लौह स्तंभ (क़ुतुब मीनार)
कुतुब परिसर में स्थित यह 7. 20 मीटर ऊंचा लौह स्तंभ वास्तव में उतना साधारण नहीं है , जितना कि यह देखने में लगता है। अति शुद्ध लोहे को ढालकर बनाए गए इस स्तंभ को बने लगभग 1500 वर्ष हो गए हैं , पर अभी तक इस पर जंग तक नहीं लगा है।
मूलतः यह स्तम्भ 5 वीं शताब्दी में मथुरा में निर्मित हुआ था तथा 12 वीं शताब्दी में वहां से दिल्ली लाया गया था। आधार में इसका घेरा 6 फुट और 4 इंच का है तथा ऊंचाई पर जाकर यह परिमाप 2 फीट 4 इंच रह जाता है।
कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद की यह इमारत , जिसके सहन में यह लौह स्तंभ खड़ा है , वास्तव में सन 1196 में शुरू हुए पहले दिल्ली सल्तनत के इस्लामी शासकों के आक्रमणों से सदियों पहले के हिंदू कारीगरों के वैज्ञानिक ज्ञान तथा कौशल का अनूठा स्मारक है। इस स्तंभ के सम्मुख दिखाई देने वाली मेहराबें लगभग 10 वर्ष बाद कुतुब-उद-दीन ने बनवाई थी। उसके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने सन 1210 में इसके उत्तर और दक्षिण में जालियां और विशाल चौक बनवाकर इसका विस्तार किया।
इस स्तंभ की उत्पत्ति के संबंध में इतिहास अनेक व्याख्याओं को प्रस्तुत करता है।स्तम्भ के एक गुप्तकालीन लेख से ज्ञात होता है कि यह मूलतः विष्णुध्वज था , जिसे राजा चंद्र की याद में बनवाया गया था। इस भव्य स्तंभ के समतल एक चौकोर ऊपरी छोर में एक आला था जिसमें भगवान विष्णु के वाहन – गरुड़ की आकृति थी।
यह भी दिलचस्प मान्यता है कि अगर कोई दूसरा व्यक्ति इसकी तरफ पीठ करके इसे अपने बाहों से घेर ले और कोई मन्नत मांगे तो उसकी इच्छा अवश्य पूरी हो जाती है।
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