लिपि शब्द सुनते ही मन मस्तिष्क में एक ऐसी भाषा की संकल्पना उभर कर आती है , जो हम नित्य-निरंतर प्रयोग करते हैं या जिसे हम जानते हैं किंतु जो हम समझ रहे हैं वह केवल भाषा है। लिपि , भाषा को लिखने का ढंग है।
इस लेख में लिपि किसे कहते हैं? परिभाषा , उदाहरण तथा महत्वपूर्ण प्रश्नों से परिचित हो सकेंगे जो परीक्षा के दृष्टिकोण से अहम है। यह लेख सभी स्तर के विद्यार्थियों के लिए है। विद्यालय तथा विश्वविद्यालय और प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले अभ्यार्थियों के लिए भी यह लेख लाभप्रद है।
लिपि किसे कहते हैं
ध्वनि चिन्हों को लिखने का ढंग लिपि कहलाता है।
- हिंदी भाषा – देवनागरी लिपि
- संस्कृत – देवनागरी
- नेपाली – देवनागरी
- मराठी – देवनागरी
- पंजाबी – गुरमुखी
- फ्रेंच , स्पेनिश , अंग्रेजी – रोमन
- अरबी , उर्दू – फारसी
विश्व भर में हजारों की संख्या में भाषा है , तथा अनेकों लिपियां है। यहां तक कि कितने ही लिपि की खोज में अभी भी शोध कार्य चल रहे हैं।
मुख्यतः तीन प्रकार की लिपियां अभी प्रचलित है
- चित्र लिपियां – जिसका प्रयोग चीन , जापान कोरिया आदि देशों में चित्र के द्वारा विचारों की अभिव्यक्ति की जाती है
- ब्राह्मी लिपियां – से देवनागरी , संस्कृत तथा दक्षिण एशिया एवं दक्षिण पूर्व एशिया की लिपियां विकसित हुई है।
- फोनेशियन लिपियां – जिसमें यूरोप , मध्य एशिया , उत्तरी अफ्रीका आदि देशों में प्रयोग की जाती है। लगभग संसार की संपूर्ण लिपियां इन्हीं तीन लिपियों के दायरे में है।
भाषा की मुख के द्वारा उच्चरित ध्वनियों को जिन्हें चिन्हों के द्वारा लिखा जाता है उसे लिपि कहते हैं।
देवनागरी लिपि (1000 से 1200 ईसवी) – इस का उद्भव भारत के प्राचीनतम ब्राह्मी लिपि से माना जाता है। देवनागरी नामकरण में दो पक्ष दिए गए हैं। मध्य युग में नागर स्थापत्य शैली थी जिसमें लिपि चिन्ह की आकृतियां चतुर्भुज के रूप में थी। इसी स्थापत्य शैली के आधार पर चतुर्भुज वर्णों वाली लिपि का नाम नागरी पड़ा।
देवनगर अर्थात काशी में इसके विकास होने के कारण इसे देवनागरी नाम से जाना गया।
संकेत तथा भाव आदि को लिखित रूप में व्यक्त करने की कला को लिपि माना गया है। भारत में लगभग समस्त लिपियों का आरंभ ब्राम्ही लिपि से माना जाता है। यह आदिकाल से है , प्रमाणिक रूप से वैदिक काल में आर्यों ने इस का प्रयोग किया था। बौद्ध कालीन समय मैं ब्राह्मी लिपि का प्रयोग चरम पर था।
गुप्त काल में ब्राह्मी लिपि के दो रूप देखने को मिले हैं –
१ उत्तरी ब्राह्मी
२ दक्षिणी ब्राह्मी।
नागरी लिपि का प्रयोग की शुरुआत आठवीं नौवीं सदी से मानी गई है। 10वीं से 12 वीं सदी के बीच प्राचीन नागरी से उत्तरी भारत की अधिकांश आधुनिक लिपियों का विकास हुआ।
इसकी दो शाखाएं १ पूर्वी शाखा व २ पश्चिमी शाखा है।
पश्चिमी शाखा – देवनागरी , राजस्थानी , गुजराती , महाजनी , कैथी।
पूर्वी शाखा – बांग्ला लिपि , असमी , उड़िया।
व्यंजन लेख- व्यंजन दो प्रकार से लिखे जाते हैं १ खड़ी पाई के साथ २ बिना पाई के साथ।
देवनागरी लिपि के विकास और प्रचार-प्रसार के लिए भारतेंदु हरिश्चंद्र के योगदान की सराहना की जाती है। उन्होंने 1882 में शिक्षा आयोग के द्वारा पूछे गए प्रश्न का जवाब देते हुए कहा था – ‘ सभ्य समाज में नागरिकों की बोली और लिपि का प्रयोग होता है। भारत एक मात्र देश है जहां अपनी भाषा और बोली का प्रयोग अदालत में नहीं किया जाता। यहां की अदालतों में शासकों की मातृभाषा का प्रयोग किया जाता है , प्रजा की भाषा का नहीं। ‘
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अल्प आयु में हिंदी साहित्य को नई दिशा प्रदान की थी। देवनागरी लिपि तथा हिंदी भाषा , खड़ी बोली का अभूतपूर्व विकास किया था।
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देवनागरी लिपि सर्वश्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि
- जो बोला जाता है अर्थात उच्चारण और लिखित में कोई फर्क नहीं रह जाता।
- एक शब्द या वर्ण में दूसरे शब्द अथवा वर्ण का कोई भ्रम नहीं रहता।
- एक ध्वनि के लिए एक ही वर्ण संकेत होता है।
- जो ध्वनि का वर्ण है वही वर्ण का नाम भी है।
- इस में कोई मुक वर्ण नहीं है।
- देवनागरी के अंतर्गत संस्कृत भाषा , हिंदी भाषा , मराठी भाषा , नेपाली भाषा की अभिव्यक्ति होती है।
चित्र लिपियां
संसार में चित्र लिपियों को सबसे पुराना माना गया है। आदिमानव अपने विचारों और संदेशों को बड़ी-बड़ी शीला पर लिखा करते थे। चित्र तथा आकृति देकर अपने विचारों को उसके भीतर समेटना चाहते थे। जिसका प्रमाण बड़ी-बड़ी गुफा , भीम बेटिका आदि है। जहां पर उस काल की चित्र लिपियों का संकलन आज भी देखने को मिलता है। आज भी जापान , चीन तथा मिस्र की भाषाओं को देखें तो वह चित्र आकृति पर आधारित है। इसका विकास चित्र लिपियों से ही माना जाता है।
भारतीय मान्यता
भारतीय मान्यता के अनुसार लिपि का विकास आदि अनंत काल से चला आ रहा है। भारतीय वेद , पुराण , धर्म शास्त्र किसी ना किसी लिपि में ही लिखे गए हैं। जिनका आज सभी भाषा में साक्ष्य उपलब्ध हैं। यहां तक की रामायण और महाभारत भी देवताओं के द्वारा लिखे गए हैं। अर्थात यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि भारत में लिपि तथा भाषा का ज्ञान सबसे प्राचीन है।
ब्रेल लिपि
यह लिपि विशेष रूप से दृष्टिबाधित (Blind) लोगों के लिए होती है। यह छह बिंदुओं पर आधारित होती है , दृष्टिबाधित लोग अपनी उंगलियों के सहारे इस का अध्ययन करते हैं। किंतु यह अन्य भाषाओं की भांति नहीं होती। हिंदी अंग्रेजी या कोई विशेष भाषा नहीं अपितु उन सभी का समग्र रूप है। इस की खोज लुइस ब्रेल ने की थी , कुछ समय तक सेना ने इस लिपि को अपनाया था। सेना ने इसे अंधेरे में भी संदेश पढ़ने के लिए कारगर माना था क्योंकि यह लिपि उंगलियों के स्पर्श से पढ़ी जाती है , जिसमें उजाले की आवश्यकता नहीं होती। तुम्हें क्या हो ना फिल्मी स्टाइल में।
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Author’s words
इस लेख के रचयिता तथा लेखक का नाम है निशीकांत जिनकी योग्यता है B.A . ( हिंदी विशेष ) दिल्ली विश्वविद्यालय , B.Ed इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय दिल्ली , M.A. (हिंदी) दिल्ली विश्वविद्यालय। हिंदी में विशेष जानकारी होने के कारण मैं निशिकांत आपको इस विषय में जितना हो सकता है अपनी तरफ से सही जानकारी देने का प्रयास किया है। अगर किसी प्रकार का दोष आपको यहां प्राप्त होता है तो जरूर हमें सूचित करें।
लिपि एक बहुत महत्वपूर्ण विषय है जिस पर उतनी मात्रा में जानकारी उपलब्ध नहीं है. परंतु आपने बहुत बढ़िया तरीके से परिभाषित किया है और अगर कोई आपके लेख को अच्छे से पढ़े तो इस विषय को कभी भूल ना पाए.
लिपि की शब्दावली सीमित होती है या नहीं
Thank you for sharing such really nice information, sir. I appreciate your notes on dialect.