भाषा की प्रकृति तथा परिभाषा
भाषा की प्रकृति तथा परिभाषा
प्रश्न
भाषा से क्या अभिप्राय है ? भाषा की परिभाषा देते हुए उसकी प्रकृति स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – मुख्य तत्त्व निम्मनलिखित है –
भाषा शब्द संस्कृत की ‘ भाषा ‘ धातु से निर्मित है। जिसका अर्थ है ‘ बोलना ‘ |
- ध्वनियाँ किसी ‘ अर्थ ‘ की प्रतीक होती है। यह ‘ अर्थ ‘ सहजता नहीं बल्कि माना हुआ होता है।
- यादृच्छिक का अर्थ है ‘ जैसी इच्छा हो ‘ अर्थात किसी एक भाषा को बोलने वाले लोग अपनी इच्छा के अनुसार कुछ ध्वनि समूह का एक अर्थ मान या निश्चित कर लेते हैं।
- जैसे तीन ध्वनिया है म , क , ल इन तीनों ध्वनियों का समूह बना दें तो वह होगा ‘ कमल ‘ जिसे लोगों ने एक ‘ फूल ‘ के रुप में मान लिया है।
- यदि इसे बिगाड़ कर म, क , ल – मकल कर दिया जाए तो , ध्वनि समूह निरर्थक हो जाएगा।
- यही व्यवस्था वाक्य के स्तर पर भी आवश्यक होती है। जैसे – ‘ वह गाना गाएगा ‘ यह वाक्य व्यवस्था को बिगाड़ दिया जाए ‘ हव नागा एगजा ‘ तो वाक्य निरर्थक हो जाएगा।
परिभाषा
- उच्चारित यादृच्छिक ध्वनि प्रतीकों की वह व्यवस्था है जिसके द्वारा समाज विशेष के लोग भाव विचारों का आदान – प्रदान करते हैं।
- मानव के मुख से निकली वह सार्थक ध्वनियां जो दूसरों तक अपनी बात पहुंचाने का काम करती है भाषा कहलाएगी।
- भाषा वह साधन है जिसके द्वारा हम बोलकर या लिखकर अपने मन के भाव या विचार दूसरों तक पहुंचाते हैं , दूसरों के भाव और विचार सुनकर या पढ़कर उसे ग्रहण करते हैं।
भाषा की प्रकृति
- मानव स्वभाव की तरह भाषा का भी अपना स्वभाव होता है , उसका यह स्वभाव प्रकृति , भौगोलिक परिवेश , जीवन पद्धति , ऐतिहासिक घटनाक्रम , सामाजिक सांस्कृतिक और विज्ञान के क्षेत्र में होने वाले विकास आदि के अनुरूप बनता और ढलता है।
भाषा की प्रकृति निम्नलिखित है –
सामाजिकता
- भाषा के लिए समाज का होना आवश्यक है।
- समाज के बिना भाषा की कल्पना नहीं की जा सकती। अतः भाषा एक सामाजिक संस्था है।
अर्जन
- भाषा संस्कार रूप में ग्रहण करते हैं
- व्यक्ति अनुकरण , व्यवहार अभ्यास से भाषा को ग्रहण करता है।
परिवर्तनशीलता
- भाषा निरंतर परिवर्तनशील रहती है।
- कुछ परिवर्तन प्रयोग से घिसने तथा बाहरी प्रभाव के कारण आते हैं।
गतिशीलता
- भाषा का कोई अंतिम रूप नहीं है।
- वह सदा गतिमान रहकर विकास करती है
- भाषा को ‘ बहता नीर ‘ कहा गया है
कठिनता से सरलता की और
- भाषा कठिनता से सफलता की ओर चलती है।
- कठिन लगने वाली ध्वनियां भाषाओं में कम होती है।
- आदमी आसानी चाहता है। कम से कम शब्दों में काम चलाना चाहता है।
भौगोलिक तथा ऐतिहासिक सीमा
- प्रत्येक भाषा की अपनी भौगोलिक और ऐतिहासिक सीमा होती है।
- प्रत्येक भाषा किसी विशेष काल से आरंभ होकर इतिहास के निश्चित काल तक व्यवहार में रहती है।
निजी संरचना
- प्रत्येक भाषा की अपनी संरचना अलग-अलग होती है।
- लिंग वचन कारक के अतिरिक्त वाक्य गठन आदि क्षेत्रों में हर एक भाषा अपनी निजी विशेषता के लिए होती है।
स्थूलता से स्वच्छता की ओर
- भाषा आरंभ में स्थूल से सूक्ष्म भावों को व्यक्त करने की क्षमता उनमें नहीं थी।
- आवश्यकता तथा प्रयोग के द्वारा उसमें सूक्षम भाव एवं विचार अभिव्यक्त का गुण आता चला जाता है।
भाषा के प्रकार्य
=> विचारों के आदान – प्रदान का महत्वपूर्ण साधन है।
=> इसके द्वारा मनुष्य अपनी अनुभूतियों (विचारों) तथा भावों को व्यक्त करता है। साथ ही सामाजिक संबंधों की अभिव्यक्ति का उपकरण भी उसे बनाता है।
=> अपनी इस प्रकृति के कारण भाषा एक और मानसिक व्यापार और दूसरी और सामाजिक व्यापार से जुड़ी है।
=> मानसिक व्यापार चिंतन प्रक्रिया तथा सामाजिक व्यापार संप्रेषण प्रक्रिया पर आधारित होता है। इन दोनों की अपनी व्यवस्था है तथा दोनों में अन्योन्याश्रित संबंध है।
=> प्रसिद्ध फ्रांसीसी भाषा वैज्ञानिक ‘ सस्यूर ‘ के विचारों से प्रभावित होकर प्राग स्कूल की भाषा वैज्ञानिक विचारधारा ने आरंभ से ही भाषिक प्रकार्यों के अध्ययन को महत्व दिया।
=> वस्तुतः संप्रेषण व्यापार विभिन्न सामाजिक भूमिकाओं के साथ जुड़ा होता है।
=> संप्रेषण व्यवस्था के विभिन्न उपकरण या उपादान है इसमें ‘ वक्ता ‘ और ‘ श्रोता ‘ की भूमिका महत्वपूर्ण है।
=> वक्ता अपने विचारों को दूसरों तक संप्रेषित करता है तथा दूसरों के द्वारा संप्रेषित विचारों को ग्रहण करता है , तभी भाषा का कार्य संपादित होता है और बातचीत संभव होता है।
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