भाषा के दो रूप हैं १ लिखित और २ मौखिक। मौखिक रूप का ध्वनि से संबंध होता है , अक्षर का संबंध ध्वनि के उच्चारण पक्ष से है। ‘ अक्षर ‘ शब्द संस्कृत के ‘ क्षर ‘ धातु के ‘ अ ‘ उपसर्ग लगाकर बना है। जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘ अनश्वर ‘ या ‘ अटल ‘ हिंदी भाषा में अक्षर शब्द का प्रयोग चार अर्थों में किया जाता है –
अक्षर की विशेषता और स्वरूप
पहला –
पहले अर्थ में अक्षर का प्रयोग अरबी भाषा के ‘ हर्फ़ ‘ अंग्रेजी भाषा के ‘ लेटर ‘ और संस्कृत भाषा के ‘ वर्ण चिन्ह ‘ के रूप में किया जाता है।
दूसरा –
दूसरे के अर्थ में इस का प्रयोग अनश्वर या अटल ईश्वर के रूप में किया जाता है।
तीसरा –
तीसरे अर्थ में इस का प्रयोग स्वर के लिए किया जाता है। इसी आधार पर स्वरों को मूल स्वर व संयुक्त स्वरों में विभाजित किया गया है।
चौथा –
चौथे में इस का प्रयोग ‘ अक्ष ‘ या ‘ शीर्ष ‘ बलाघात अर्थ में किया जाता है।
अंग्रेजी भाषा में इसे ‘ स्टेबल ‘ कहा जाता है। अक्षर को अनेक भाषा वैज्ञानिकों ने परिभाषित करने का प्रयत्न किया है –
डॉ भोलानाथ तिवारी
अक्षर की परिभाषा इस प्रकार से दी है – ” अक्षर एक ध्वनि का एकाधिक ध्वनियों की वह इकाई है , जिसका उच्चारण एक झटके में होता है , इसके पहले या बाद में एक या अधिक व्यंजन होते हैं। ”
डॉक्टर कृपाशंकर सिंह
के अनुसार ” अक्षर भाषा की एक मूलभूत उच्चारणात्मक इकाई है। ”
अक्षर की विशेषता –
१ इस का संबंध भाषा के उच्चारण पक्ष से है।
२ अक्षर एक स्वनिम का भी हो सकता है , जैसे- ‘ आ ‘ और एक से अधिक स्वनिमों का भी हो सकता है जैसे – राम , नाम , काम , रात आदि।
३ शब्द एक या अधिक अक्षरों के होते हैं जैसे –
( क ) एक अक्षर के बाद रात , नाम , काम आदि
(ख ) दो अक्षरों के शब्द – गीता , सीता , काला , माला आदि।
४ एकाधिक अक्षर के शब्दों में हर अक्षर के बीच थोड़ा सा मौन होता है , जिसे भाषा विज्ञान की शब्दावली में ‘ संगम ‘अथवा ‘ विराम ‘ कहा जाता है
जैसे – ‘ खाया ‘ शब्द में ‘ खा ‘ और ‘ या ‘ मैं थोड़ा सा ‘ संगम ‘ या ‘ विराम ‘ है।
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अक्षर का स्वरूप निर्धारण :-
किसी भी शब्द में अक्षर का स्वरूप निर्धारण करते समय दो महत्वपूर्ण कार्य करते हैं – १ शीर्ष , २ गहवर
1 शीर्ष –
‘ पिक ‘ या ‘ चोटी ‘ को कहते हैं , तो शब्द में जो ध्वनि अधिक मुखर होती है , उसे शीर्ष के अंतर्गत रखा जाता है। स्वरों को शीर्ष के अंतर्गत क्योंकि स्वर , व्यंजनों की अपेक्षा अधिक मुखर होती है।
2 गहवर –
शब्द में जो ध्वनि कम मुखर (अस्पष्ट) होती है वह गह्वर कहलाती है। गह्वर को भी दो भागों में विभाजित किया जाता है १ पूर्व गह्वर और पश्च गह्वर।
अक्षर के स्वरूप निर्धारण में स्वर की भूमिका
इस के स्वरूप निर्धारण में स्वर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं , किसी शब्द के उच्चारण में स्वर अधिक मुखर होते हैं जो ध्वनि मुखर होगी वही अक्षर में शीर्ष का कार्य करेगी। इस प्रकार स्वर हमेशा इस में शीर्ष का निर्माण करता है। जैसे – ‘राम’ = र + आ + म )
इस शब्द में ” आ ” ध्वनि मुखर है अर्थात उच्चारण में ‘ आ ‘ ध्वनि ‘ र ‘ और ‘ म ‘ की अपेक्षा अधिक मुखर है। इसलिए राम शब्द में ‘ आ ‘ शब्द ध्वनि शीर्ष पर है।
अक्षर के स्वरूप निर्धारण में व्यंजन की भूमिका –
शब्दों के उच्चारण में देखने में आता है कि कुछ ध्वनियां मुखर होती है , और कुछ कम मुखर होती है। कम मुखर ध्वनियां अधिकतर व्यंजन होती है। यह ध्वनियाँ अक्षर के स्वरूप निर्धारण में गह्वर का कार्य करती है। इनमें से कुछ ध्वनियां शीर्ष के पूर्व और शीर्ष के पश्चात आती है। इस प्रकार गहवर दो प्रकार के होते हैं –
१ पूर्व गह्वर व २ पश्च गह्वर
जैसे – ” आज ” शब्द में ‘ आ ‘ बड़ा शीर्ष है और ‘ ज ‘ पश्च गह्वर है।
इस के स्वरूप निर्धारण में बलाघात और श्रुति महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
अक्षर के भेद –
यह मूल रूप से दो प्रकार के होते हैं ‘ बद्धाअक्षर ‘ और ‘ मुक्ताअक्षर ‘ |
१ बद्धाअक्षर
जिसके अर्थ में व्यंजन हो उसे ‘ बधाक्षर ‘ कहते हैं। व्यंजन प्रायर गह्वर होते हैं , इसलिए इसे गहवरांत भी दो अक्षर भी कहते हैं।
जैसे – ‘ काम ‘ , ‘ एक ‘ आदि
२ मुक्ताक्षर
जिसके अंत में स्वर हो उसे मुक्ताक्षर कहते हैं। स्वर प्रायः शीर्ष होते हैं , इसलिए शीर्षान्त अक्षर भी कहते हैं।
जैसे – ‘ आ ‘ , ‘ सा ‘ , ‘ का ‘
निष्कर्ष
कहा जा सकता है कि भाषा रूपी भंवर अक्षर की आधारशिला पर ही आधारित है। यदि यह नहीं होता तो भाषा का भी कोई अस्तित्व नहीं होता। अतः यह ही इस जगत में शास्वत और सत्य है।
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