महाराणा प्रताप के चेतक की कविता – महाराणा प्रताप किसी परिचय के मोहताज नहीं है। वह मेवाड़ के महान योद्धा थे , जिन्होंने उस समय विदेशी आक्रांताओं को चुनौती दी और उनके हौसलों को पस्त किया। यह हौसले भारत की तमाम सीमा को पार करते हुए मेवाड़ तक पहुंच गए थे। अकबर जैसे महान शक्तिशाली सेना का भी मनोबल उन्होंने चकनाचूर कर दिया था।
हल्दीघाटी का वही रणक्षेत्र जहां अकबर ने अपने घुटने टेक दिए और वापस हो गया। ऐसे महाराणा प्रताप जिन्होंने भारत के गौरव और मान – सम्मान की लाज बचाई। महाराणा का भाला और तलवार इतना तीव्र वार करता था कि शत्रु के समझ से बाहर था।
महाराणा प्रताप का भाला इतना भारी था , आप इससे ही अनुमान लगा सकते हैं कि वह ढाल जो महाराणा प्रताप पहना करते थे उसका वजन 80 किलोग्राम माना जाता है। ऐसे महान योद्धा का वाहन भी महान ही होना चाहिए
महाराणा प्रताप के चेतक की कविता – Maharan pratap poem
रण बीच चौकड़ी भर-भर कर
चेतक बन गया निराला था
राणाप्रताप के घोड़े से
पड़ गया हवा का पाला था
जो तनिक हवा से बाग हिली
लेकर सवार उड़ जाता था
राणा की पुतली फिरी नहीं
तब तक चेतक मुड़ जाता था
गिरता न कभी चेतक तन पर
राणाप्रताप का कोड़ा था
वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर
वह आसमान का घोड़ा था
था यहीं रहा अब यहाँ नहीं
वह वहीं रहा था यहाँ नहीं
थी जगह न कोई जहाँ नहीं
किस अरिमस्तक पर कहाँ नहीं
निर्भीक गया वह ढालों में
सरपट दौडा करबालों में
फँस गया शत्रु की चालों में
बढ़ते नद-सा वह लहर गया
फिर गया गया फिर ठहर गया
विकराल वज्रमय बादल-सा
अरि की सेना पर घहर गया
भाला गिर गया गिरा निसंग
हय टापों से खन गया अंग
बैरी समाज रह गया दंग
घोड़े का ऐसा देख रंग
शब्दार्थ –
रण – युद्ध भूमि
अरिमस्तक – दुश्मन का माथा
अरि – दुश्मन
हय – घोड़ा
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आज हम महाराणा के घोड़े चेतक की बात करने जा रहे हैं, जो युद्ध भूमि में हवा की गति से शत्रुओं पर प्रहार करता और महाराणा की तेज बुद्धि का परिचय यह चेतक दिया करता था। राणा कुछ सोचते उससे पूर्व चेतक उनके सोच की पूर्ति कर देता। महाराणा की आंखों की पुतली फिरती उससे पूर्व चेतक उस स्थान पर पहुंच जाता और महाराणा अपने युद्ध कौशल से शत्रुओं के मस्तक को धड़ से अलग कर धरती मां को समर्पित करते।
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समापन
चेतक इतना निर्भीक था कि वह शत्रुओं के किले को भेद कर वापस आ जाता और महाराणा के शौर्य में चार चांद लगाता। बड़े-बड़े शत्रु भी चेतक पर सवार महाराणा को देखते थर-थर कांपते और युद्ध भूमि छोड़कर भागने को विवश हो जाते।
यही कारण है चेतक जैसा कोई और घोड़ा नहीं हुआ और ना ही भविष्य में होगा। चेतक युद्ध में लड़ते – लड़ते वीरगति को प्राप्त हुआ। आज भी उसका मकबरा भारत में मौजूद है। चेतक की मिसाल भारत ही नहीं अपितु विश्व में दी जाती है, जिसने महाराणा प्रताप की सेवा में अपना जीवन न्योछावर किया।
Bachpan me ye kavita padhai gayee thee jo aaj bhi yaad hai.
Bahut acchi aur prernadayak kavita hai.
Dhanyawad.
This is most beautiful poem