मुगलों द्वारा दिल्ली में बनाई गई आखिरी इमारत में शाहजहां द्वारा बनाई गई जामा मस्जिद भी है , जोकि भारत की सबसे बड़ी मस्जिद है। मशहूर लाल किले के सामने बनी यह प्रभावशाली इमारत 17 वी शताब्दी कि मुगल कला का एक शानदार नमूना है।
जामा मस्जिद
यह मस्जिद 5000 मजदूरों और कारीगरों द्वारा 6 साल में बनकर तैयार हुई थी। इस इबादत के स्थान पर 400 वर्ग मीटर का प्रांगण है , जिसमें सीढ़ियों के द्वारा पहुंचा जा सकता है। पूर्वी द्वार से लगा गलियारा पहले शाही खानदान के लिए आरक्षित था।
जिसमें प्रत्येक के लिए एक संगमरमर का पत्थर लगा हुआ है।
नीले , लाल रंग के चौकोर पत्थर लगे हुए हैं जोकि आम आदमियों के लिए हैं। मस्जिद में बड़े-बड़े द्वार , स्तंभ और मेहराब होने के साथ संगमरमर के बने गुबंद और छतरियां है। प्रांगण स्तंभ वाली दीवारों से घिरा हुआ है और उसके कोने में गुबंद वाला मंडप है। पश्चिम में आयताकार इबादत की जगह 6.1 मीटर 27.5 मीटर की है जो कि एक ग्यारह नक्काशी किए हुए मेहराबों से घिरी हुई है।
इसके ऊपर खुदाई किए हुए सफेद और काले संगमरमर के पत्थर लगे हुए हैं।
प्रांगण के बीचों-बीच एक पानी की हौदी है जिसे नमाज अदा करने से पहले वजू के लिए प्रयोग किया जाता है।
मस्जिद के चारों कोनों में एक ऊंची भव्य विशाल मीनार भी है।
इसके मुख्य हाल के ऊपर सफेद और काले संगमरमर से बने तीन खूबसूरत गुबंद है , जो कि शाहजहां के समय की वास्तुकला की विशेषता है। यहां पर विशेष धार्मिक अवसरों पर सामूहिक इबादत होती है।
आज भी देश – विदेश से भ्रमण पर आए लोग यहां आकर नमाज अदा करते हैं।
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