नदी तथा जल संरक्षण | nadi ka sanrakshan | bhaarat ki nadiya | River protection

नदी तथा जल संरक्षण – वैसे तो हमारी पृथ्वी का लगभग 71 प्रतिशत क्षेत्र पानी से घिरा है लेकिन इस समस्त जल क्षेत्र में खारे पानी की बहुलता है। पृथ्वी के जल का लगभग 97 प्रतिशत भाग महासागर में स्थित है। शेष 3% मीठा पानी या शुद्ध है। इस शुद्ध पानी का भी लगभग 69 प्रतिशत भाग हिमनद में बर्फ रूप में जमा है। इस प्रकार पृथ्वी पर मीठे या शुद्ध जल की मात्रा 1% से भी कम है। पृथ्वी पर मीठे जल के पारिस्थितिकी तंत्र में नदियों , स्रोतों , झरनों , झीलों , तालाबों , भूजल एवं नमभूमियों के क्षेत्र मुख्य है। इन पारिस्थितिकी तंत्र में मानव के लिए नदियों का विशेष महत्व है।

नदी तथा जल संरक्षण का महत्व

पृथ्वी पर उपस्थित कुल शुद्ध पानी का केवल 0.3 प्रतिशत ही। नदियों और झीलों में स्थित है और इसी पानी को हम दैनिक जीवन में सबसे अधिक उपयोग में लाते हैं। प्रकृति नदी बेसिना में पानी का संचय कर मानव के साथ ही विभिन्न वनस्पतियों और पशु पक्षियों के लिए मीठा पानी उपलब्ध कराती है। मानवीय आबादी का एक बहुत विशाल समूह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से अपनी उत्तरजीविता के लिए नदियों पर आश्रित रहता है। दुनिया की 41 प्रतिशत आबादी नदी क्षेत्र के आस पास रहती है।

 

नदियां

नदी पृथ्वी सतह पर ऊंचाई से ऊंचाई की ओर बहती है। नदियों का उद्गम स्रोत हिमनद झील या झरने हो सकते हैं। एक लघु स्रोत के रूप में शुरू होने वाली नदी अपने रास्ते से मिलने वाली अनेक छोटी जल धाराओं के कारण एक बड़ी धारा का रूप धारण कर सकती है।

अंततः नदी महासागरों या खाइयों में जाकर मिल जाती है। वास्तव में नदी का प्रवाह नवीकरण योग्य जल संसाधनों को प्रदर्शित करता है। नदी का वैश्विक जल चक्र और शुद्ध पानी की आपूर्ति में विशेष महत्व होता है। नदियां विद्युत उत्पादन , सिंचाई , मनोरंजन और पर्यटक में विशेष भूमिका निभाता है। नदियां मानव उपयोग के लिए पानी उपलब्ध कराने के साथ-साथ सुक्ष्म पोषक तत्वों को धारण करती है। मानव समुदाय के लिए भोजन आय और रोजगार जुटाने के के कारण नदियों को जीवन रेखा भी कहा जाता है।

जैव विविधता को बनाए रखने में नदियों का अहम योगदान है।नदियों में मीठे जल परिवेश की अनेक प्रजातियां निवास करती है , हालांकि नदियों के जल के प्रदूषित होने के कारण वहां उपस्थित जैव विविधता पर संकट के बादल छाए हैं। प्रदूषण के इस संकट के कारण अनेक प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है।

मीठे जल की अब तक ज्ञात 10000 प्रजातियों में से 20% प्रजातियां या तो विलुप्त हो चुकी है या उनके विलुप्त होने का खतरा है। बांधों और नहरों द्वारा नदियों के प्रकृति परिवेश में अपने परिवर्तन के कारण वहां रहने वाले जीव – जंतुओं की प्रजातियां अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। इसके अलावा प्रदूषण की मार ने अनेक प्रजातियां के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया।

 

मानव द्वारा छेड़छाड़ –

मानव समुदाय ने पिछले किसी भी कालखंड की तुलना में विगत 50 वर्षों के दौरान पारिस्थितिकी तंत्र में व्यापक बदलाव किया है। किसी नदी का जीवनदाई स्वरूप सिंचाई कार्यों और विशाल बांधों के कारण धीरे – धीरे वितरित होता जाता है। आज के समय में कई नदियों के जल प्रवाह से छेड़छाड़ करने के परिणाम स्वरुप और उसका वर्चस्व ही खतरे में पड़ गया है।

जिसके कारण विश्व की अनेक नदियां अपने अंतिम पड़ाव से पहले ही सूख जाती है। इसका एक उदाहरण रियो ग्रैंड नदी है जो संयुक्त राज्य अमेरिका और मेक्सिको की खाड़ी तक पहुंच ही नहीं पाती। इस प्रकार किसी समय विशाल समझी जाने वाली नदियां जिसमें सिंधु नदी , मिस्र की नील नदी तथा संयुक्त राज्य अमेरिका की कोलोराडो नदी शामिल है को महासागर में मिलने के लिए संघर्ष करना पड़ता है।

आज बहती नदियों को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

आज देशवासियों के सम्मुख उपस्थित चुनौतियां में गरमाती धरती और जलवायु परिवर्तन प्रमुख है। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अन्य पारिस्थितिकीय क्षेत्रों के साथ ही नदी पारिस्थितिकी तंत्र पर भी दिखाई देता है। ऐसी नदीयां जो हिमनदों के जल पर आश्रित है उन्हें जलवायु परिवर्तन से अधिक खतरा है। सिंधु नदी तथा नील नदी जलवायु परिवर्तन के संकट से जूझ रही है। नील नदी बेसिन वाष्पीकरण के उच्च डर के चलते तापमान में होने वाली वृद्धि के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है।

हिमालय के हिमनद उत्तर भारत की नदियों के वर्तमान प्रवाह में जल की 30 से 40% मात्रा का योगदान देते हैं। ऐसे में हिमनदी के पिघलने के कारण इन नदियों के प्रवाह में परिवर्तन होने की संभावना व्यक्त की जा रही है।

 

जल प्रदूषण से हानियां –

बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि होने के कारण बढ़ती मानवीय गतिविधियां के कारण वैश्विक स्तर पर जल संबंधी अनेक प्रकार की समस्याएं प्रकट होने लगी , जिनमें शुद्ध जल की कमी के साथ साथ प्रदूषित जल के सेवन से होने वाली बीमारियों ने सर्वमान्य का ध्यान जल की गुणवत्ता व उसकी पर्याप्त उपलब्धता को बनाए रखने की ओर आकर्षित किया।

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जल संबंधी चिंताओं पर चर्चा होने लगी इसी क्रम में संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2003 को शुद्ध जल का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित किया। ऐसे ही एक प्रयास के तहत संयुक्त राष्ट्र संघ ने सन 2005 से 2015 के अंतर्राष्ट्रीय दशक को जीवन के लिए जल्द घोषित किया है।

जल संरक्षण के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों के साथ इस विषय को लेकर जनमानस के मध्य जागरूकता का प्रचार कर उनके मध्य उपस्थित परंपरागत जल के संरक्षण एवं शुद्धिकरण संबंधी विधियों की और पर्याप्त ध्यान दिए जाने पर ही जल की गुणवत्ता और उपलब्धता को बनाए रखा जा सकता है।

कृषि क्षेत्र में नदी जल का विशेष योगदान रहा है।

वैश्विक स्तर पर शुद्ध जल का लगभग 70% भारतीय सिंचाई के रूप में उपयोग किया जाता है। भारत के संदर्भ में बात की जाए तो गंगा एवं उसकी सहायक नदियों के जल प्रवाह की अनुमानित 60 % मात्रा कृषि में उपयोग की जाती है।

 

औद्योगिकरण –

‘ वर्ल्डवाइड फंड फॉर नेचर ‘ के अनुसार विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्रों में तेजी से होते परिवर्तनों के पीछे औद्योगिकीकरण मुख्य कारण रहा है। वैश्विक स्तर पर उद्योगों में शुद्ध जल की लगभग 22 प्रतिशत मात्रा खप जाती है। उद्योगों में जल की खपत लगातार बढ़ रही है , जिसके आगामी दो दशक में दुगना होने की संभावना है।

औद्योगिक कार्यों के अतिरिक्त बढ़ती सिंचाई तथा घरेलू उपयोग के चलते पानी के अति दोहन से उत्पन्न प्रदूषण की समस्या के कारण गंगा जैसी विशाल एवं पवित्र नदी को भी अपनी सुंदरता को बनाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। ऐसा ही हाल संयुक्त राज्य अमेरिका की रियो ग्रांडे नदी का भी है। प्रदूषण के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका की दि रिओ ग्रान्डी नदी की भी हालत खराब है। चीन की यांग्सी नदी अत्यधिक प्रदूषण के चलते अपना जीवनदायिनी रुप खोती जा रही है।

एशिया की विशाल नदी मेकांग आज अति मत्स्ययन यानी ओवर फिशिंग की समस्या का सामना कर रही है। विश्व की नदियों के अलावा देश की पवित्र और करोड़ों लोगों की जीवन रेखा कहलाने वाली गंगा नदी की बात करें तो पाएंगे कि आज यह नदी अपने प्राचीन वैभवशाली स्वरूप से कोसों दूर है।

कभी अमृत के समान समझा जाने वाला गंगाजल आज प्रदूषण का शिकार हो चला है। जैव विविधता की दृष्टि से समृद्ध रही गंगा नदी आज प्रदूषण के चलते अपना जीवनदाई रूप से मुंह मोड़ रही है। गंगा के जल को पानी नहीं वरन तीर्थ माना जाता रहा है। महर्षि वेदव्यास ने गंगा को कलयुग का सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ बताया है।

इसके शुद्धिपत्रक गुणों पर IIT कानपुर , नागपुर में स्थित राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान और अनेक विदेशीवैज्ञानिकों द्वारा शोध किया जा चुका है। इन सभी शौधों से गंगाजल के बेमिसाल गुणों के बारे में पता चला है। Gangaajal में सड़न रोधी जीवाणुओं का पाया जाने वाला विशिष्ट बनाता है। Gangaajal को आम पानी ना मानकर पवित्र जल माना जाता है। इसका जल हजारों-लाखों वर्षों से करोड़ों लोगों को पोस्ता आ रहा है।

आज औद्योगीकरण और दहन कृषि पद्धति तथा शहरीकरण के चलते नदी जल का अंधाधुंध दोहन किया जा रहा है। जिससे पानी की गुणवत्ता और मात्रा में लगातार कमी आ रही है। कई क्षेत्रों में नदी जल में इतने खतरनाक रसायन और भारी तत्वों का प्रवेश हो गया है कि वहां पानी अब किसी भी जीवन के लिए सुरक्षित नहीं बचा है। घरेलू एवं औद्योगिक तरल अपशिष्ट को सीधे नदी में बहा दिए जाने के कारण नदियों में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है।

कृषि में उपयोग किए गए रसायन , रासायनिक खाद , खरपतवारनाशी एवं कीटनाशी की अधिक मात्रा पानी में बहाकर नदी व अन्य जल स्रोतों में पहुंचकर जल को प्रदूषित करती है। इसके अतिरिक्त जैविक पदार्थों को और वाहिद जल-मल आदि सभी नदियों का पानी प्रदूषित होता है। भारत में मानव और पशु अपशिष्ट के प्रबंधन की कोई उचित व्यवस्था नहीं होने से नदियां अत्यधिक प्रदूषित होती है। बहुत तेजी से बढ़ते महानगरों में अपशिष्ट के प्रबंधन की समस्या अधिक गंभीर रूप धारण करती जा रही है।

दूषित जल के उपयोग के कारण प्रतिरोधक क्षमता घटने से अनेक बीमारियों के फैलने का खतरा बना रहता है। इसलिए हम नदियों की साफ सफाई का विशेष ध्यान रखने के अलावा वाहित जल – मल का उपयुक्त प्रबंधन कर नदियों की स्वच्छता को बनाए रखना होगा।

लुगदी एवं कागज उत्पाद जैसी औद्योगिक गतिविधियों से काफी मात्रा में जैविक पदार्थ नदियों में पहुंचते हैं जिससे नदी पारिस्थितिकी तंत्र पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। नदी जल में अत्यधिक मात्रा में जैविक पदार्थों के कारण नदी में घुली ऑक्सीजन की मात्रा कम होने लगती है। जिसके कारण वहां उपस्थित मछलियां एवं अन्य जीवों को खतरा उत्पन्न हो जाता है।इलेक्ट्रोप्लेटिंग रंगाई के कारखाने और धातु आधारित उद्योगों आदि के कारण भारी तत्वों की काफी मात्रा नदियों में पहुंचती है जो जल में घुल कर मानव समाज के साथ-साथ नदी जल पर आश्रित पशु पक्षियों के लिए खतरा उत्पन्न करती है।

पेंट , प्लास्टिक आदि उद्योगों के अलावा गाड़ी की धुँआ भी शीशे पारे जैसे भारी तत्व की काफी मात्रा निकलती है। जैसे जो कैंसर रोग के कारण बनती है इन तत्वों के संदूषित जल के उपयोग का परिणाम चर्चा त्वचा रोग के रूप में दिखाई देती है।

नदियों को जीवन की गतिशीलता का प्रतीक माना गया है। निरंतर बहने वाली नदियां मानव को सतत कार्य करने की प्रेरणा देती रहती है। समय के साथ – साथ जल का अनेक स्रोतों में विभिन्न प्रकार के से उपयोग किया जाने लगा है। अनेक स्थानों पर प्रचुर जल उपलब्ध कराने वाली नदियां विकास की आधुनिक परिभाषा के रूप में उभरी है , लेकिन आज मानव की विकास की गति इन नदियों के प्रवाह को चुनौती दे रही है , जिसके कारण सदियों से प्रवाहित होने वाली नदियों के सामने अपने अस्तित्व को लेकर ही संसय बना हुआ है।

हिमालय की अनोखी पारिस्थितिकी के साथ छेड़छाड़ के प्रति चिंता व्यक्त की जाती रही है टिहरी बांध परियोजना को लेकर कुछ समय तक काफी विरोध होता रहा है। नदियों में आने वाली बाढ़ से बचने के लिए नदी घाटियों के विकास के लिए क्रियान्वित योजनाओं का सर्वेक्षण और अन्वेषण किया जाना चाहिए।

इसके अलावा अवसाद तथा जल गुणवत्ता संबंधी आंकड़ों का संग्रहण किया जाना भी इस दिशा में लाभप्रद साबित होगा। बाढ़ की आपदा से बचने के लिए बाढ़ प्रबंधन और बाढ़ पूर्वानुमान प्रणाली का आधुनिकीकरण किया जाना आवश्यक हो गया है , ताकि इससे होने वाली जान – माल की हानि को न्यूनतम किया जा सके।

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