यहां वीभत्स रस की समस्त जानकारी उपलब्ध है। इस लेख में आप वीभत्स रस की परिभाषा ,उदाहरण और भेद , स्थाई भाव आदि का विस्तृत रूप से अध्ययन करेंगे।
यह लेख विद्यार्थियों के कठिनाई स्तर को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है।
इस लेख का अध्ययन आप विद्यालय , विश्वविद्यालय तथा प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कर सकते हैं।
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वीभत्स रस vibhats ras ki paribhasha
वीभत्स रस घृणा के भाव को प्रकट करने वाला रस है। आचार्यों के मतानुसार जब घृणा या जुगुप्सा का भाव अपने अनुरूप आलंबन , उद्दीपन एवं संचारी भाव के सहयोग से आस्वाद का रूप धारण कर लेता है तो इसे वीभत्स रस कहा जाता है।
इसका एक उदाहरण है —
” सिर पै बैठ्यो काग , आंख दोउ खात निकारत।
खींचत जिभहि स्यार , अतिहि आनंद उर धारत। । “
उपर्युक्त पंक्ति के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि यहां घृणित शव का वर्णन है।
जिसके ऊपर बैठकर गिद्ध और सियार आनंद की अनुभूति कर रहे हैं।
इस शव के सिर पर कौवा बैठ कर उसके आंखों को नोच रहा है तथा सियार उन लाशों को नोच कर खा रहा है तथा आनंद उठा रहा है।
यह दृश्य बेहद ही घृणित है।
इस दृश्य को देखकर किसी भी साधारण व्यक्ति के मन में घृणा का भाव उत्पन्न होता है।
यह घृणा ही वीभत्स रस का स्थाई भाव है। साहित्य रचना में वीभत्स रस का प्रयोग बहुत कम ही होता है।
रस का नाम | वीभत्स रस |
रस का स्थाई भाव | घृणा / जुगुप्सा |
आलम्बन | विलासिता , व्यभिचारी , छुआछूत , धार्मिक पाखंडता , अन्याय , नैतिक पतन , पाप कर्म , घृणास्पद व्यक्ति या वस्तुएं,दुर्गंधमय मांस , रक्त , चर्बी ,इसका आलंबन है। |
उद्दीपन | कीड़े पड़ना ,घृणित चेष्टाएं एवं ऐसी वस्तुओं की स्मृति उद्दीपन विभाव है। |
अनुभाव | थूकना , झुकना , मुंह फेरना , आंखें मूंद लेना इसके अनुभाव हैं |
संचारी भाव | जबकि इसके अंतर्गत मोह , अपस्मार , आवेद , व्याधि , मरण , मूर्छा आदि संचारी भाव है। |
वीभत्स रस का स्थाई भाव vibhats ras ka sthai bhav
घृणा इस रस का स्थाई भाव है। क्योंकि ऐसे विचलित दृश्य को देखकर ही घृणा का भाव उत्पन्न होता है , जिसे हम वीभत्स रूप या वीभत्स रस कहते हैं।
वीभत्स रस के उदाहरण vibhats ras ke udaharan
सिर पर बैठो काग, आँखि दोउ खात निकारत
खींचत जी भहिं स्यार, अतिहि आनन्द उर धारत
गिद्ध जाँघ कह खोदि-खोदि के मांस उचारत
स्वान आँगुरिन काटि-काटि के खान बिचारत
बहु चील्ह नोंचि ले जात तुच, मोद मठ्यो सबको हियो
जनु ब्रह्म भोज जिजमान कोउ, आज भिखारिन कहुँ दियो
इस पंक्ति में मृत जीव का वर्णन है , जिसके सिर पर कौवा बैठे हैं जो आंख निकाल कर खा रहे हैं। चारों ओर से सियार घेर कर उस लाश को नोच रहे हैं और आनंद की अनुभूति कर रहे हैं।
गिद्ध उस मृत के मासों को नोच रहा है तथा कुत्ते उसे काट काट कर खा रहे हैं।
चील तथा अन्य जीव भी इस मृत जीव का आनंद लेकर भक्षण कर रहे हैं।
यह दृश्य बेहद ही विचलित करने वाला है। इस दृश्य को देखकर मन में घृणा का भाव उत्पन्न होता है।
यहां वीभत्स रस की अभिव्यक्ति हुई है।
वीभत्स रस क्या है ? vibhats ras kya hai
परंपरागत इंद्रिय जनित ग्लानि के स्थान पर मानसिक घृणा को वीभत्स रस का स्थाई भाव निश्चित किया है। मानसिक घृणा का भाव प्रेम के बिल्कुल समकक्ष भाव है।
उसमें प्रेम जितनी ही तीव्रता और व्यापकता है।
जिस प्रकार प्रेम के अनेक आलंबन रूप होते हैं – भाई-भाई का प्रेम , मित्र प्रेम , माता-पुत्र का प्रेम , पिता-पुत्र का प्रेम , देश प्रेम , प्रकृति प्रेम ,पति-पत्नी का प्रेम। यहां तक कि मानव-मानव का प्रेम।
उसी प्रकार घृणा के आलम्बनो की भी कोई सीमा नहीं है। बल्कि घृणा का आलंबन प्रसार प्रेम से अधिक दिखाई देता है।
व्यक्ति चरित्र के प्रति घृणा , रिश्वतखोरी , विलासिता , वेश्यगामिता , व्यभिचारीता , छुआछूत , संप्रदायिकता आदि अनेक सामाजिक बुराइयों के प्रति घृणा , धार्मिक पाखंडता , भ्रष्टाचार , अन्याय , नैतिक-पतन , अपकर्म आदि अनेक विषय हो सकते हैं।
इस रस के बारे में एक भ्रांति परंपरागत स्वरूप के कारण या प्रचलित है कि इस का चित्रण साहित्य में कम होता है।
पर घृणित व्यक्ति चरित्रों के रूप में प्राचीन साहित्य में तथा सामाजिक , धार्मिक , सांस्कृतिक बुराइयों तथा व्यक्तिगत दूषित मानोवृतियों के रूप में विशेषतः आधुनिक साहित्य में वीभत्स रस का खूब प्रयोग हुआ है।
प्रेमचंद जैसे सामाजिक कथाकारों का बीज भाव घृणा ही है। सेवासदन , सरकार तुम्हारी आंखों में जैसे सैकड़ों उपन्यास वीभत्स रस प्रधान है।
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निष्कर्ष –
उपर्युक्त अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि वीभत्स रस घृणा का विषय है। अतः इसे घृणित वस्तुओं को देखकर अनुभव किया जा सकता है।
यही कारण है कि घृणा वीभत्स रस का स्थाई भाव है। विभाव अनुभाव तथा संचारी भाव के योग से इसकी निष्पत्ति होती है।
किसी भी मृत व्यक्ति या क्षत-विक्षत शरीर को देखकर मन में घृणा का भाव उत्पन्न होता है , वहां वीभत्स रस माना जाता है।
आशा है यह लेख आपको पसंद आया हो , आपके ज्ञान की वृद्धि हो सकी हो , आपकी समझ इस रस के प्रति बड़ी हो।
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