दीनबंधु की कहानी deenbandhu story in hindi

भारत में स्वतंत्रता सेनानी और देश की सेवा करने वाले लोगों की कभी कोई कमी नहीं हुई है। भारत मां के लाल ने सदैव सेवा की है।आज के लेख में हम दीनबंधु की कहानी लिख रहे हैं। यह कहानियां कुछ प्रमुख घटनाओं तथा जनश्रुतियों के आधार पर लिखी गई है।

दीनबंधु की कहानी

एक समय की बात है दीनबंधु ने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष करते हुए मॉरीशस,वर्मा आदि जैसी जगहों से भारतीय बंधुआ मजदूरों को छुड़ाकर अपने देश भारत ले आए थे। इस कारण अंग्रेज उन्हें हमेशा अपनी नजरों में रखा करते थे। उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती दी थी अंग्रेजी जासूसी विभाग सदैव उनके क्रियाकलापों पर नजर रखा करती थी।

एक दिन अंग्रेजों ने जासूसी के इरादे से अपने एक जासूस को उनके घर भेजा। उस जासूस ने चितरंजन दास के घर पहुंचकर आपसी भाईचारे के तहत खूब बात की।

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देशबंधु बी भली-भांति उसकी मंशा को जान रहे थे।

घड़ी में जैसे ही आठ बजा दीनबंधु उठ खड़े हुए , उन्होंने कहा श्रीमान अब मैं चलता हूं मेरी प्रार्थना का समय हो गया है। जासूस ने उनके साथ चलने की इच्छा जाहिर की ,देशबंधु मान गए और उन्हें अपने मंदिर लेकर गए।

अंग्रेजी जासूस ने इससे पूर्व मंदिर नहीं देखा था।

वह उन्हें भीड़ भाड़ चौराहों और बड़ी इमारतों से दूर एक ग्रामीण बस्ती में ले गए। वहां उन्होंने एक झोपड़ी में दस्तक दी।

जासूस भीतर मन से भयभीत था किंतु वह निश्चिंत भी था कि दीनबंधु उनके साथ कुछ गलत नहीं करेंगे।

वह झोपड़ी में दाखिल हुए वहां एक बुजुर्ग हाथों में पंखा लिए एक लड़के को हांक रहा था जो खाट पर निढाल अवस्था में पड़ा था। दीनबंधु ने उनके हाथ से पंखा ले लिया और उन्हें जाने को कहा। वह बुजुर्ग वहां से चला जाता है।

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दीनबंधु उस जासूस से कहते हैं यही मेरा मंदिर है!

यह बुजुर्ग रोज अपने काम पर जाता है,जिससे दो-चार पैसे कमा लेता है। यह लड़का क्षय रोग से ग्रसित है इसलिए मैं ऐसे जरूरतमंद के घर जाकर उनकी सहायता करता हूं ,यही मेरे लिए मंदिर है।वह जासूस आश्चर्यचकित रह गया।उसने सरकारी विभाग की नौकरी छोड़कर देशबंधु के प्रभाव में समाज सेवा से जुड़ गया।

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निष्कर्ष –

दीनबंधु अर्थात जो दीन-दुखियों की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर देता है। उनकी सेवा ही उसके जीवन का एकमात्र उद्देश्य रहता है। ऐसे दीनबंधु भारत में सदैव रहे हैं।महावीर कर्ण जिन्होंने अपने द्वार से किसी को खाली हाथ कभी लौटने नहीं दिया। स्वयं ईश्वर भी उनके द्वार से कुछ ना कुछ लेकर लौटे।ऐसे भारत देश में दीनबंधु की कमी नहीं है जिन्होंने समाज के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। समाज की सेवा दीन दुखियों की सेवा के लिए उन्होंने अपने जीवन का सर्वस्व न्योछावर कर दिया,वह भी बिना किसी स्वार्थ के। ऐसे दीनबंधु भारत के अलावा कहीं और देखने को नहीं मिलते।यह मनुष्य के रूप में साक्षात ईश्वर होते हैं जो केवल मानवता के कल्याण के लिए अवतरित होते हैं।

आशा है उपरोक्त कहानी आपको पसंद आई हो,अपने विचार,सुझाव,राय आदि के लिए कमेंट बॉक्स में लिखें।

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