नये गीत (गीत-फरोश) भवानीप्रसाद मिश्र
(Geet faros Bhwani prshad mishra)
“भवानी प्रसाद मिश्र” प्रगतिवाद के कवि हैं।प्रगतिवाद की शुरुआत सच्चितानंद हीरानंद वात्स्यान ( अज्ञेय ) से मानी जाती है।
‘नये गीत’ कविता में पूर्व तथा वर्तमान की तुलना की गई है।यह गीत द्वितीय विश्वयुद्ध के समय की है।
द्वितीय विश्वयुद्ध के समय डर और भय का माहौल लोगों में व्याप्त था।लोग आपस में भयभीत थे एक – दूसरे के प्रति अविश्वास का माहौल भी था।
उपमान ( तुलनात्मक वस्तुए ) पुराने हो गए हैं , आदि काव्य में भी आते थे और आधुनिक काव्य में भी प्रस्तुत है किंतु इसका प्रयोग अब किसी अनन्य उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाता है।प्रकृति वही है मगर समय बदल गया है , इसलिए आज के परिवेश के अनुकूल काव्य की रचना करनी चाहिए –
“बदल गए शास्वत सत्य
भर गया पुराणों में नव – कम्पन
नये गीत लिखने का मन है
तब तू काट पुराने पंख “
पहले चंद्रमा का रहस्य कोई नहीं जानता था।आज का वैज्ञानिक चंद्रमा पर पहुंचा ही नहीं बल्कि वह घर बनाने की कल्पना भी करता है और उसे सत्य करने के लिए प्रयत्न कर रहा है।
पूर्व समय में लोग लहरों से डरते थे , आज मानव ने जहाजों के माध्यम से उस लहरों पर सफर करना भी आरंभ कर दिया है , उसपर अपना वर्चस्व कायम किया है।उपमान का भी अर्थ बदला है पूर्व के युग में बादल को ” सांझ सुंदरी ” कहते थे जो अब बादल का उपमान ” रक्त “ हो गया है।पहले लोहे का प्रयोग हल के लिए किया गया था , किंतु आज अस्त्र-शस्त्र के लिए किया जाता है।पहले प्रेम को अधिक ताकतवर माना जाता था किंतु आज प्रेम का स्थान हिंसा ने ले लिया है।
बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति बाद शिक्षा दी के हिंसा से बचना चाहिए परंतु आज का ज्ञान – विज्ञान का प्रयोग अस्त्र – शस्त्र के निर्माण के लिए किया जा रहा है।निश्चित ही भवानी जी गीत फरोश गाविता के माध्यम से एक कवी की मजबूरी को व्यक्त कर रहे है।अपनी कविता में नए और पुराने उपमानो की तुलना भी कर रहे है –
नए गीत कविता (गीत फरोश) निम्ननलिखित है –
संवदिया फणीश्वर नाथ रेणु। sawadiya kahani in hindi | fanishwar nath renu ki kahani
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जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ,
मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ,
मैं किसिम-किसिम के गीत बेचता हूँ !
जी, माल देखिए, दाम बताऊँगा,
बेकाम नहीं है, काम बताऊँगा,
कुछ गीत लिखे हैं मस्ती में मैंने,
कुछ गीत लिखे हैं पस्ती में मैंने,
यह गीत, सख्त सरदर्द भुलाएगा,
यह गीत पिया को पास बुलाएगा !
जी, पहले कुछ दिन शर्म लगी मुझको;
पर बाद-बाद में अक्ल जगी मुझको,
जी, लोगों ने तो बेच दिये ईमान,
जी, आप न हों सुन कर ज्यादा हैरान –
मैं सोच-समझकर आखिर
अपने गीत बेचता हूँ,
जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ,
मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ,
मैं किसिम-किसिम के गीत बेचता हूँ !
बरखा रानी | वर्षा ऋतू की कविता | RAINY DAY POEM | POEM IN HINDI
महर्षि वाल्मीकि | जिन्होंने रामायण की रचना करके मानव समाज को जीवन का मूल मन्त्र दिया
यह गीत सुबह का है, गाकर देखें,
यह गीत गजब का है, ढाकर देखे,
यह गीत जरा सूने में लिक्खा था,
यह गीत वहाँ पूने में लिक्खा था,
यह गीत पहाड़ी पर चढ़ जाता है,
यह गीत बढ़ाए से बढ़ जाता है !
यह गीत भूख और प्यास भगाता है,
जी, यह मसान में भूख जगाता है,
यह गीत भुवाली की है हवा हुजूर,
यह गीत तपेदिक की है दवा हुजूर,
जी, और गीत भी हैं, दिखलाता हूँ,
जी, सुनना चाहें आप तो गाता हूँ !
जी, छंद और बे-छंद पसंद करें,
जी, अमर गीत और ये जो तुरत मरें !
ना, बुरा मानने की इसमें क्या बात,
मैं पास रखे हूँ कलम और दावात
इनमें से भाएँ नहीं, नए लिख दूँ,
मैं नए पुराने सभी तरह के
गीत बेचता हूँ,
जी हाँ, हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ,
मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ,
मैं किसिम-किसिम के गीत बेचता हूँ !
जी गीत जनम का लिखूँ, मरण का लिखूँ,
जी, गीत जीत का लिखूँ, शरण का लिखूँ,
यह गीत रेशमी है, यह खादी का,
यह गीत पित्त का है, यह बादी का !
कुछ और डिजायन भी हैं, यह इल्मी,
यह लीजे चलती चीज नई, फिल्मी,
यह सोच-सोच कर मर जाने का गीत !
यह दुकान से घर जाने का गीत !
जी नहीं दिल्लगी की इस में क्या बात,
मैं लिखता ही तो रहता हूँ दिन-रात,
तो तरह-तरह के बन जाते हैं गीत,
जी रूठ-रुठ कर मन जाते है गीत,
जी बहुत ढेर लग गया हटाता हूँ,
गाहक की मर्जी, अच्छा, जाता हूँ,
मैं बिलकुल अंतिम और दिखाता हूँ,
या भीतर जा कर पूछ आइए, आप,
है गीत बेचना वैसे बिलकुल पाप
क्या करूँ मगर लाचार हार कर
गीत बेचता हूँ।
जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ,
मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ,
मैं किसिम-किसिम के गीत बेचता हूँ !
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