यहां शब्द शक्ति की विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराई गई है जिसमें उदाहरण , भेद , परिभाषा आदि शामिल है। यह लेख विद्यार्थियों के कठिनाई स्तर को ध्यान में रखकर लिखा गया है।। अतः इसके अध्ययन के उपरांत आप शब्द की शक्ति से परिचित हो सकेंगे। अपने परीक्षा में सर्वाधिक अंक प्राप्त कर सकते हैं।
शब्द शक्ति हिंदी व्याकरण के साथ अभिधा, लक्षणा, व्यंजना टॉपिक को भी विस्तार से पढ़ेंगे।
शब्द शक्ति
साहित्य में दूसरा स्थान शब्द की शक्तियों का है। क्योंकि ध्वनियों के समूह से शब्द का निर्माण होता है और उससे ध्वनित वाला बोध हमें शब्द के तात्पर्य से अवगत कराता है। अतः शब्द बोधक है और अर्थ बोध्य है। लेकिन भाषा में यह साहित्य में शब्द के अंदर अनेक अर्थ सन्निहित रहते हैं। शब्द का अर्थ देशकाल परिस्थिति के साथ-साथ वक्ता की प्रस्तुति श्रोता की स्थिति और संदर्भों वह प्रसंगों की अवधारणा से भी संबंधित रहती है काव्यशास्त्रीय ने शब्द शक्तियों का निम्न प्रकार निरूपण किया है।
सरल शब्दों में कहें तो शब्द से अर्थ ग्रहण करने की शक्ति को शब्द शक्ति कहते हैं।
अभिधा
शब्द के साथ संयुक्त लोक प्रसिद्ध अर्थ का बोध कराने वाले शब्द की प्रवृत्ति या शक्ति को अभिधा शब्द शक्ति कहते हैं। जैसे ‘ कमल ‘ कहने पर एक फूल विशेष का ‘ चंद्रमा ‘ कहने पर एक आकाश में चमकने वाले ग्रह पिंड का बिंब मन में उपस्थित हो जाता है।
जिस शब्द से प्रचलित अर्थ का बोध हो वहां अभिधा शब्द शक्ति होती है। जैसे – यह कमल का फूल है ( बोलचाल की भाषा में अधिकतर अभिधा शब्द शक्ति का ही प्रयोग किया जाता है )
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लक्षणा
जब शब्द का मुख्य अर्थ बाधित होकर रूढि अथवा प्रयोजन विशेष के कारण मुख्यार्थ से संबंधित किसी अन्य गौण अर्थ की प्रतीति होने लगती है। वहां लक्षणा शब्द शक्ति होती है। जैसे यदि अमूक नाम से व्यक्ति को हम गाय , गधा, बैल , हाथी या शेर की संज्ञा से पुकारते हैं या कहते हैं तो वहां अमुक पशु नाम के स्थान पर उस पशु के लक्षणों का अर्थात पशुत्व का बोध उस अर्थ में सब प्रयोजन होने लगता है। यही अर्थ के साथ प्रतीत होने वाली लाक्षणिकता है लक्षणा शब्द शक्ति है।
शब्द की शक्ति से दूसरे अर्थ की कल्पना होती हो वहां लक्षणा शब्द शक्ति माना जाता है। जैसे – राम तो शेर है यहां शेर का अर्थ सहस से है।
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व्यंजना
जब शब्द का मुख्यार्थ या लक्ष्यार्थ दोनों ही बाधित हो कर किसी अन्य अर्थ को ध्वनित करते हैं। तो वह ध्वन्यार्थ व्यंजना कहलाता है। व्यंजना शब्द और अर्थ दोनों में ही निहित रहती है। जैसे हम किसी व्यक्ति के पूछे कि अमुक स्त्री से तुम्हारा क्या संबंध है ? और वह कहे कुछ नहीं लेकिन उसका कहने का तरीका उसकी चितवन उसका मुस्कुराना आदि स्पष्ट कर देता है कि उसके संबंधों में आत्मीयता और प्रेम निहित है। कथन में आत्मीयता और प्रेम का ध्वनि तो होना ही व्यंजना शब्द शक्ति है।
यह शब्द व्यंजना और आर्थी व्यंजना दो प्रकार की होती है। यहां संक्षिप्त विवरण केवल शब्द की प्रवृतियों या उसकी शक्तियों को प्राथमिक दृष्टि से समझना मात्र था। साहित्य में रस और ध्वनियों की प्रासंगिकता गद्य और पद्य दोनों में ही होती है लेकिन कविता में इन दोनों के अतिरिक्त अलंकार छंद और बिम्ब का प्रयोग उसमें विशिष्टा लाता है ।
शब्द शक्ति की जानकारी सिर्फ यही तक सीमित नहीं है बल्कि इसमें और भी बहुत कुछ आता है। अगर आप चाहते हैं कि इस टॉपिक के बारे में हम और विस्तार से जानकारी दें तो आपने जो कमेंट करके हमें जरूर बताएं। एवं यहां पर दिए गए अभिधा, लक्षणा, व्यंजना विषय की भी जानकारी अगर आप विस्तार से प्राप्त करना चाहते हैं तो भी आप हमें बता सकते हैं, कुछ विषय पहले से ही हिंदी विभाग वेबसाइट पर लिखे जा चुके हैं जिन्हें आप हमारी वेबसाइट पर ढूंढ सकते हैं।
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शब्द शक्ति का नाम शब्द अर्थ
अभिधा वाचक वाच्य (अभिधेय) मूल प्रातिपदिक अर्थ
लक्षणा लक्षक लक्ष्य (रूठना है या प्रयोजन के आधार ग्राहन अर्थ)
व्यंजना व्यंजना व्यंजना (शब्द और अर्थ से व्यंजित होने वाला अर्थ)
निष्कर्ष
साहित्य में शब्द शक्ति का बेहद अधिक महत्व है , उपरोक्त अध्ययन के उपरांत यह स्पष्ट होता है। कवि शब्द की शक्ति के माध्यम से गागर में सागर भरने का कार्य करता है। शब्द और भाषा साहित्य को स्वरूप देते हैं। बिना शब्द और भाषा के एक सभ्य समाज की कल्पना नहीं की जा सकती।
शब्दों के ज्ञान से कवि तथा लेखक उन सभी बातों को भी कह जाता है जिसे सामान्य शब्दों में कहना दुष्कर होता है। जहां सीधे तौर पर कह देने से किसी अनहोनी की संभावना होती हो , वहां शब्द की शक्ति से उस बात को कहा जा सकता है वह भी बेहद सरलता से।
इस विषय के संदर्भ में बहुत से अन्य बातें हैं जो अभी तक नहीं लिखी गई हैं, उन्हें हम यहां पर जोड़ने का प्रयास करेंगे, अगर आपको अभिधा, लक्षणा, व्यंजना टॉपिक से जुड़े किसी भी चीज में दिक्कत आती है तो आप नीचे कमेंट में पूछ सकते हैं।
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