दयानंद सरस्वती समाज के वह अग्रणी दूत थे जिन्होंने समाज को एकजुट करने का आजीवन प्रयत्न किया। स्वामी दयानन्द जी ने वेदों की ओर लौटो का नारा देकर भारतीय समाज को एकजुट करने का प्रयत्न किया। उन्होंने आर्य समाज की स्थापना कर भारतीयों के गौरव का बखान किया। कर्म सिद्धांत, पुनर्जन्म तथा सन्यास आदि को अपने जीवन में शामिल किया। प्रस्तुत लेख में आप दयानंद सरस्वती जी के वाक्य, अनमोल वचन, सुविचार पढ़ेंगे और उनके व्यक्तिगत जीवन से परिचित होंगे।
Dayanand Saraswati Quotes, Suvichar, Anmol vachan, and status in Hindi
1.
निर्बल पर दया करना ही
मनुष्य का निजी गुण है।
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2
वेदों की ओर लौटो।
3
असंभव भी संभव हो जाता है
जब मानव कार्य आरंभ करता है।
स्वामी दयानंद जी का मानना है कि मनुष्य अगर कोई भी कार्य दृढ़ निश्चय को हृदय में धारण करके शुरू करें तो असंभव से असंभव दिखने वाला कार्य भी संभव हो जाता है। इसे समझने के लिए आपको आचार्य चाणक्य की कहानी को पढ़ना पड़ेगा। आचार्य चाणक्य पूरे भारत को एक करना चाहते थे जो अलग-अलग राज्यों में बटा हुआ था, अब सोचिए एक शिक्षक जिसके पास ना कोई सेना है और ना ही ऐसा कुछ जिसके बल पर वह दुष्ट एवं बलशाली राजाओं को हराने की सोचे। परंतु फिर भी आचार्य चाणक्य ऐसा करने में संभव हुए क्योंकि उन्होंने कार्य करना आरंभ किया बजाय यह सोचने के कि कार्य कितना संभव या असंभव है।
अगर गुलामी की जंजीर से मुक्त होना होना तो उस समाज को जात पात के नाम पर लड़ना बंद करना होगा और ऐसे बंधनों से मुक्त होना होगा जो आप को बांटने का काम करते हैं। जात पात के नाम पर हम लोग आपस में हमेशा से ही लड़ते आए हैं जिसका फायदा आक्रमणकारियों ने भी उठाया है और हमें गुलामी की जंजीर में बांधकर भी रखा था। इसलिए अगर कोई समाज स्वतंत्र रूप से जीना चाहता है तो वह जात पात के बंधन में कभी न रहे।
पारंपरिक विद्यालय या फिर हम गुरुकुल भी कह सकते हैं उसकी स्थापना होना आज के जमाने में बहुत जरूरी है। अभी का समय ऐसा आ चुका है जहां पर लोग धार्मिक बनने के बजाय अधर्म का साथ दे रहे हैं और उसे बढ़ावा भी दे रहे हैं। अगर धर्म की स्थापना करनी है और समाज को विघटन की बजाय सही मार्ग पर ले जाना है तो गुरुकुल ही एकमात्र उपाय है। गुरुकुल में ऐसी शिक्षा दी जाती है जिससे विद्यार्थी को समझ में आता है कि किसी भी वस्तु का इस दुनिया में कितना मोल है और हमें किसी भी वस्तु को कितनी अहमियत देनी चाहिए। इससे विद्यार्थी के मन में कभी लालच नहीं आता और वह कभी गलत मार्ग पर नहीं निकलता। और यही समाज को आगे चलकर सुदृढ़ बनाने का कार्य करते हैं।
स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने समाज सुधार का कार्य बड़ा ही सराहनीय ढंग से किया। उन्होंने समाज के बीच व्याप्त छुआछूत, ऊंच-नीच का भाव अंधविश्वास, रूढ़िवादी पाखंड आदि का खंडन करते हुए उन्होंने मूर्ति पूजा का विरोध किया। मूर्ति पूजा के विरोध में उनका दूरगामी दृष्टिकोण था क्योंकि मूर्ति पूजा से कई वर्गों को वंचित किया जा रहा था। राष्ट्रीय भावना को सर्वोपरि मानकर आर्य समाज की स्थापना के माध्यम से उन्होंने भारतीय समाज को एकजुट करने का प्रयत्न किया। सामाजिक तथा धार्मिक क्षेत्र में सराहनीय योगदान दिया.