही होता जैसा आज है। ” आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
- आचार्य रामकुमार वर्मा ने हिंदी साहित्य को 693 से लेकर 1663 तक समेटा।
- डॉ धीरेंद्र वर्मा हिंदी साहित्य काल का विभाजन तीन रूप में करते हैं- १ आदिकाल २ मध्यकाल ३ आधुनिक काल।
नामकरण
आदिकाल ( 1050 से 1375 )
- जॉर्ज ग्रियर्सन चारण काल 700 से 1300
- मिश्रबंधु प्रारंभिक काल
- श्याम सुंदर वीरगाथा काल
- डॉ शुक्ल वीरगाथा काल
- डॉ विश्वनाथ डॉ नगेंद्र वीरगाथा काल
- हजारी प्रसाद द्विवेदी आदि काल 1000 से 1400
- महावीर प्रसाद द्विवेदी बीजवपन काल
- रामकुमार वर्मा चारणकाल राहुल
- संकृत्यायन सिद्ध सामंत काल
रीतिकाल ( 1700 से 1900 )
- जॉर्ज ग्रियर्सन रीति काव्य
- मिश्रबंधु अलंकृत
- विश्वनाथ प्रसाद मिश्र श्रृंगार काल
- रमाशंकर शुक्ल रसाल काल
- आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी रितिकाल तीन भागों में रीतिबद्ध , रीतिसिद्ध , रीतिमुक्त।
भक्ति काल ( 1375 से 1700 )
जॉर्ज ग्रियर्सन स्वर्ण काल
आचार्य रामचंद्र शुक्ल भक्ति काल
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Very useful and thanks
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Very thanks to you. agar aapko kisi bhi prkar ka notes chahiye jo yha uplabdh ni hai, aap hume yha suchit karein, hum wo bhi avashya yha dalenge.
mujko rasho kavya ki prmanikta pr notes chahiye sir g
plz help me
यथाशीघ्र हिंदी विभाग आपके निवेदन पर ध्यान देगा
Sir mujhe google pr Hindi sahitya ke itihaas me adikaal ka mahetve nhi mil rha
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